जमशेदपुर की दो संस्थाएं दृष्टिहीन लोगों की दुनिया कर रहीं रोशन..

Jharkhand: बिना आंख के आप दुनिया की संरचना की कल्पना भी नहीं कर सकते आंखों के बिना मानव का जीवन एक गहरे अंधकार की तरह होता है। किसी क्षण आंख न हो और उसे किसी और की आंख मिल जाए तो दुनिया कितनी हसीन हो जाएगी, यह उस व्यक्ति से ज्यादा कोई नहीं समझ पाएगा। जमशेदपुर में शहर की दो संस्थाएं दृष्टिहीन लोगों की दुनिया रोशन करने में जुटी हैं। धीर-धीरे इन संस्थाओं की पहल रंग ला रही है और लोग नेत्रदान की ओर कदम बढ़ाने लगे हैं।

निःशुल्क सेवाएं प्रदान करती सभी संस्था….
एक साल में रोशनी संस्था और मारवाड़ी महिला मंच ने नेत्रदान अगला लेख अभियान के तहत मरणोपरांत दर्जन भर लोगों से नेत्रदान करा है। इनमें डॉक्टर पुत्र, व्यवसायी की मां, घरेलू महिलाएं शामिल हैं। शहर के शिशु रोग विशेषज्ञ बाराद्वारी निवासी डॉ. आरके अग्रवाल के छोटे पुत्र निशांत अग्रवाल (28) के निधन के बाद परिजनों ने दोनों आंखें दान कर दी थी। आदित्यपुर सिटी पैलेस नि ऐप पर पढ़ें देवी अग्रवाल (73) के निधन पर परिजनों ने उनकी दोनों आंख दान कर दी। इसमें रोशनी संस्था की अध्यक्ष तरु गांधी, सचिव परविंदर, डॉ. अजय गुप्ता (नेत्र रोग विशेषज्ञ) और सुशील खीरवाल ने अहम भूमिका निभाई। खीरवाल ने बताया कि लोगों में जागरूकता आ रही है। नेत्रदान के लिए लोग स्वयं संपर्क कर रहे हैं। इस काम के लिए संस्था सभी सेवाएं निःशुल्क प्रदान करती हैं।

एक आंख से किया जा रहा दो कॉर्निया प्रत्यारोपित….
वर्तमान में एक व्यक्ति के निधन के बाद चार लोगों की अंधेरी जिंदगी में उजाला बिखेर सकता है। पहले दोनों आंखों से दो ही लोगों को कॉर्निया मिल पाता था, लेकिन नई तकनीक आने के बाद से एक आंख से दो कॉर्निया प्रत्यारोपित किया जा रहा है। डी मेक से होने वाला यह प्रत्यारोपण देश के हर बड़े आंखों के अस्पताल में शुरू हो चुका है। इसमें खास बात यह है कि व्यक्ति के मरने के बाद उसकी पूरी आंख नहीं बदली जाती। केवल रोशनी वाली काली पुतली ही ली जाती है। व्यक्ति की मृत्यु के छह घंटे तक ही कॉर्निया प्रयोग में लाई जा सकती है। आई बैंक एसोसिएशन ऑफ इंडि मुताबिक देश में अभी 25 लाख लोग ऐसे हैं, जिन्हें कॉर्निया की लेख जरूरत है। अगर उन्हें समय रहते किसी का कॉर्निया मिल जाए त वे प्रकृति की खूबसूरती को देख सकते हैं।

30 लाख फंड हुआ है आवंटित….
एमजीएम अस्पताल में आई बैंक खोलने की योजना फाइलों में दबकर रह गई है। इससे नेत्रहीनों की रोशनी लौटने की आस भी खत्म हो गई है। चार साल पहले स्वास्थ्य विभाग ने एमजीएम अस्पताल में आई बैंक खोलने का निर्देश दिया था। इसके लिए 30 लाख फंड भी आवंटित हुआ था। लेकिन आई बैंक से संबंधित उपकरण की खरीदारी अबतक नहीं हो पाई है। उक्त फंड में कुछ उपकरणों की खरीदारी राज्य स्तर से होनी है, जबकि कुछ स्थानीय स्तर पर। आई बैंक खोलने की अनुमति मिलने के बाद कोवि प्रशिक्षित डॉक्टर और कर्मचारियों की टीम उपलब्ध है। आई बैंजा खुलने से नेत्रदान और कॉर्निया ट्रांसप्लांट दोनों आसानी से हो सकेगा।