जेएसससी की संशोधित नियुक्ति नियमावली पर सुनवाई अगले सप्ताह..

झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) की नियुक्ति परीक्षा की संशोधित नियमावली को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई टल गई। यह मामला चीफ जस्टिस डा रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध था। इस मामले में प्रार्थी की ओर से अदालत से आग्रह किया गया कि यह मामला बहुत गंभीर है। जेएसएससी की ओर से नई नियुक्ति नियमावली के तहत कई विज्ञापन जारी कर दिया है। इसलिए इस मामले में अति शीघ्र सुनवाई की जाए। इस पर अदालत ने 13 जनवरी को सुनवाई की तिथि निर्धारित की है। हालांकि इस मामले में राज्य सरकार की ओर से जवाब दाखिल नहीं किया गया है। इस संबंध में रमेश हांसदा एवं अन्य ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। पूर्व में सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार को संशोधन नियमावली की मूल संचिका पेश करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पिछली सुनवाई को इसे कोर्ट में पेश कर दिया था। अदालत ने इसे सीलबंद कर रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय में जमा करने का निर्देश दिया था।

इस मामले में राज्य सरकार की ओर से अंतरिम आवेदन (आइए) दाखिल किया गया है। इसमें कहा गया है कि नियुक्ति के लिए बनी संशोधन नियमावली का अध्ययन करने के लिए राज्य सरकार ने एक कमेटी का गठन किया है, जिसने दूसरे राज्यों की नियमावली का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है। सरकार समेकित रूप से इस मामले में शपथ पत्र दाखिल करना चाहती है। इस पर प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, रूपेश ङ्क्षसह और अपराजिता भारद्वाज ने कहा था कि संशोधन नियमावली बनाने और उसे लागू करने के बाद सरकार ऐसा कैसे कह सकती है कि दूसरे राज्यों की नियमावली का अध्ययन किया जा रहा है। इससे प्रतीत होता है कि सरकार ने बिना किसी सोच समझ के बनाई गई है और उसे जल्दबाजी में अधिसूचित कर दिया गया है। किसी भी आधार पर इस नियमावली को संवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता है।

क्या है याचिका में..
याचिका में कहा गया है कि राज्य के संस्थानों से दसवीं और प्लस टू योग्यता वाले अभ्यर्थियों को ही परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्यता रखी गई है। इसके अलावा 14 स्थानीय भाषाओं में से ङ्क्षहदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है। जबकि उर्दू, बांग्ला और उडिय़ा सहित 12 अन्य स्थानीय भाषाओं को रखा गया है। नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया जाना संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है। वैसे अभ्यर्थी जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर पढ़े हों, उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है। नई नियमावली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से ङ्क्षहदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है, जबकि उर्दू, बांग्ला और उडिय़ा को रखा गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *