पलामू: झारखंड में मनरेगा में सरकारी राशि गबन का मामला सामने आया है। सड़क निर्माण के नाम पर भारी घोटाला किया गया है। बता दें कि पलामू जिले के हुसैनाबाद के ‘पतरा खुर्द’ पंचायत में 12 मनरेगा योजनाओं में फर्जी मास्टर रोल तैयार कर सरकारी राशि गबन की गई है। इन योजनाओं में 6 योजनाएं अमल में लाई ही नहीं गई है। ‘पतरा खुर्द’ पंचायत में मनरेगा के तहत खेत में सिचाई कूप निर्माण, मिट्टी मोरम पथ निर्माण, चबुतरा निर्माण जैसी योजनाओं में श्रमिक हेतु 8.7 लाख और मैटेरियल के लिए 4.5 लाख रुपये की निकासी हुई है।
झारखंड नरेगा वाच’ फोरम के स्टेट कन्वेनर जेम्स हेंरेज ने क्विंट से बताया कि मनरेगा को लेकर इस तरह के भ्रष्टाचार का पंचायत पतरा खुर्द एकमात्र उदाहरण नहीं है। जबकि मनरेगा में हुए भ्रष्टाचार सरायकेला-खरसांवां, सिमडेगा, रांची, देवघर जैसे दर्जनों शहर इसके उदाहरण हैं। राज्य भर के उन सभी क्षेत्रों की जांच होनी चाहिए जहां मनरेगा योजना अमल में है। इसकी जांच की गई तो पाया कि जो राशि की निकासी हुई वह वास्तविक काम से कई गुना अधिक है। इस पर कार्रवाई के लिए एक आवेदन महात्मा गांधी मनरेगा कानून 2005 अनुसूची 1 की धारा 29 के तहत पलामू जिले के उप विकास आयुक्त सह जिला कार्यक्रम समन्वयक को लिखा गया है।
वही पतरा खुर्द पंचायत के ग्रामीण अशोक मेहता कहते हैं कि मनरेगा में दिखाकर फर्जी तरीके से पैसे की निकासी की गई। पैसे की फर्जी निकासी का पता तब चला जब गांव के धर्मेंद्र मेहता नाम का युवक जो बैंगलोर में काम कर रहा था। उसके बैंक खाता में मनरेगा का पैसा मनरेगा मेट से डलवाया गया। उसके बाद उसको फोन करकर पैसा मांगा जाने लगा कि खाते में जो पैसा डलवाया है वह पैसा वापस करो।
वहीं धर्मेंद्र मेहता का कहना है कि जब मैं गांव में था, तब मेरा मनरेगा जॉब कार्ड बना था, लेकिन बैंगलोर में जॉब मिलने के बाद मैं वहां चला गया। कुछ दिन बाद मनरेगा मेट के साथी ने कॉल किया कि मैंने अपने बैंक खाते में पैसा डलवाया है वह वापस दीजिए। मेरे बैंगलोर से वापस गांव आने के बाद मनरेगा मेट के द्वारा दबाव डाला गया कि 9 हजार रुपये जो खाते में है, वह निकाल कर दीजिए। मैंने फिर वह पैसा हरिनंदन को दे दिया।
बता दें कि हरिनंदन ब्लॉक से ऐसे काम लेकर गांव आता है, जिसके तहत काम सिर्फ कागज पर दिखाया जा सके। साथ ही ग्रामीणों के जॉब कार्ड पर पैसे की निकासी हो सके। मेरे घर में चार जॉब कार्ड हैं, मेरे अलावा पिताजी, माताजी और बहन के नाम पर है। हमने कभी काम नहीं किया, लेकिन हरिनंदन ने सभी के बैंक खाता खुलवाकर मनरेगा के पैसे खाता में डलवाए। पैसे खाता में आने के बाद निकलवा लिए। मैं थोड़ा पढ़ा लिखा हूं तो इस घोटाले को समझ सका बाकी गांव के लोग जो साक्षर नहीं हैं उनके नाम पर खूब पैसे की निकासी हो रही है। इस तरह का घपला लंबे समय से हो रहा है। मैंने लिखित शिकायत भी की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
वहीं दूसरी ओर हरिनंदन मेहता ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि “मेरे ऊपर गलत आरोप है मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। योजना पूरी की गई है। धरातल पर बहुत अच्छा काम किया गया है, काम के बदले पैसा दिया जाता है”।
वहीं ग्राम पंचायत पतरा खुर्द के मुखिया लल्लू रजावार का कहना है कि “मेरा साइन सबसे अंत में होता है, मुझ से पहले रोजगार सेवक और जेई के हस्ताक्षर होते हैं। मैं हस्ताक्षर से पहले जेई साहब और रोजगार सेवक से पूछता हूं सब ठीक है, वह कहते हैं ठीक है तब मैं साइन कर देता। इसमें मेरी कोई जिम्मेदार नहीं बनती है। मुझ से साइन कराने से पहले रोजगार सेवक को जांच करनी चाहिए, इस लिए सवाल भी उसी से होना चाहिए कि लाभुक गांव में नहीं है, तो उसका नाम मास्टर रोल में क्यों लगा है। रही बात जेई साहब की तो वह काम पूरा होने से पहले मेजरमेंट वाउचर बना देते हैं। उनको कई बार मैंने मना किया, लेकिन वह नहीं मानते।