जिस महिला को कभी डायन कह कर घर-गांव से निकाल दिया गया था आज उस छुटनी महतो के नाम के आगे भारत का श्रेष्ठ सम्मान पद्मश्री जुड़ गया है। झारखंड में डायन-बिसाही के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली छुटनी देवी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज मंगलवार को पद्मश्री से सम्मानित किया। दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड की रहने वाली छुटनी देवी को वर्ष 2021 के लिए पद्मश्री से नवाजा गया।
छुटनी महतो जब 12 साल की थी, तब उसकी शादी धनंजय महतो से हुई थी। उसके बाद उसके तीन बच्चे हो गये। दो सितंबर 1995 को उसके पड़ोसी भोजहरी की बेटी बीमार हो गयी थी। लोगों को शक हुआ कि छुटनी ने ही कोई टोना टोटका कर दिया है। इसके बाद गांव में पंचायत हुई, उसको डायन करार दिया गया और घर में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की गई। छुटनी महतो सुंदर थी, जो अभिशाप बन गया था। अगले दिन फिर पंचायत हुई। पांच सितंबर तक कुछ ना कुछ गांव में होता रहा। पंचायत ने 500 रुपये का जुर्माना लगा दिया। उस वक्त किसी तरह जुगाड़ कर उसने 500 रुपये जुर्माना भरा। लेकिन इसके बावजूद कुछ ठीक नहीं हुआ। इसके बाद गांववालों ने ओझा-गुनी को बुलाया। छुटनी महतो को ओझा-गुनी ने शौच पिलाने की कोशिश की। मानव मल पीने से यह कहा जा रहा था कि डायन का प्रकोप उतर जाता। उसने मना कर दिया तो उसको पकड़ लिया गया और उसको मैला पिलाने की कोशिश शुरू की और नहीं पी तो उसके ऊपर मैला फेंक दिया गया।
वह डायन अब करार दी गयी थी। चार बच्चों के साथ उसको गांव से निकाल दिया गया था। उसने पेड़ के नीचे अपनी रात काटी। वह विधायक चंपई सोरेन के पास गयी। वहां भी कोई मदद नहीं मिली, जिसके बाद उसने थाना में रिपोर्ट दर्ज करा दी। कुछ लोग गिरफ्तार हुए और फिर छूट गये, जिसके बाद उसकी और नरक जिंदगी हो गयी। फिर वह ससुराल को छोडकर मायके आ गयी। मायके में भी लोग डायन कहकर संबोधित करने लगे और घर का दरवाजा बंद करने लगे। भाईयों ने बाद में साथ दिया। पति भी आये। कुछ पैसे की मदद पहुंचायी। भाईयों ने जमीन दे दी। पैसे दे दिये और मायके में ही रहने लगी। पांच साल तक वह इसी तरह रही और ठान ली कि वह डायन प्रथा के खिलाफ अब लड़ेंगी।
1995 में उसके लिए कोई खड़ा नहीं हुआ था। लेकिन उसने किसी तरह फ्लैक के साथ काम करना शुरू किया और फिर उसको कामयाबी मिली और कई महिलाओं को डायन प्रथा से बचाया। अब तो वह रोल मॉडल बन चुकी है। छुटनी ने इस कुप्रथा के खिलाफ ना केवल अपने परिवार के खिलाफ जंग लड़ा बल्कि 200 से भी अधिक झारखंड, बंगाल, बिहार और ओडिशा की डायन प्रताड़ित महिलाओं को इंसाफ दिला कर उनका पुनर्वासन भी कराया। ऐसी बात नहीं है, कि छुटनी को इसके लिए संघर्ष नहीं करने पड़े। लेकिन छुटनी तो छुटनी थी। धुन की पक्की छुटनी कभी खुद को असहज महसूस होते नहीं देखना चाहती थी। जिसने जब जहां बुलाया छुटनी पहुंच गई और अकेले इंसाफ की लड़ाई में कूद गई। उसके इसी जज्बे को देखते हुए सरायकेला- खरसावां जिले के तत्कालीन उपायुक्त छवि रंजन ने डायन प्रताड़ित महिलाओं को देवी कह कर पुकारने का ऐलान किया था।
हालांकि छुटनी को सरकारी उपेक्षाओं का दंश झेलना पड़ा। आज भी छुटनी बीरबांस में डायन रिहैबिलिटेशन सेंटर चलाती है, लेकिन सरकारी मदद ना के बराबर उसे मिलती है। देर सबेर ही सही भारत सरकार की ओर से छुटनी को इस सम्मान से नवाजा गया जो वाकई छुटनी के लिए गौरव का क्षण कहा जा सकता है। इस संबंध में छुटनी ने बस इतना ही कहा, इस कुप्रथा के खिलाफ अंतिम सांस तक मेरी जंग जारी रहेगी। भारत सरकार ने मुझे इस योग्य समझा, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है, लेकिन इस कुप्रथा को जड़ से मिटाने के लिए जमीनी स्तर पर सख्त कानून बनाने और उसके अनुपालन की मुकम्मल व्यवस्था होनी चाहिए। स्थानीय प्रशासन को भी ऐसे मामले में गंभीरता दिखानी चाहिए।