वापस होगा पत्थलगड़ी का मामला ,मुख्यमंत्री की स्वीकृति का इंतज़ार..

पत्थलगड़ी से संबंधित दर्ज़ मामलों की वापसी की प्रक्रिया जल्द ही पूरी होने वाली है। ऐसे मामलों की संख्या 30 के करीब है, जो एक जनवरी 2015 से लेकर 31 दिसंबर 2019 तक के दर्ज हुए हैं। सरकार के आदेश पर उपायुक्त की अध्यक्षता में गठित स्क्रीनिंग समिति के परामर्श के बाद गृह विभाग ने विधि विभाग से परामर्श मांगा था। जिसके बाद अब विधि विभाग से कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद फाइल मुख्यमंत्री कार्यालय में चली गई है। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री की स्वीकृति के साथ ही फाइल मंत्रिपरिषद् के लिए चली जाएगी। जहां ,प्रक्रिया जल्द पूरी होने की उम्मीद है। आपको बता दें कि मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद हेमंत सोरेन का यह सबसे पहला वादा था जो अब पूरा होने के करीब पहुंच चुका है। 29 दिसंबर 2019 को हेमंत सरकार ने पहली कैबिनेट में ही पत्थलगड़ी संबंधित मामलों को वापस लेने की घोषणा की थी और इसके लिए जिलों में स्क्रीनिंग कमेटी बनाई थी। जिससे सभी कानूनी अड़चनों को दूर कर लिया गया है।

आपको बता दें कि पत्थलगड़ी आंदोलन की शुरुआत खूंटी से हुई थी। इसका पहला मामला 24 जून 2017 को खूंटी थाना में दर्ज हुआ था। जिले के अनेक थानों में पत्थलगड़ी के कुल 21 मामले दर्ज हैं। इन मामलों में चर्चित कोचांग सामूहिक दुष्कर्म, पत्थलगड़ी समर्थकों द्वारा निजी बैंक खोले जाने एवं प्रशासनिक अधिकारियों को रात भर बंधक बनाने जैसे संगीन मामले भी शामिल हैं। पत्थलगड़ी को लेकर अब तक 45 आरोपितों की गिरफ्तारी हो चुकी है। अन्य जिलों में दर्ज मामले को भी जोड़ दिया जाए तो इससे संबंधित करीब 30 मामले हैं, जिन्हें वापस लिया जाना है।इस फैसले से पत्थलगड़ी समर्थकों का हौसला बुलंद है। दरअसल , पिछले रविवार को पश्चिम सिंहभूम जिले के गुदड़ी में पत्थलगढ़ी समर्थकों द्वारा पत्थलगढ़ी का विरोध करने वाले गुलीकेरा ग्राम पंचायत के उपमुखिया समेत सात ग्रामीणों की हत्या हो गई |

क्या है पत्थलगड़ी

जनजातीय समाज में किसी के मरने एवं जाति से निष्कासित होने जैसे मामलों को लेकर गांव में या गांव की सीमा पर पत्थलगड़ी की परंपरा है। वर्ष 2016-17 में यूसुफ पूर्ति व बबिता कच्छप जैसे स्वयंभू नेताओं के बहकावे में आकर ग्रामीणों ने कई गांवों में पत्थलगड़ी कर सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों एवं गैरआदिवासियों के गांव में प्रवेश करने पर रोक लगा दी थी। इनका कहना था कि आदिवासी देश के राजा हैं और गैरआदिवासी उनकी प्रजा हैं। सभी अधिकारी आदिवासियों के नौकर हैं। आदिवासियों ने खुद को राजा मानते हुए अपना वोटर कार्ड, राशन कार्ड व आधार कार्ड जला दिए थे। अभी कुछ दिन पहले भी पत्थलगड़ी प्रभावित भंडरा, बीरबांकी व मारंगहादा के 13 परिवारों ने सरकारी योजनाओं का विरोध करते हुए अपने वोटर कार्ड, राशन कार्ड व आधार कार्ड प्रशासन को वापस कर दिए हैं।

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