झारखंड के दुर्गा प्रसाद के बनाए वाद्य यंत्र की विदेशों में भी मांग.

पूर्वी सिंहभूम जिला के चाकुलिया प्रखंड अंतर्गत बड्डीकानपुर पंचायत के एक अत्यंत पिछड़ा गांव माचकांदना के रहने वाले दुर्गा प्रसाद हांसदा अपने कला के प्रदर्शन से राज्य का नाम गौरवान्वित कर रहें हैं | बड़ी बात ये है कि दुर्गा अपने हुनर से देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रहें हैं। उन्होंने अपने गांव के ही कुछ सहयोगी मित्रों के साथ मिलकर सारंगी के जैसा एक वाद्य यंत्र तैयार किया है। लोग इस यंत्र को खूब पसंद कर रहे हैं और इस वजह से इसकी मांग आजकल बढ़ती जा रही है।

हाल ही में दुर्गा प्रसाद ने देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित जनजातीय महोत्सव में भाग लिया था। इसमें उनके द्वारा बनाए गए वाद्य यंत्र को देश के विभिन्न हिस्सों के अलावा विदेशों से घूमने आये यात्रियों ने भी काफी पसंद किया। दुर्गा प्रसाद के बनाये वाद्य यंत्र को जर्मनी, इटली एवं अन्य कई देशों के लोगों ने उत्सुकता पूर्वक खरीदकर अपने देश ले गए। दिल्ली से लौटने के बाद दुर्गा प्रसाद ने चाकुलिया में आयोजित अखिल भारतीय संथाली लेखक संघ के दो दिवसीय सम्मेलन में भी अपना स्टॉल लगाया था। यहां भी उनके द्वारा निर्मित वाद्य यंत्र की अच्छी बिक्री हुई।वहीं दुर्गा कुछ दिन पहले जमशेदपुर के एक व्यक्ति ने दुर्गा प्रसाद से 1300 पीस वाद्य यंत्र बनाने का आर्डर देकर खरीदा था।

अपनी इस हुनर की बात करते हुए दुर्गा प्रसाद हासंदा ने बताया कि उनके द्वारा बनाया गया ये वाद्य यंत्र सामान्यत: 1500 से 2,000 रुपए तक मिल जाता है। हालांकि दिल्ली में यह 3000 रुपये तक बिका था। इसे बनाने में वह लकड़ी, नागफनी का रेशा, नारियल की खोपड़ी एवं बकरी के चमड़े का उपयोग करते हैं। इस काम में उनके साथ गांव के युवक रविंद्र हांसदा, चंद्राय हांसदा, महेंद्र मुर्मू, चेतन मांडी एवं सीमाल किस्कू सहयोग करते हैं। ये लोग वाद्य यंत्र के अलावा बांसुरी भी बनाते हैं।

आपको बता दें कि दुर्गा प्रसाद के इस हुनर को टाटा कल्चरल सोसाइटी से समय-समय पर प्रोत्साहन मिलता रहा है। जनजातीय बच्चों को कला संस्कृति की शिक्षा देने के लिए सोसाइटी अब तक दुर्गा प्रसाद द्वारा बनाये गए अनेक वाद्य यंत्र खरीद चुकी है। दुर्गा प्रसाद के अंदर सच में सरस्वती का निवास है उनकी कला सराहनीय है | वो वाद्य यंत्र बनाने के अलावा अच्छे पेंटर भी हैं | लेकिन बदकिस्मती यह है कि आजीविका के लिए वे आज भी खेती पर निर्भर हैं।

एक अत्यंत पिछड़े गांव में रहकर भी अपने हुनर के बल पर बेहतरीन वाद्य यंत्र बनाने वाले दुर्गा प्रसाद हांसदा ने कहा कि बनाम की मांग स्थानीय स्तर से लेकर विदेशों में भी है। अगर सरकार सही तरीके से हमें बाजार उपलब्ध करा दें तो न केवल इसके निर्माण को बढ़ावा मिलेगा| बल्कि मुझ जैसे अनेक ग्रामीण युवाओं को रोजगार भी मिल सकेगा।