सिमरा गांव में बेटी की शादी करने से डरते है लोग..

Jharkhand: झारखंड में एक ऎशा गांव है जिसमें कोई भी पिता अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता। डरिए मत यह गांव श्रापित नहीं है ना ही यहां जादू टोना होता है। बल्कि किसी भी तरह की सुख सुविधा नहीं होने के कारण गांव में कोई भी पिता अपनी बेटी नहीं भेजना चाहते। हजारीबाग जिला अंतर्गत आंगो पंचायत में एक गांव है सिमरा जरा। इस गांव में आज भी कई युवा कुंवारें है। कारण है कि इस गांव में कोई अपनी बेटी ब्याहना नहीं चाहता। बताया जाता है कि इस गांव में मूलभूत सुविधाओं की घोर कमी है। इस गांव से बड़कु मांझी, चैता मांझी और खैरा मांझी सरीखे कई स्वतंत्रता सेनानी आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिये। इसके बावजूद ये गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से उपेक्षित है। यहां के ग्रामीण आज भी सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग कर रहे है।

सिमरा जरा गांव के बिरसा मांझी ने बताया कि मेरे शादी के लिए मेहमान आये थे। शादी के लिए छेका भी हो गया था, लेकिन सड़क नहीं रहने के कारण रिश्ता टूट गया। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति सिर्फ मेरे साथ ही नहीं, बल्कि कई अन्य युवाओं के साथ भी हुई है।

पगडंडियों के सहारे जाते है बाजार…
सिमरा जरा गांव जाने के लिए सड़क नहीं है। लोग पगडंडियों के सहारे बाजार, जिला मुख्यालय, प्रखंड मुख्यालय, पंचायत एवं स्कूल-कॉलेज आना-जाना करते है। पहाड़ी क्षेत्र के सिमरा जरा में लोग वर्ष 1920 से रह रहे है। इस गांव में 30 घर है. सभी मांझी जाति के है। मैट्रिक पास 20, इंटर पास 16 है। चार विद्यार्थी स्नातक सेमेस्टर थर्ड में पढ़ाई कर रहे है। यहां सरकारी सुविधा के नाम पर 2007 में उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय भवन बनाया गया। दो पारा शिक्षक हैं जबकि 17 बच्चे है। यहां पांचवी क्लास तक पढ़ने के बाद बच्चे पहाड़ी क्षेत्रों से गुजरते हुए आठ किलोमीटर दूर पैदल चलकर बरतुआ स्कूल में पढ़ने जाते है। जबकि हाई स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई करने के लिए बच्चों को 21 किलोमीटर दूर बड़कागांव आना पड़ता है।

इलाज के अभाव में कई लोगों की हो चुकी है मौत…..
सिमरा जरा गांव में स्वास्थ्य की कोई सुविधा नहीं है। यहां के लोगों को उप स्वास्थ्य केंद्र जाने के लिए आठ किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। आंगो का उप स्वास्थ्य केंद्र भी एक नर्स के सहारे चलता है। स्वास्थ्य केंद्र में कोई डॉक्टर नहीं बैठते है। ऐसी परिस्थिति में लोगो को 21 किलोमीटर दूर बड़कागांव अस्पताल आना पड़ता है। सड़क कि सुविधा नहीं रहने के कारण बीमार व्यक्तियों को खटिया में के सहारे टांग कर अस्पताल ले जाना पड़ता है, लेकिन कभी-कभी जाते-जाते रास्ते में कई लोगों की मौत हो जाती है।

रास्ते में ही हजारों लोगो की हो चुकी है मौत…
गांव के मालिक साहिब, राम मांझी एवं ने बताया कि अब तक दर्जनों ग्रामीणों की मौत अस्पताल ले जाते रास्ते में ही हो चुकी है। इसमें जुलाई 2018 में बिरसा मांझी की पत्नी सधनी देवी, 17 नवंबर 2022 में दशमी देवी (28 वर्ष) 2016 में कपूर कुमार (सात वर्ष ) के अलावा राजू हेंब्रम (तीन वर्ष) की मौत हो चुकी है। इसके अलावा पांच साल पहले बेनी राम मांझी, मुंशी मांझी, सात साल पहले गुल्ली देवी और संझली देवी, छह साल पहले बोधा राम मांझी, लेटे मांझी, बिगा रामा मांझी, की भी हो चुकी है मौत।

जलस्तर भी है नीचे….
सिमरा जरा गांव में पानी के लिए हमेशा हाहाकार मची रहती है। यहां एक भी चापाकल नहीं है। यहां सरकारी कुआं दो है। एक कुआं पूरी तरह सूख जाती है, तो दूसरे कुएं में गर्मी के दिनों में पानी कम रहता है। जो पानी रहता है वो भी गंदा रहता है। यहां एक भी तालाब नहीं है।

पढ़ाई की सुविधाएं हैं ध्वस्त…
सिमरा जरा में बच्चों की पढ़ाई के लिए आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है और ना ही जन वितरण प्रणाली की दुकान है। राशन के लिए लाल कार्डधारियों को आठ किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। ग्रामीणों ने बताया कि डीलर द्वारा दो किलो चावल काट लिया जाता है। वहीं, बच्चे एवं गर्भवती माताओं को पैदल आठ किलोमीटर दूर आंगो जाना पड़ता है।

अंधेरे में जीने के लिए मजबूर है लोग….
पूरे भारत में राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत गांव में बिजली पहुंचाई जा रही है। वहीं, अब तक बिजली नहीं पहुंची है। लोगों को ढिबरी युग में जीना पड़ रहा है ।
चार साल पहले लोगों को जरेडा द्वारा सौर ऊर्जा का सोलर लैंप मिला था, वह भी छह महीने में ही खराब हो गया।

खुले में शौच करने पर है मजबूर….
पुराने मिट्टी के घर में रहने को मजबूर यहां के लोग जर्जर मिट्टी के घर में रहने के लिए मजबूर है। वर्ष 1997 में सात लोगों को इंदिरा आवास मिला था, जो अत्यंत जर्जर हो गया। यहां लोगों को पेंशन नहीं मिलता है। बहुत सारे लोगों का राशन कार्ड नहीं बना है। वर्ष 1997 में लेबर कार्ड बना था, लेकिन उससे काम नहीं मिलता है। स्वच्छता विभाग की ओर से देश के हर गांव में शौचालय बनाया जा रहा है, लेकिन सिमरा जरा गांव में किसी के घर में अभी तक कोई शौचालय नहीं बना है। आज भी लोग खुले में शौच जाने को मजबूर है।

जीविका चलाना है मुश्किल…
इस गांव में मात्र दो एकड़ जमीन में धान एवं मकई की खेती होती है जिससे जीविका चलाना मुश्किल हो जाता है। यही कारण कि यहां के लोगों को भूखमरी की स्थिति में जीना पड़ रहा है। गांव में किसी भी व्यक्ति की सरकारी नौकरी नहीं है। सभी लोग मजदूरी करते हैं। रोजगार नहीं रहने से यहां के मजदूर दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर होते है। अब तक लगभग 15 ग्रामीण पलायन कर चुके है।

सुख सुविधाओं की मांग कर रहे हैं ग्रामीण…
सिमरा जरा गांव में मूलभूत सुविधाओं को बहाल करने के लिए ग्रामीणों ने कई बार मांग की, लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अब एक बार फिर ग्रामीण सड़क, बिजली, कुएं, चापाकल, आंगनबाड़ी केंद्र, जन वितरणप्रणाली की दुकान, उप स्वास्थ केंद्र, तालाब, जीविकोपार्जन के लिए पशुधन योजना के तहत बकरी पालन के अलावा सूकर, गाय, मुर्गी, भेड़ पालन आदि की मांग की है।