असुर जनजाति के लोग करते है महिषासुर की पूजा..

गुमला: नवरात्र में 10 दिन जहां हिंदू धर्मावलंबी मां दुर्गा की पूजा करते है। वहीं इसी समाज में बसा एक ऐसा समुदाय है जो बिल्कुल ही इसके विपरीत है। इस समुदाय के लोग खुद को असुर का उपासक मानकर उनकी के उपासना करते है। समाज में बसे असुर जनजाति के लोग आज भी महिषासुर की पूजा करता है। झारखंड में बसे असुर जनजाति के लोग महिषासुर को अपना आराध्य देव मानकर विधि विधान के साथ पूजा करते है। गुमला जिले के जंगलों व पहाड़ों में असुर जनजाति के लोग अधिक संख्या में निवास करते है। जहां के लोग बहुत ही उत्साह के साथ बड़े पैमाने पर महिषासुर की पूजा होती है।

महिषासुर की करते हैं पूजा….
असुर जनजाति के लोगों के बीच दुर्गा पूजा बीतने के बाद दीपावली पर्व में महिषासुर की पूजा करते है। जो आज भी जीवित है। वैसे तो मूर्ति बनाकर लोग पूजा करते हैं लेकिन इस जनजाति में महिषासुर की मूर्ति बनाने की परंपरा नहीं है लेकिन दुर्गा पूजा की समाप्ति के बाद महिषासुर की पूजा में जुट जाते है। दीपावली पूजा के दिन अमावस्या रात में मिट्टी का छोटा पिंड बनाकर महिषासुर की पूजा करते है। इस दौरान असुर जनजाति अपने पूर्वजों को याद करते है।

दीपावली के दिन करते हैं पूजा….
असुर जनजाति के लोग बताते हैं कि दीपावली के दिन सुबह में मां लक्ष्मी व गणेश की पूजा करते है। इसके बाद देर शाम को दीया जलाने के बाद महिषासुर की पूजा की जाती है। असुर जनजाति के दीपावली गोशाला की पूजा लोग बड़े पैमाने पर करते है। और जनजाति के लोग जिस कमरे में पशुओं को रखते हैं उस कमरे की पूरे विधि विधान के साथ पूजा करते है। वहीं महिषासुर की सवारी भैंसा (काड़ा) की भी हर 12 वर्ष में एक बार पूजा करने की परंपरा उनके बीच आज भी जीवित है। गुमला जिले के बिशुनपुर, चैनपुर,डुमरी, घाघरा व लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड के इलाके में भैंसा की पूजा की जाती है। बिशुनपुर प्रखंड के पहाड़ी क्षेत्र में भैंसों की पूजा भव्य रूप से की जाती है। साथ ही मेले का भी आयोजन किया जाता है।

दुर्गा पूजा के बाद ही करने लगते हैं तैयारी…..
जनजाति नेता विमलचंद्र असुर ने बताया कि असुर जनजाति के लोग पूर्वजों के साथ-साथ महिषासुर को अपना इष्ट देव मानते हुए उनकी भी पूजा करते है। बैगा पहान सबसे पहले पूजा करते है। इसके बाद घरों में पूजा करने की परंपरा है। दुर्गा पूजा अपने के तुरंत बाद हमलोग अपनी संस्कृति व धर्म के अनुसार पूजा की तैयारी शुरू करते है। जिन गांवों में असुर जनजाति के लोग निवास करते है। उन गांवों में उत्साह चरम पर रहता है।