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झारखंड के युवाओं के दिल में बसी “दहलीज” की प्रेम कहानी..

फिल्म को समाज का आईना कहा जाता है. क्योंकि हम समाज में जो कुछ देखते हैं. उसे पटकथा का रूप देते हैं. उस पटकथा को फिल्म निर्देशक चिलचित्र का रूप दे डालते हैं. वैसे भारतीय सिनेमा का इतिहास काफी पुराना रहा है. लेकिन झारखंड प्रदेश में जनजातिय भाषाओं में फिल्म का निर्माण करना महज एक कल्पना मात्र थी. लेकिन सिमडेगा के निवासी पुरूषोत्तम कुमार ने जनजातिय भाषा में फिल्म का निर्माण कर मिशाल कायम किया है. झारखंड में कई फिल्म खोरठा सहित अन्य जनजातिय भाषाओं में बनाए गए. इसके अलावा नागपुरी गानों पर लोग थिरकते नजर आए हैं. लेकिन फीचर फिल्म की कल्पना शायद ही किसी ने की होगी. वर्तमान परिदृश्य को देखें तो इस कल्पना को महज कल्पना मात्र नहीं रहने दिया गया. बल्कि पुरूषोत्तम ने नागपुरी भाषा में फीचर फिल्म का निर्माण कर समाज को एक दिशा दी है. तीन साल की मेहनत के बाद पुरूषोत्तम की लिखित और निर्देशित फिल्म “दहलीज” 06 मई 2022 को एक साथ तीन राज्यों के सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. जो कि बॉक्स ऑफिस में धूम मचा रही है और पहले दिन सभी शो हाऊसफुल रहे हैं.

फिल्म का नाम दहलीज क्यों ?
फिल्म के नाम को लेकर दर्शकों के मन में कई सवाल आ रहे हैं कि आखिर इस फिल्म का नाम “दहलीज” क्यों? लेकिन यातनाओं की शिकार हुई रानी से यह सवाल कोई पूछे. तो उसे इसका जवाब सहज ही मिल जाएगा. जंजीरों की जकड़न में कैद रानी अपने पिता से हर सुबह सिर्फ यही कहते नजर आती है “मोर बेड़ी खोल बाबा, मोय के बाहर जाय ला है”. रानी घर की दहलीज को लांघ कर बाहर की दुनिया में औरों की तरह जीना चाहती है. लेकिन उसके पैरों में पड़ी बेड़ियां और हांथों के जंजीर, उसे दहलीज पार करने से हरपल रोक देते हैं. घर के चौकठ के अंदर कैद रानी हर रोज सिर्फ अपनी मां को याद करती है, उसी की तस्वीरों से बात करती है. लेकिन घर के दहलीज को पार नहीं कर पाती.

फिल्म में पवन की भूमिका…
पवन “दहलीज” के मुख्य किरदारों में से एक है, जो कि रानी की जिंदगी को पूरी तरह से बदल देता है. स्कूल के रास्ते में दोनों की पहली मुलाकात होती है. फिर धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के करीब आने लगते हैं. इसी बीच पवन रानी की मदद करता है और रानी की जिंदगी में आ रही कठिनाईयां दूर हो जाती है.

दर्शकों को लुभा रही रानी और पवन की प्रेम कहानी…
इस फिल्म की शुरूआत ही रोमांस से होती है. जहां पवन रानी को पहली नजर में ही पसंद करने लगता है. लेकिन रानी उसे देखती तक नहीं. लेकिन धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के दोस्त बनते हैं और इनका प्यार गहराता चला जाता है. पवन की वहज से ही रानी की जिंदगी बदलती है और वो घर के दहलीज को पार कर स्कूल जाना शुरू करती है.

फिल्म का सारांश…
रानी जब छोटी थी. तो उसकी मां को उसके पिता पर शक हुआ. रानी की मां को शक था कि उसके पति का किसी दूसरी महिला के साथ संबंध है. जिसे लेकर पति-पत्नी में झगड़े बढ़ने लगे. इस शक को दूर करने के लिए रानी के पिता ने दूसरी महिला को घर बुलाया. तो रानी की मां उससे उलझ पड़ी. इसी बीच रानी के पिता ने उसकी मां को थप्पड़ मारा. जिसके कारण वो गिर पड़ी और सर पर गहरा चोट आने के कारण इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी. इस घटना के बाद रानी की मानसिक संतुलन बिगड़ गयी और वो चिड़चिड़े स्वभाव की हो गयी. गांव के बच्चों के साथ झगड़ना और उनके साथ मारपीट करना आम हो गया. इसी बीच रानी के पिता दूसरी महिला से शादी कर लेते हैं और रानी उसे मां मानने से इंकार कर देती हैं. रानी अपनी सौतेली मां को अपनी मां का कातिल मान बैठती है. रानी की मानसिक संतुलन बिगड़ता देख ग्राम सभा उसे जंजीरों में कैद करने का फैसला सुनाती है. जिसके बाद उसके हांथ-पैर बांध दिए जाते हैं और माता-पिता भी उससे अलग रहने लगते हैं. इस बीच पवन की एंट्री रानी की जिंदगी में होती है और सच्चाई से पर्दा उठता है. तब जाकर रानी सौतेली मां को माफ कर अपने परिवार के साथ रहने को तैयार होती है.

रानी के किरदार में आयुषी भद्रा…
खुद की जिंदगी को जीना और किसी के किरदार को निभाने में काफी फर्क है. लेकिन आयुषी ने रानी का जो किरदार निभाया है. वो काबिले तारीफ है. क्योंकि पल-पल में फेस एक्सप्रेशन के साथ बॉडी लैंग्वेज को चेंज कर पाना किसी के लिए भी इतना आसान नहीं होता. खासकर किसी हिन्दीभाषी कलाकार के लिए जनजातिय भाषा में स्क्रिप्ट को किरदार में डालना. इन सबके बावजूद आयुषी ने रानी के किरदार को बखूबी निभाया है. ऐसा भी कहा जा सकता है कि इस किरदार को आयुषी के अलावा शादय ही कोई निभा पाए.

पवन के किरदार में रोशन सौरभ शर्मा…
असल जिंदगी में भी रोशन रंगीले मिजाज के हैं. लेकिन फिल्म के दौरान इन्होंने पवन का जो किरदार निभाया है. उससे स्पष्ट है कि रोमांटिक सीन के लिए रोशन परफेक्ट हैं. इस फिल्म में पवन रानी को प्रेम की परिभाषा पढ़ाते नजर आ रहे हैं और स्क्रिप्ट में जिन शब्दों का चयन किया गया है. उसे रोशन ने बखूबी निभाया है. पवन और रानी की प्रेम कहानी की अनूठी झलक “अब यू ना तोय मो के” गाने में नजर आती है.

फिल्म में खास…
“दहलीज” फिल्म के जरिए झारखंड की परंपरा, संस्कृति, प्रकृति और महापुरूषों को दिखाने का काम किया गया है. जहां सिलवट पर चावल पीसते हुए रानी की सौतेली मां नजर आ रही है. वहीं जिस कमरे में रानी कैद रहती है, वहां झारखंड के महानायकों की तस्वीरें लगी होती हैं. झारखंड की प्रकृति से जुड़े महुआ पेड़ को फिल्म में काफी बेहतर तरीके से दिखाया गया है, इसके अलावा जगह-जगह पर झारखंड की संस्कृति नजर आ रही है. जिसमें चार चांद लगाने का काम नागपुरी भाषा ने किया है.

फिल्म में रस की प्रधानता…
“दहलीज” नागपुरी फीचर फिल्म में रस का भरपुर उपयोग किया गया है. जिसमें मुख्य रूप से श्रृंगार रस, भयानक रस, रौद्र रस और करुण रस नजर आ रहे हैं.

फिल्म के किरदार…
“दहलीज” में काम करने वाले सभी कलाकार झारखंड के निवासी हैं. जिसमें मुख्य भूमिका में रानी के रोल में आयुषी भद्रा, पवन के किरदार में रोशन सौरभ शर्मा, छोटी बच्ची की भूमिका में अरूणी झा, पिता के रूप में सुकांत ठाकुर, मां के किरदार में शीतल किस्पोट्टा,प्रिया मुर्मू, दोस्त की भूमिका में शंकर पाठक अहम रोल में नजर आ रहे हैं. वहीं नितेश कुमार, रोहित पांडेय, प्रिया जुन्नी, रोहित पांडेय, निक्की कुमारी, शर्मिठा कुमारी,अशोक गोप, कुलदीप सोरेन, पुरूषोत्तम कुमार, सिकंदर कुमार भी फिल्म में नजर आ रहे हैं.

फिल्म के डायरेक्टर पुरूषोत्तम कुमार कहते हैं…
फिल्म के निर्देशक पुरूषोत्तम कुमार की मानें तो फिल्म के निर्माण में करीब तीन साल का समय लगा है. प्री प्रोडक्शन से पोस्ट प्रोडक्शन और फिर उसे सिनेमाघरों में उतारने में काफी मेहनत हुई है. इसे उन्होंने पूरी टीम की मेहनत और जज्बे का प्रतिफल बताया है.

नायिका की बातें…
फिल्म की नायिका आयुषी भद्रा बताती हैं कि वे हिन्दीभाषी हैं. इसलिए उन्हें नागपुरी भाषा के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी. लेकिन फिल्म में निर्देशक के रूप में काम कर रहे पुरूषोत्तम कुमार और निर्माता यतीन्द्र कुमार मिश्र के प्रयास से उन्होंने नागपुरी भाषा सीखी. जिसके बाद फिल्म को अंजाम तक पहुंचाने में सफल हुई.

नायक का संदेश…
फिल्म के नायक रोशन सौरभ शर्मा की मानें तो वे एक युवा हैं और युवाओं को निरंतर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. वे भी हिन्दीभाषी हैं, लेकिन उन्होंने नागपुरी फिल्म को चैलेंज के रूप में अपनाया और अपना शत प्रतिशत देने का सोचा. जिसके बाद वे नागपुरी भाषा में फीचर फिल्म कर पाए.

सॉन्ग्स..म्यूजिक..
फिल्म में मुख्य रूप से दो गाने काफी प्रचलित हो रहे हैं. जिनमें से एक है “अब यूं ना तोय मोके” और “मुर्गा नी पाले, मछली नी पाले” है. पहला सॉन्ग रोमांटिक है, वहीं दूसरा सॉन्ग पिकनिक की मस्ती को दर्शाता है. फिल्म के म्यूजिक डायरेक्ट का काम मनीष रॉय ने किया है.

अपील..
झॉलीवुड और जनजातिय भाषा को बढ़ावा देने के लिए थिएटर में जाकर “दहलीज” फिल्म को जरूर देखें. ताकि इस तरह की फिल्मों के निर्माण में आप सभी का सहयोग बना रहे और हम कलाकारों को एक नया आयाम मिल सके.

क्या कहते हैं फिल्म के पीआरओ?
फिल्म के पीआरओ प्रणय प्रबोध बताते हैं कि “दहलीज” फिल्म की कहानी लोगों के मन-मस्तिष्क और दिल में बस रही है. क्योंकि फिल्म की पटकथा में उन सभी भावों को जगह दी गयी है. जो लोगों के दिलों को छू जाए. खासकर पवन और रानी की प्रेम कहानी के दौरान हुए संवाद रोचक लगते हैं. वहीं रानी का अपने सौतेली मां के प्रति क्रूर रूप, उसके दूसरे चरित्र को दर्शाता है. स्कूल में सहपाठी रानी का मजाक उड़ाते हैं, लेकिन वो हतोत्साहित न होकर आगे बढ़ती जाती है. इस फिल्म में झारखंड की सच्ची तस्वीर को दर्शाने का प्रयास किया गया है. लेकिन सबसे अधिक लुभाने वाला जो सीन है वो है पिकनिक का सीन, जहां डायरेक्टर पुरूषोत्तम कुमार खुद को नाचने से रोक नहीं पाते और “जे नाची से बाची” की याद दिलाते हैं. यह फिल्म झॉलीवुड के उदय की गाथा रचेगा.