ईसाई मिशनरियों द्वारा शुरू की गई झारखंड में पत्रकारिता..

देश की प्राचीनतम पत्रिकाओं में से कई झारखंड में शुरू हुईं। धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए ईसाई मिशनरियों ने झारखंड में हिंदी पत्रकारिता की नींव रखी। इन प्रकाशित पत्रिकाओं में बाइबल के संदेशों से लेकर स्थानीय खबरें तथा अंतर्राष्ट्रीय समाचार हुआ करते थे। आइए क्रमवश झारखंड के इतिहास में प्रकाशित होने वाले महत्वपूर्ण पत्रिकाओं पर नजर डालें।

झारखंड में लिथो प्रेस की स्थापना रांची में वर्ष 1872 को हुई और उसी वर्ष झारखंड की पहली पत्रिका रांची से प्रकाशित हुई, जिसका नाम ‘घर-बन्धु’ है। इसकी टैगलाइन, “छोटानागपुर एवांजेलिकल सोसायटीज़” थी। यह तब से अब तक अनवरत प्रकाशित हो रही है और इतने लंबे समय से अब तक देश में प्रकाशित होने वाली शायद एकमात्र पत्रिका है। वर्ष 1882 से इसके अंक उपलब्ध हैं। 1 दिसंबर 1872 को इसका पहला अंक निकला। तब यह पत्रिका पाक्षिक हुआ करती थी लेकिन अब मासिक छपती है। फिलहाल यह गोस्सनर चर्च की मासिक हिंदी पारिवारिक पत्रिका है। 1845 से जर्मन मिशनरियों के आने की शुरुआत के बाद से ही उनकी क्षेत्र में संख्या बढ़ती गई और उन्होंने हिंदी व अन्य स्थानीय भाषाओं को सीखकर इन्ही भाषाओं में इस पत्रिका का प्रकाशन शुरू कर दिया।

इसी प्रकार कई अन्य पत्रिकाएं जैसे निष्कलंका, छोटानागपुर दूत, आदिवासी, चांदनी इत्यादि निकलती रहीं लेकिन अलग अलग समय पर बंद भी हो गईं। निष्कलंका 1920 से निकलने वाली मिशनरी पत्रिका है। इसी प्रकार ‘बिहार बन्धु’ का प्रकाशन पहले कोलकाता और बाद में पटना से शुरू हुआ लेकिन बाद में इसका प्रकाशन बंद हो गया।

इसी स्वरूप में, ईसाई मिशनरियों द्वारा किए जा रहे धर्म प्रचार व उनके बौद्धिक प्रत्युत्तर के लिए, सन् 1889 में आर्य समाज की स्थापना की गई जिसके उपरांत साप्ताहिक पत्रिका ‘आर्यावर्त’ छपना शुरू हुआ। इसमें भी देश विदेश की खबरें, रांची की स्थानीय व धार्मिक बातें होतीं थीं। इसका प्रकाशन 1905 में बंद हुआ।

सन् 1924 में मासिक पत्रिका “छोटानागपुर पत्रिका” का प्रकाशन रांची के अपर बाजार से शुरू हुआ। इसके संपादक पं. मामराज शर्मा थे व मैनेजर शुक्रा उरांव थे।1926 में इसका प्रकाशन बंद हुआ। इसके पश्चात वर्ष 1938 में ‘झारखंड’ नामक मासिक पत्रिका का गुमला से प्रकाशन शुरू हुआ। तब गुमला रांची का ही भाग था। इसके संपादक ईश्वरी प्रसाद सिंह थे। इसकी छपाई पटना से होती थी।

इसी समय आदिवासी आंदोलन अपने जोर पर था और जब आंदोलनकारियों को अपनी बात दूर तक पहुंचाने और सुने जाने की जरूरत महसूस हुई तब ‘आदिवासी’ नामक साप्ताहिक पत्रिका की शुरूआत की गई। आजादी के बाद, फरवरी 1948 में रांची से साप्ताहिक पत्रिका ‘आदिवासी’ का बिहार सरकार द्वारा प्रकाशन शुरू हुआ। विभिन्न अवसरों पर निकलने वाले इसके मोटे-मोटे विशेषांक अपनी पठनीय सामग्री के लिए बहुत चर्चित रहे। इसके संपादक राधाकृष्ण थे। बार बार बंद चालू होने के बाद अब यह झारखंड सरकार द्वारा प्रकाशित की जाती है।

1963 में रांची टाइम्स का प्रकाशन हुआ। 1971 में झारखंड टाइम्स का प्रकाशन हुआ। इसके संस्थापक एनई होरो रहे। रांची से कई भाषाओं में कितने ही पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ जिनमें अंग्रेज़ी की भी पत्रिकाएं निकलीं जैसे ‘सेंटिनेल’। ईसाई मिशनरियों का योगदान न सिर्फ झारखंड में पत्रिकारिता को जन्म देने में रहा बल्कि आदिवासी इतिहास, संस्कृति, परंपरा, गीत-संगीत, खान-पान और साहित्य के संरक्षण और उसे विश्व भर में फैलाने में भी रहा।