रांची : भाकपा माओवादियों का रीजनल कमांडर 15 लाख इनामी मिथिलेश सिंह उर्फ दुर्योधन महतो उर्फ बड़ा बाबू उर्फ बड़का दा उर्फ अवधेश ने शुक्रवार को विधिवत रूप से आत्मसमर्पण कर दिया। उसने डोरंडा स्थित आइजी रांची के कार्यालय परिसर में झारखंड पुलिस व सीआरपीएफ के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण किया। वह मूल रूप से धनबाद जिले के तोपचांची थाना क्षेत्र के गेंद नवाडीह गांव का रहने वाला है। दुर्योधन ने आत्मसमर्पण के मौके पर यह स्वीकारा कि उसकी सबसे बड़ी घटना हजारीबाग के चुरचू की है, जहां सीआरपीएफ के वाहन को विस्फोटक से उड़ाया था। उक्त घटना में 15 से ज्यादा जवान बलिदान हो गए थे। तीन दशक से आठ जिलों के आतंक रहे मिथिलेश पर नक्सल कांड से संबंधित 104 मामले दर्ज हैं, जिनमें सबसे अधिक बोकारो में 58, चतरा में पांच, सरायकेला-खरसांवा जिले में चार, खूंटी में तीन, चाईबासा में दो, हजारीबाग में 26, धनबाद में एक व गिरिडीह जिले में पांच मामले दर्ज हैं। घोर नक्सल प्रभावित झुमरा व पारसनाथ का इलाका उसके लिए सबसे सुरक्षित रहा है।
राज्य में नक्सल विरोधी अभियान में पुलिस को सफलता..
आत्मसमर्पण के मौके पर आइजी अभियान अमोल वीनुकांत होमकर ने कहा कि झारखंड में नक्सली अपने अंतिम दिन गिन रहे हैं। एक-एक कर बड़े नक्सली या तो पकड़े जा रहे हैं या फिर आत्मसमर्पण कर रहे हैं। पिछले दो वर्षों में नक्सल विरोधी अभियान में पुलिस को भारी सफलता मिली है। अब निर्णायक लड़ाई चल रही है और बहुत जल्द ही झारखंड नक्सल मुक्त होगा, ऐसी उम्मीद है। पुलिस की दबिश और राज्य सरकार की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति का ही नतीजा है कि मिथिलेश ने पुलिस के सामने हथियार डाला है। अब वह समाज की मुख्य धारा से जुड़कर अपने परिवार के साथ सामान्य जीवन जी सकेगा।
मैट्रिक व आइटीआइ पास है मिथिलेश, बेरोजगारी में बना था नक्सली..
पूछताछ के दौरान मिथिलेश ने बताया कि उसने मैट्रिक करने के बाद फीटर ट्रेड से आइटीआइ किया था। वह बेरोजगार था और उसके गांव में नक्सलियों का आना-जाना था, तब 1991 में वह नक्सली संगठन में शामिल हो गया था। नक्सली संगठन में उसे हथियार चलाने से लेकर विस्फोटक प्लांट करने तक का प्रशिक्षण मिला। विभिन्न नक्सल अभियानों में वह शामिल रहा। वर्ष 2004 में उसे गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद पुन: वर्ष 2013 में जेल से छुटने के बाद दोबारा नक्सली बना था।