झारखंड के इस मंदिर में 16 दिन की होती है नवरात्रि पूजा..

Latehar: सिद्धपीठ के रूप में विख्यात ‘मां उग्रतारा’ का करीब एक हजार वर्ष पुराना प्राचीन मंदिर लातेहार जिले के चंदवा प्रखंड के नगर गांव में स्थित है। झारखंड के साथ-साथ देश के अलग जगह से श्रद्धालु इस सिद्धपीठ में पूजा करने आते है। लोककथा के अनुसार, लातेहार के मनकरी नामक स्थान पर टोरी परगना के अंतिम राजा दिग्विजय नाथ शाही के पूर्वज आखेट पूजा करते समय गए थे। यहां रात को विश्राम के दौरान स्वप्न में देवी ने राजा को दर्शन दिए और आदेश देते हुए कहा कि स्नान करने तालाब में जाओ, वहां तुम्हें मैं मिलूंगी। मां के आदेश अनुसार जब राजा सुबह उठकर स्नान करने तालाब की ओर गया। तब राजा को वहां अंगुष्ठ प्रमाण (अंगूठे के समान प्रतिमा) मिली। उसे लाकर राजा ने नगर गांव स्थित अपने राज्य के गढ़ के बीचो-बीच स्थापित कर दिया। तब से ही यह मंदिर यहां स्थापित है। भिक्षाटन के क्रम में देव मारकंडेय (बिहार) वर्तमान रोहतास निवासी पंचानन मिश्र अपने परिवार के साथ यह नगर पहुंचे थे। यहां राजा ने पूजा की जवाबदेही व अलौदिया गांव की जमींदारी पंचानन मिश्र को दी। दिग्विजय नाथ शाही (अंतिम राजा) का 1804 में नावल्द निधन हो गया। तब से मंदिर की व्यवस्था व पूजा का भार आज तक पंचानन मिश्र के वंशज ही निभाते आ रहे है।

मां पूरा करती है सभी मनोकामना….
वर्तमान सेवायत सह मुत्मिकार गोविंद बल्लभ मिश्र ने बाताया की मां उग्रतारा के दर्शन करने जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से आते है। मां उनकी हर मनोकामना पूर्ति करती है। मां की पूजन पद्धति अद्भुत है। यहां के लोग मानते हैं कि जो भी श्रद्धालु पुजारी की मदद से मां के आसन पर 11 फूल चढ़ाते है। यह फूल गिरने पर उनकी मनोकामना पूरी होती है। उन्होंने बताया नगर मंदिर में 16 दिनों की शारदीय पूजा होती है। नूतन मंडप में नवरात्र के दौरान नवरात्र पूजन किया जाता है। इस मंदिर में समाज के सभी वर्गों को जोड़ने की व्यवस्था की गयी है। अलौदिया के सरहाली गांव के गंझू व परहिया जाति के लोग ही नूतन मंडप के निर्माण के लिए बांस लाने का काम करते है। हरैया गांव के तैलिक साहू जाति के लोग खैर लाने का काम करते है। वहीं, अलौदिया गांव के उरांव जाति के लोग मंडप को छारने का काम करते है। नगर के गंझू जाति के लोग मंदिर की रंगाई-पुताई करते है। इतना ही नहीं जो आचार्य दशहरा में 16 दिनों तक तीखुर का भोग ग्रहण करते हैं, पूरे अलौदिया गांव से उसके लिए दूध एकत्रित कर प्रतिदिन नगर मंदिर ले जाया जाता है।

मिश्रा परिवार घर है अद्भुत पुस्तक….
सेवायत सह मुत्जिमकार श्री मिश्र ने कहा कि टुढ़ामू स्थित मिश्र परिवार के घर में देवी के कृपा से एक अद्भुत पुस्तक है। पुस्तक के आधार पर ही प्राचीन नगर मंदिर में दशहरा पूजा संपन्न होती है। पुस्तक के अंदर कई पुराणों का सार लिखित है पुस्तक का निर्माण कैथी लिपि में मिश्रा परिवार द्वारा ही किया गया है। मिश्रा परिवार के घर में ही इस पोथी को सालों भर देवी तुल्य रखा जाता है। साल में सिर्फ 16 दिनों के लिए नवरात्र के दौरान इसे निकाल कर मंदिर में स्थापित किया जाता है और तथा मंदिर में इसी पुस्तक के माध्यम से विशेष पूजा संपन्न होती है।

पूर्णिमा को भीड़ होती है अधिक
रामनवमी व दुर्गा पूजा का त्योहार नगर मंदिर में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। इस मंदिर की सबसे दिलचस्प और रहस्यमय बात यह है कि यहां दशहरा पूजा का आयोजन 16 दिन तक होता है। यहां प्रत्येक महीने की पूर्णिमा के दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।