झारखंड में घटी आदिवासियों की संख्या, कुछ सालों में आदिवासियों की आबादी 10% तक घटी..

रांची : झारखंड में आदिवासियों की आबादी तेजी से सिमट रही है। इनसे इनके अस्तित्व पर आए संकट की आहट महसूस होने लगी है। झारखंड की आबादी प्रति वर्ष ढाई प्रतिशत के दर से बढ़ रही है। जबकि झारखंड में आदिवासियों की घटती संख्या अब चिंता का विषय बन रहा है। सरकार की ओर से विभिन्न बैठकों में देश और राज्य में आदिवासियों की घटती संख्या पर विचार विमर्श किया जा रहा है। लेकिन अभी तक समितियां इसके पीछे के कारण तलाश नहीं पाई है। झारखंड में आदिवासियों की संख्या पिछले 7 दशक में 9 से 10 फीसदी तक घट गई है। झारखंड में करीब 26 फीसदी ही आबादी आदिवासियों की है। यही कारण है कि जनगणना 2021 में राज्य के आदिवासियों के लिए अलग सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रावधान करने के लिए राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है। गृह विभाग की तरफ से जारी संकल्प में राज्य सरकार ने अलग सरना धर्म कोड के लिए आदिवासियों के घटती आबादी दर और भाषा संस्कृति को आधार बनाया है। आदिवासी सरना समुदाय पिछले कई सालों से धार्मिक अस्तित्व, भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए जनगणना कोड में प्रकृति पूजक सरना धर्मावलंबियों को शामिल करने की मांग को लेकर संघर्ष करता आया है। आदिवासियों के घटती आबादी का कारण इसे भी माना गया है कि जनगणना के समय आदिवासी दूसरे राज्य में काम करने के लिए चले जाते हैं। बता दें कि सरगना धर्म कोड से आदिवासियों की सही जनसंख्या की जानकारी मिल सकेगी।

एक ओर आजादी के बाद देश में बढ़ती जनसंख्या सरकार के लिए चुनौती बन गई है तो वहीं दूसरी ओर आदिवासियों की घटती संख्या ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। 1951 में की गई जनगणना के अनुसार झारखंड की कुल आबादी का 35.8% आदिवासी शामिल थे, लेकिन 2011 में ताजा सर्वेक्षण के बाद ये 10% घट गया है। आदिवासियों की संख्या 26.11% तक सिमट कर रह गई है। घटती जनसंख्या का कारण यह भी हो सकता है कि असम, पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों में झारखंड के आदिवासी बड़ी संख्या में है। अंडमान में झारखंड के ज्यादातर आदिवासी बसे हैं।

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