झारखंड सरकार लाह की खेती को कृषि का दर्जा देने जा रही है। इतना ही नहीं, इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य भी तय किया जाएगा। गुरुवार को सीएम हेमंत सोरेन ने इसकी घोषणा की। सीएम ने कहा कि उनकी सरकार का संकल्प है किसानों को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाना । इस दिशा में कई योजनाएं चलाई जा रही है, जिसके जरिए किसानों को अनुदान, ऋण और अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।
नामकुम स्थित भारतीय प्राकृतिक राल व गोंद संस्थान में आयोजित दो दिवसीय किसान मेला में सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि एक वक्त था, जब देश और दुनिया में लाह की खेती के लिए झारखंड की अलग पहचान थी लेकिन धीरे-धीरे इसमें गिरावट आने लगी । लेकिन मैं ये गर्व से कह सकता हूं कि झारखंडवासियों के खून में लाह की खेती है। सीएम ने कहा कि सरकार लाह समेत अन्य वन उत्पादों का वैल्यू एडिशन कर उसे पुरानी पहचान दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है।
झारखंड में करीब 20 हज़ार टन लाह का उत्पादन होता है। इसपर सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि लाह की खेती के लिए हम सिर्फ 15 प्रतिशत क्षमता का इस्तेमाल कर 20 हज़ार टन लाह का उत्पादन कर रहे हैं। ऐसे में इसके लिए अगर पूरी क्षमता का इस्तेमाल किया जाए तो फिर रिकॉर्ड उत्पादन कर झारखंड पूरे देश दुनिया में जाना जाएगा । भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान इसमें एक अहम किरदार निभाता आ रहा है और आगे भी निभाएगा।
इसके अलावा सीएम ने राज्य के किसानों को लेकर कई और बातें भी की। उन्होंने कहा कि किसानों को उनका उचित हक और अधिकार देने के लिए सरकार हर संभव कदम उठाएगी। हाल ही में सरकार ने मुख्यमंत्री पशुधन योजना शुरू की साथ ही किसानों के ऋण को भी माफ किया जा रहा है। झारखंड में कृषि और कृषि उत्पादों के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए नए गोदाम और फूड प्रोसेसिंग यूनिट बनाने पर सरकार विशेष जोर दे रही है। पूरे राज्य में लगभग 500 नए गोदाम और 224 फूड प्रोसेसिंग यूनिट बनाए जा रहे हैं।
सीएम ने किसानों को देश की रीढ़ बताया और कहा कि राज्य सरकार उनकी समस्याओं को लेकर हमेशा चिंतित है। सरकार द्वारा किसानों की आमदनी को बढ़ाने को लेकर कार्य योजना तैयार की जा रही है। सरकार ने इस वर्ष लक्ष्य की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा धान की खरीदारी की है।
क्या होता है लाह
चलिए अपको बताते है कि लाह क्या होता है। दरअसल केरिना लाका नामक कीट से लाह उत्पादित होता है। ये कीड़े पलास, कुसुम तथा बेर के पेड़ों पर पाले जाते हैं और वो शाखाओं से रस चूसकर भोजन प्राप्त करते हैं। वहीं अपनी सुरक्षा के लिए ये कीट राल का स्राव कर एक कवच तैयार कर लेते हैं और यही लाह होता है। इसे काटी गई टहनियों से खुरच कर निकाला जाता है।
लाह एक बहुउपयोगी उत्पाद है जिसका इस्तेमाल मुख्य रूप से चूड़ी, लहठी, सील, चपड़ा, वार्निश, फलों व दवा पर कोटिंग, पॉलिश व सजावट की वस्तुएं तैयार करने में किया जाता है। किसानों को इसकी अच्छी कीमत मिलती है, बात करें रेट की तो इसकी कीमत 500-700 रुपए किलो तक पहुंच गई थी।