झारखंड में चल रहे सियासी फेरबदल के बीच हेमंत सरकार ने एक बार फिर से अपना अहम पासा फेंका है। जिसमें सीएम ने झारखंड में 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति तथा नौकरियों में ओबीसी, एसटी और एससी आरक्षण में बढ़ोतरी को लागू कर दिया। हालांकि इन फैसलों को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। प्रदेश में हमेशा से 1932 आधारित स्थानीय नीति का मुद्दा आदिवासियों और मूलवासियों की भावनाओें से जुड़ा रहा है। जिसे झारखंड सरकार अपना सबसे ताकतवर हथियार बनाने में लगी है। वहीं बुधवार को कैबिनेट की मुहर लगने के बावजूद दोनों प्रस्तावों को जमीनस्तर पर उतारने से पहले कई प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। वहीं स्थानीय नीति और नौकरियों में कुल 77 प्रतिशत आरक्षण पहले झारखंड विधानसभा से पारित होगा। विधेयक की मंजूरी के बाद इसे केंद्र भेजा जाएगा, ताकि यह 9वीं अनुसूची में शामिल हो सकें।
अगले चुनाव की तैयारी..
वहीं कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बुधवार के फैसले यह स्पष्ट संकेत हैं कि झारखंड विधानसभा का अगला चुनाव यूपीए गठबंधन एक साथ मिलकर लड़ेगा। वहीं सीटों को लेकर बैठकें करनी पड़ेंगी। हालांकि एसटी, एससी और ओबीसी के आरक्षण में कुल 17 फीसदी इजाफा करके यूपीए लगभग दस फीसदी वोट अपने पक्ष में करना चाह रही है।
वोटर्स पर फोकस कर रही झमुमो..
बता दें कि हेमंत सरकार ने अपने कोर वोटर 26.2 फीसदी आदिवासी, धर्मांतरित इसाई समेत 19 फीसदी अल्पसंख्यक पर ध्यानकेंद्रित करके कई बड़े फैसले लिए हैं। इसी क्रम में 1932 खतियान का मामला एक वार फिर चर्चा का विषय बन चुका है। दरअसल मंडल कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में लगभग 50 फीसदी ओबीसी हैं। वहीं 2019 विधानसभा चुनाव में झामुमो को करीबन 28 लाख वोट मिले थे। जिसे देखते हुए झामुमो का अगला लक्ष्य 38 से 40 लाख वोट हासिल करना है।