मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबियों के शेल कंपनियों में निवेश व माइनिंग लीज आवंटन मामले में झारखंड हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर राज्य सरकार की एसएलपी पर आज सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हुई। करीब 1 घंटा सुनवाई चली। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की एसएलपी पर सुनवाई के बाद झारखंड हाईकोर्ट को लंबित जनहित याचिकाओं की मेंटेनेबिलिटी पर सुनवाई करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने 13 मई के अपने आदेश में खुद कहा था कि वह पहले इस बात पर विचार करेगा कि शिव कुमार शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं और फिर वह याचिका में लगाए गए आरोपों के गुण-दोष पर गौर करेगा।
पीठ ने कहा, ”हमारा विचार है कि हाई कोर्ट रिट याचिका के सुनवाई योग्य होने संबंधी प्रारंभिक आपत्तियों पर पहले विचार करेगा और फिर कानून के अनुसार आगे बढ़ेगा।”शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने मामले के गुण-दोष के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं की है और न ही याचिका में लगाए गए आरोपों पर कोई टिप्पणी की है। उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ झारखंड सरकार ने शीर्ष अदालत का रुख किया है।
31 मई तक सभी पक्षों से मांगा जवाब..
मालूम हो कि आज ही सुप्रीम कोर्ट के अलावा झारखंड हाई कोर्ट में भी इस मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीमकोर्ट के आदेशानुसार पहले याचिका की वैधता पर सुनवाई होगी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर आरोप है कि उन्होंने विभागीय मंत्री होते हुए अपने नाम से खनन लीज आवंटित करा लिया है। यही नहीं उनके करीबियों ने शेल कंपनियों में बड़े पैमाने पर कालाधन निवेश कर रखा है। राज्य सरकार की ओर से वरीय अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को पहले याचिका की वैधता पर सुनवाई करने को कहा है। अदालत ने कहा कि न्याय और राज्य के हित में कोर्ट अवकाश में भी इसकी सुनवाई कर रही है। सरकार की ओर से आवेदन देकर चार सप्ताह बाद सुनवाई निर्धारित करने की मांग की गई थी। इस पर चीफ जस्टिस डा. रवि रंजन और जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है। इसमें पहले ही बहुत समय दिया जा चुका है, इसलिए इतना लंबा समय नहीं दिया जा सकता है। इसके बाद अदालत ने मामले में एक जून को सुनवाई निर्धारित की है। अदालत ने कहा कि 31 मई तक मामले से जुड़े सभी पक्ष अपना-अपना जवाब दाखिल कर दें। अदालत अब इस मामले में किसी को कोई समय नहीं देगी।
क्या है मामला?
सीएम को पत्थर खनन पट्टा आवंटित करने और उनके करीबियों द्वारा शेल कंपनी में निवेश को लेकर हाई कोर्ट के अंतरिम निर्देश के खिलाफ सरकार सुप्रीमकोर्ट गई थी। झारखंड हाई कोर्ट ने ईडी को सीलबंद रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। इसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर कहा कि याचिका अभी सुनवाई के लिए स्वीकार भी नहीं की गई है और ईडी ने हाई कोर्ट कोर्ट में सीलबंद रिपोर्ट पेश कर दिया है। उक्त रिपोर्ट की प्रति सरकार को भी मिलनी चाहिए। बिना दस्तावेजों को सरकार इस मामले में जवाब दाखिल नहीं कर पाएगी। एसएलपी में याचिका की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा गया कि इसी तरह के आरोप वाली एक याचिका झारखंड हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो चुकी है। दोबारा उन्हीं तथ्यों को लेकर याचिका दाखिल नहीं की जा सकती।