राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 24 से 26 मई तीन दिवसीय झारखंड दौरे पर थीं। दौरे के दौरान राष्ट्रपति राज भवन रांची में रहीं थी।आपको बता दें की द्रौपदी मुर्मू छह साल तक झारखंड की राज्यपाल रह चूंकि हैं। इस वजह से राज भवन से उनका अलग कनेक्शन है और ऐसे में वो इन तीन दिनों काफी नॉस्टैल्जिक महसूस की हैं। रांची स्थित राजभवन अपने बेमिसाल आर्किटेक्चर, बेहतरीन वास्तु और अद्भुत सौंदर्य को लेकर ब्रिटिश काल से ही आकर्षण का केंद्र रहा है।झारखंड का जन्म बेशक एक राज्य के तौर पर 15 नवंबर 2000 को हुआ है, लेकिन रांची स्थित राजभवन का इतिहास 9 दशकों से भी ज्यादा पुराना है। रांची को शुरू से उसके बेहतरीन जलवायु और प्राकृतिक सौंदर्य के कारण बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी। उसी दौरान राजभवन का निर्माण हुआ। आपको जानकर हैरानी होगी की ये भवन पूरे देश की गिनी-चुनी ऐसी बिल्डिंग्स में से है, जो सीक्रेट भूमिगत सुरंग से जुड़ी है। इस सुरंग में जाने के लिए दो द्वारों के निशान राजभवन के दरबार हॉल और डाइनिंग हॉल के पास मौजूद हैं। ऐसा माना जाता है कि इन द्वारों से जो सुरंग कनेक्ट होती थी, वह कहां तक जाती थीं, इसका पता आज तक किसी को नहीं है। यहां तक कि झारखंड राजभवन की वेबसाइट में भी इन द्वारों और इनसे जुड़ी सुरंग के बारे में जिक्र है। झारखंड राजभवन की वेबसाइट में बताया गया है कि राजभवन के ग्राउंड फ्लोर में दो ट्रैप डोर्स हैं जो भूमिगत सुरंगों से जुड़े हुए हैं और ये सुरंगें किसी गुप्त स्थान तक जाती हैं।
करीब 7 लाख रुपए की लागत में बनाया गया था ब्रिटिश शासनकाल में राजभवन
रांची डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के मुताबिक इस दो मंजिला भवन को ब्रिटिश शासनकाल में करीब सात लाख रुपये में बनाया गया था। कहा जाता है की इस भवन का सबसे इंट्रेस्टिंग पार्ट इसका सुरंग है, जो अब सिर्फ निशान भर बाकी रह गया है। बता दें की दरबार हॉल के पास सुरंग के पहले द्वार और डायनिंग हॉल के पास दूसरे द्वार के निशान मौजूद हैं और इन द्वारों को कब स्थायी तौर पर बंद किया गया, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। ऐसा कहा जाता है की अंग्रेजों के जमाने में किसी समस्या से बच के निकलने के लिए कई भवनों में सुरंगों का निर्माण किया जाता था। बता दें की झारखंड का राजभवन ब्रिटिश शासनकाल में साल 1930 में बनना शुरू हुआ था और एक साल में 1931 में करीब सात लाख की लागत से ये बनकर तैयार हो गया था। उस वक्त इंग्लैंड में जॉर्ज पंचम का शासन था और झारखंड इंटीग्रेटेड बिहार का हिस्सा था।
गर्मी में भी ठंडक की अनुभूति है रांची स्थीथ राजभवन
ब्रिटिश वास्तुकला से प्रेरित इस भवन में स्थानीय परिवेश का भी ध्यान रखा गया था।ये कहना है हेरिटेज एक्टिविस्ट श्रीदेव सिंह का, उन्होनें बताया की इस भवन की छत में रानीगंज के टाइल्स का इस्तेमाल किया गया है जिससे गर्मी में भी ठंडक की अनुभूति होती है। बता दें की राजभवन परिसर 62 एकड़ में फैला हुआ जिसमें से 52 एकड़ में राजभवन परिसर और दस एकड़ में ऑड्रे हाउस नाम की प्राचीन इमारत है। इतना ही नहीं इस भवन की छत 18 से 20 फीट ऊंची है वहीं दीवारें 14 ईंच मोटी हैं। भवन की छत के लिए जिन टाइल्स का इस्तेमाल किया गया था उनमें से कुछ पर मेड इन इंग्लैंड भी लिखा हुआ है।
एंटीक वस्तुओं को राजभवन में अब भी संभाल कर रखा गया
राजभवन के ग्राउंड फ्लोर में दरबार हॉल, डाइनिंग हॉल, रिक्रिएशन रूम, वेटिंग रूम, सीटिंग रूम और ऑफिस हैं। वहीं पहले तल्ले पर राज्यपाल का निवास स्थान, प्रेसिडेंशियल ऑफिस और गेस्ट सुइट्स हैं। राजभवन में रखी गयीं महत्वपूर्ण एंटीक वस्तुओं में ब्रिटिश काल में बना केरोसिन से चलने वाला पंखा और रेफ्रिजरेटर भी है। इनके अलावा कई अन्य वस्तुओं को यहां संभाल कर रखा गया है।
1796 में बनी एंग्लो फ्रेंच की 12 डैनिएल पेंटिंग्स है लगी
रांची के भव्य राजभवन के दरबार हॉल में 12 पेंटिंग्स लगी हैं जो एंग्लो फ्रेंच आर्टिस्ट डैनिएल के द्वारा 1796 में बनाई गई थी। इन पेंटिंग्स के अलावे दरबार हॉल में झारखंड के मशहूर फोटोग्राफर बिशु नंदी की खींची गयीं तस्वीरें भी दीवारों पर लगाईं गईं हैं। उनकी तस्वीरों में झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और ट्राइबल लाइफ का परिचय मिलता है। यहां एक आर्ट गैलरी है, जिसमें झारखंड की संस्कृति को दिखाती पेंटिंग, सोहराई पेंटिंग, कृत्रिम ऑक्टोपस, कृत्रिम पहाड़, झरना आादि कई मनमोहक पेंटिंग शामिल हैं। दरबार हॉल में एक शानदार झूमर भी लगा हुआ है जो ब्रिटिश काल की कहानी कहता है। यहां के डायनिंग हॉल में एक बार में बैठकर 32 लोग भोजन कर सकते हैं। राजभवन के रिक्रिएशन रूम में ब्रिटिश काल का एक बिलियर्ड टेबल भी है।
250 किस्म के 15 हजार से अधिक गुलाब के फूल लगें हैं राज भवन के गार्डन में
राजभवन परिसर में कई गार्डनस हैं, जहां 15 हजार से अधिक गुलाब के फूल लगे हुए हैं जो 250 किस्म हैं। राजभवन के गार्डन के नाम महान लोगों के नाम पर हैं। भवन में एक अकबर गार्डन है, जिसे 2005 में नया स्वरूप दिया गया था। इसमें गुलाबों की सैकड़ों प्रजातियां हैं। राज भवन के एक बड़े हॉल का नाम बिरसा भी मंडप है, जहां सांस्कृतिक गतिविधियां आयोजित होती हैं। यहां एक किचन गार्डन है जिसमें लौंग, इलायची, दालचीनी, तेजपत्ता समेत कई मसालों के पौधे हैं। इसके अलावा गाजर, बैंगन और टमाटर भी है। यह सभी सब्जियां ऑर्गेनिक तरीके से उगाएं जाते हैं। यहां गोबर से खाद बनाई जाती है और एक गौशाला भी है। भवन में एक हर्बल मेडिसिनल प्लांट है, जिसमे 35 तरह की जड़ी-बूटियां हैं। इसके अलावा रुद्राक्ष और कल्पतरू के पेड़, पीला बांस, इलायची समेत कई तरह के फल हैं। इनमें संतरा, थाई अमरूद, एप्पल बेर, कई तरह के नींबू हैं। अनेक तरह के पेड़-पौधे भी हैं। गार्डन परिसर में 9 फव्वारे हैं। बच्चों के लिए खेलने और झूलने की व्यवस्था है।राजभवन की खूबसूरती को देखने के लिए यह गार्डेन हर साल जब आम लोगों के लिए खोला जाता है, हर रोज लाखों की तादाद में लोग पहुंचते हैं।