दुमका व बेरमो विधानसभा उपचुनाव के वोटों की गिनती कल, सुबह 8 बजे से शुरू होगी मतगणना..

दुमका और बेरमो विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव की वोटों की गिनती मंगलवार सुबह 8 बजे से शुरू हो जाएगी। मतगणना को लेकर सारी तैयारी पूरी कर ली गई है। दोनों ही क्षेत्रों में बनाए गए मतगणना स्थल पर मतगणना कर्मियों का प्रवेश सुबह 6 बजे से ही शुरू कर दिया जाएगा। दुमका में 18 तो बेरमो में 17 राउंड की गिनती होनी है।

झारखंड की इन दोनों सीटों पर 3 नवंबर को वोट डाले गए थे। हालांकि, कोरोना के कारण इस उपचुनाव में 2019 के चुनाव के मुकाबले वोट प्रतिशत थोड़ा कम रहा। लेकिन मतदाताओं के उत्साह में कमी नहीं थी। दुमका में जहां इस बार 65.27 तो वहीं बेरमाे में 60.20 प्रतिशत मतदान हुआ। 2019 में विधानसभा चुनाव में दुमका में 67.14 और बेरमो में 60.93 प्रतिशत वोट पड़े थे।

दोनों ही विधानसभा सीटों पर सीधा मुकाबला है। दुमका में भाजपा व झामुमो जबकि बेरमो में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है। दुमका में झामुमो प्रत्याशी बसंत सोरेन का भाजपा की लुइस मरांडी और बेरमो में कांग्रेस प्रत्याशी अनूप सिंह का भाजपा प्रत्याशी योगेश्वर महतो बाटुल से सीधा मुकाबला है। इस उपचुनाव में कोई भी प्रत्याशी तीसरा कोण बनाने में सफल नहीं रहा।

दुमका में वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत चार पूर्व मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर है। झामुमो सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का कर्म क्षेत्र दुमका रहा है। वहीं, वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का निर्वाचन क्षेत्र भी दुमका ही है। 2019 के चुनाव में बरहेट के अलावा हेमंत सोरेन ने यहां से भी चुनाव जीता था। इस चुनाव को मुख्यमंत्री ने कितनी गंभीरता से लिया है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लगातार 7 दिनों तक वो इस विधानसभा क्षेत्र में कैंप करते रहे। उधर, भाजपा की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी अपनी पूरी ताकत दुमका में झोंक दी थी। भाजपा में उनकी वापसी के बाद ये पहला चुनाव है। यहां भाजपा की जीत-हार से मरांडी का राजनीतिक करियर प्रभावित होगा। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास भी चुनाव परिणाम से प्रभावित होंगे।

दूसरी तरफ, पूर्व मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह के निधन की वजह से बेरमो विधानसभा क्षेत्र खाली हो गया। जिसके बाद यहां उपचुनाव हुए। यहां अगर भाजपा जीत जाती है तो योगेश्वर महतो बाटुल तीसरी बार विधायक बन कर आएंगे, जबकि कांग्रेस से अनूप सिंह अगर जीत जाते हैं तो ना सिर्फ वो अपनी पिता की राजनैतिक विरासत को आगे ले जाएंगे बल्कि राजकीय राजनीति में भी प्रवेश कर जायेंगे।