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डूबते सूर्य को व्रतियों ने दिया अर्घ्य, अब उदयीमान का इंतजार..

आस्था के महापर्व छठ पर बुधवार की शाम अद्भुत छटा दिखाई दी। घाटों पर उमड़े सैलाब के बीच व्रतियों ने डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया। बड़ी संख्या में लोगों ने अपने घरों पर ही पर्व मनाया। लोक आस्था के महापर्व छठ पर पूरा झारखंड आस्था के रंग में सराबोर नजर आया। रांची समेत राज्य के हर शहर और हर कस्बे की गलियों में छठी मइया के गीत गुंजायमान हुए। सड़कें और गलियां सजी रहीं। घाट चकाचक दिखाई दिये। कोरोना संक्रमण को देखते हुए बड़ी संख्या में लोगों ने अपने घरों की छत पर छठ पूजा किया।

वहीं सरकारी आदेश मिलने के बाद घाट पर पहुंचकर भगवान को अर्घ्‍य देने वालों की संख्या भी कम नहीं रही। शाम चार बजे से ही अल्बर्ट एक्का चौक के पास स्थिति चडरी तालाब पर लोग पहुंचने लगे। कई लोग दंडवत होकर घाट पर पहुंचते दिखे। लोगों की सुविधा के लिए दोपहर से ही पुलिस ट्रैफिक व्यवस्था संभालती हुई दिखी। घाट पर व्रतियों के लिए बैरिकेडिंग की गई थी। इसके साथ ही नहाने के बाद कपड़ा बदलने की भी व्यवस्था थी।

बिहार और झारखंड का छठ सबसे बड़ा पर्व है। यही कारण है कि इसे लोक आस्था का महापर्व कहा जाता है। यह चार दिन तक चलता है। चार दिवसीय महापर्व छठ 8 नवंबर, 2021 सोमवार को नहाय-खाय के साथ ही शुरू हुआ। 9 नवंबर मंगलवार के दिन खरना का व्रत किया गया। 10 नंवबर बुधवार को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य दिया गया। वहीं 11 नवंबर गुरुवार यानी कि कल उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। और इसके साथ ही छठ पूजा का समापन हो जाता है।

ऐसी मान्यता है कि सूर्य षष्ठी यानी कि छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के वक्त सूर्यदेव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए संध्या अर्घ्य देने से प्रत्यूषा को अर्घ्य प्राप्त होता है। प्रत्यूषा को अर्घ्य देने से इसका लाभ भी अधिक मिलता है। मान्यता यह है कि संध्या अर्घ्य देने और सूर्य की पूजा अर्चना करने से जीवन में तेज बना रहता है और यश, धन , वैभव की प्राप्ति होती है। शाम को अस्ताचलगामी सूर्यदेव को पहला अर्घ्य दिया जाता है इसलिए इसे संध्या अर्घ्य कहा जाता है। इसके पश्चात विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। संध्या को अर्घ्य देने के लिए छठव्रती पूरे परिवार के साथ दोपहर बाद ही घाटों की ओर रवाना होते हैं। इस दौरान पूरे रास्ते कुछ व्रती दंडवत करते जाते हैं। सूर्य देव को अर्घ्य देने से पहले रास्ते भर उन्हें जमीन पर लेटकर व्रती प्रणाम करते हैं। दंडवत करने के दौरान आस पास मौजूद लोग छठव्रती को स्पर्श कर प्रणाम करते हैं, ताकि उन्हें भी पूण्य की प्राप्ति हो सके।