झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति का पहला महाधिवेशन आयोजित..

धनबाद__44 डिग्री तापमान, आसमान से बरसते अंगारे, तपती धूप, और ऐसे में भी क़रीब चार हजार चारपहिया वाहनों की क़तार, दस से पंद्रह हज़ार दुपहिया सवार, और पचास हज़ार लोगों की भीड़। यह नजारा देखने को मिला धनबाद से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बलियापुर हवाई पट्टी के बिनोद धाम का। मौक़ा था झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति का पहला महाधिवेशन। लोगों का उत्साह ऐसा की क्या गर्मी और क्या धूप, सब हार मान जाए। झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति के नामी नेता जयराम महतो अपने राजनीतिक सफ़र की शुरुआत करने झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक बिनोद बिहारी महतो के समाधि स्थल पहुँचे थे।

जयराम महतो झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति को पार्टी का रूप देने बिनोद बाबू के समाधि स्थल पहुंचे। उनका संबोधन होने से पहले ही उनके संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने पार्टी का उद्देश्य गिनाया। इसमें जल, जंगल, जमीन की रक्षा, और खतियान आधारित नीति लागू करने के साथ साथ बड़े उद्योगों को बचाने और विस्थापितों को शत प्रतिशत नौकरी, किसानों के लिए नई उत्पादन नीति और तकनीक, आदिवासियों के हित में सीएनटी और एसपीटी का प्रचार- प्रसार और झारखंड की लोक संस्कृति का संरक्षण शामिल है। समिति के कार्यकर्ताओं ने स्पष्ट शब्दों में मंच से कह दिया कि जिस प्रकार से गुजरात गुजराती का, बिहार बिहारी का, बंगाल बंगाली का उसी तरह से झारखंड केकरो बाप के नाय, झारखंड झारखंडी का…।

इस सभा का इंतज़ाम करते वक़्त क़रीब 5000 कुर्सियाँ लगाई गई थीं लेकिन वहाँ 50,000 लोगों की भीड़ पहुँच गई। इस कारण व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई और भीड़ अनियंत्रित हो गई। कार्यकर्ताओं की इस भीड़ को देखते हुए जयराम मंच से नीचे उतर आये और उन्हें बैठने की अपील करते हुए ख़ुद वहीं ज़मीन पर कार्यकर्ताओं के साथ बैठ गये। अपने चहेते नेता का ये रूप देख कर कार्यकर्ताओं का उत्साह और बढ़ गया। वे जयराम से साथ नीचे बैठ गये और सेल्फ़ी लेने लगे।

इतनी भीड़ को देखते हुए जेबकतरों ने भी इसका खूब फ़ायदा उठाया। क़रीब एक दर्जन से ज़्यादा कार्यकर्ताओं में जेब कटने की शिकायत की जिसके बाद मंच से जेब सँभालने की घोषणा भी की गई। साथ में यह भी घोषणा की गई की पकड़े जाने वाले जेबकतरे के साथ मार-पीट करने के बजाय उसे मंच पर सौंप दिया जाए। पंडाल के अंदर जब जगह कम पड़ गयी तो लोगों ने कड़ी धूप के बावजूद पंडाल के बाहर खडे होकर वक्ताओं का संबोधन सुना।