सुप्रीम कोर्ट का सवाल: विमान अधिनियम के तहत CID कैसे कर रही जांच?…

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को झारखंड सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि राज्य की पुलिस CID कैसे एक ऐसे मामले की जांच कर रही है, जो विमान अधिनियम के दायरे में आता है. यह मामला भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और मनोज तिवारी के खिलाफ देवघर हवाई अड्डे पर चार्टर्ड विमान को निर्धारित समय के बाद उड़ान भरने की मंजूरी दिलाने के लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) पर दबाव डालने से जुड़ा है.

मामले का संदर्भ

31 अगस्त, 2022 को देवघर हवाई अड्डे पर भाजपा सांसदों का चार्टर्ड विमान उड़ान भरने के लिए तैयार था, लेकिन समय पर उड़ान नहीं भर सका. सूर्यास्त के बाद उड़ान सुरक्षा मानकों के कारण ATC ने विमान को उड़ान भरने की अनुमति देने से इनकार कर दिया. इस घटना के बाद सांसदों सहित नौ लोगों के खिलाफ देवघर के कुंडा पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज की गई. FIR में आरोप लगाया गया कि सांसदों ने ATC कर्मियों पर दबाव बनाकर सुरक्षा प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए उड़ान की अनुमति ली.

सांसदों का पक्ष

सांसदों के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि एविएशन नियमों के अनुसार सूर्यास्त के 30 मिनट बाद भी विमान उड़ान भर सकता है. उन्होंने बताया कि घटना वाले दिन सूर्यास्त शाम 6:03 बजे हुआ, जबकि विमान ने 6:17 बजे उड़ान भरी. यह तय मानदंडों के तहत था. वकील ने दावा किया कि यह मामला राजनीतिक प्रतिशोध के तहत दर्ज किया गया और सांसदों को झूठे आरोपों में फंसाया गया.

हाईकोर्ट का फैसला और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

मार्च 2023 में झारखंड हाईकोर्ट ने इस मामले में दर्ज FIR को रद्द कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विमान अधिनियम, 2020 के तहत बिना पूर्व अनुमति के किसी अपराध की जांच नहीं हो सकती. राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएस ओका और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की. अदालत ने झारखंड सरकार के वकील जयंत मोहन और भाजपा सांसदों की ओर से वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह की दलीलें सुनीं.

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार से सवाल किया कि जब यह मामला विमान अधिनियम के तहत आता है, तो CID पुलिस इसकी जांच कैसे कर सकती है? जस्टिस ओका ने पूछा, “विमान अधिनियम के तहत अपराध की जांच का अधिकार किसके पास है? CID पुलिस इसमें कैसे हस्तक्षेप कर सकती है?” इस पर झारखंड सरकार के वकील ने दलील दी कि विमान से जुड़े विशेष अपराधों के लिए विशेष कानून और तंत्र उपलब्ध हैं. उन्होंने कहा कि इस मामले में जांच जारी रखने के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं थी.

राज्य सरकार का तर्क

झारखंड सरकार के वकील ने कोर्ट को यह भी बताया कि इस तरह के मामलों में पूर्व अनुमति की आवश्यकता के प्रावधानों को अनिवार्य नहीं माना जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह मामला हवाई अड्डे की सुरक्षा प्रोटोकॉल के उल्लंघन से जुड़ा है, और इसमें सांसदों की भूमिका की जांच जरूरी है.

सांसदों की सफाई

निशिकांत दुबे के वकील ने तर्क दिया कि उड़ान समय नियमों का पूरी तरह पालन किया गया था. उन्होंने कहा कि यह घटना राजनीतिक प्रतिशोध का नतीजा है और सांसदों को बदनाम करने के लिए झूठे आरोप लगाए गए हैं.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद झारखंड सरकार की अपील पर फैसला सुरक्षित रख लिया. अदालत ने स्पष्ट किया कि वह जल्द ही इस मामले पर अपना निर्णय सुनाएगी.

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