झारखंड में अनुसूचित जाति व जनजाति के पदाधिकारियों की पदोन्नति संबंधित मामले को लेकर बनाई गई विधानसभा की विशेष कमिटी ने बुधवार को विधानसभा अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो को अपनी रिपोर्ट सौंपी है। जिसमें वर्ष 2007 के बाद झारखंड के मुख्य सचिव और कार्मिक विभाग के प्रधान सचिव के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई करने की अनुशंसा की गई है। झारखंड सरकार के अलग-अलग पदों पर अनुसूचित जाति और जनजाति के पदाधिकारियों को पदोन्नति में आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलने के मामले की जांच को लेकर एक विशेष कमिटी बनाई गई थी।
दरअसल बंधु तिर्की ने विधानसभा के बजट सत्र के दौरान श्रम व नियोजन विभाग में पदोन्नति में आरक्षण के नियमों का पालन नहीं होने का मामला उठाया था। जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने इस कमिटी का गठन किया था। विशेष कमिटी में दीपक बिरुवा के अलावा नीलकंठ सिंह मुंडा और सरफराज अहमद भी शामिल थे।
विशेष कमिटी द्वारा जांच में कार्मिक विभाग द्वारा काम के प्रति लापरवाही किए जाने और नियमों को ताक में रखकर राज्य में 2007 के बाद से अनुसूचित जाति और जनजाति के पदाधिकारियों और कर्मचारियों की पदोन्नति नहीं देकर सामान्य वर्ग को लाभ पहुंचाया गया है।
वहीं 1994 में नियुक्त हुए पदाधिकारियों की जगह 2012 में नियुक्त पदाधिकारियों को पदोन्नति देने बातों के सामने आने के बाद कमिटी द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को रिपोर्ट सौंपते हुए कार्रवाई की मांग की गई हैं। इससे कई कर्मचारी प्रभावित हुए है।
बता दें कि विधानसभा अध्यक्ष को 365 पन्नों की रिपोर्ट में 31 पन्नों में अनुशंसा की गई है। जिसमें राज्य सरकार द्वारा नियुक्ति से संबंधित 31 अक्टूबर 2012 को जारी स्पष्टीकरण पत्र संख्या 12165 की तर्ज पर तत्काल प्रोन्नति के लिए स्पष्टीकरण जारी करके प्रोन्नति पर जारी रोक हटाई जाए।
झारखंड गठन से अब तक एससी और एसटी के वरीय कर्मियों को प्रोन्नति से वंचित कर सामान्य वर्ग के कनीय कर्मियों को दी गई प्रोन्नति को रद्द किया जाए।
झारखंड गठन से अब तक एससी और एसटी के वरीय कर्मियों को, जिन्हें प्रोन्नति से वंचित किया गया है, उन्हें तत्काल प्रभाव से आर्थिक लाभ के साथ प्रोन्नति दी जाए।
नियम विरुद्ध प्रोन्नति की कार्रवाई में शामिल प्रोन्नति समिति के तत्कालीन सभी पदाधिकारियों को चिन्हित करते हुए एससी एसटी एट्रोसिटी (अत्याचार) निवारण कानून के तहत कानूनी कार्रवाई की जाए और विभागीय कार्रवाई शुरू हो। प्रोन्नति समिति में शामिल एससी एसटी के प्रतिनिधि को कर्तव्य के प्रति लापरवाही के तहत विभागीय कार्रवाई शुरू की जाए।
कार्मिक विभाग में असंवैधानिक या नियम विरुद्ध मंतव्य में शामिल सभी लोगों के खिलाफ एससी एसटी अत्याचार निवारण कानून के तहत कानूनी कार्रवाई की जाए। इस क्रम में सेवानिवृत्त पदाधिकारी और कर्मी को सेवानिवृत्ति के आधार पर अपराध से मुक्त नहीं किया जाए, क्योंकि उस मंतव्य से एससी एसटी के सरकारी सेवक को प्रताडऩा झेलना पड़ा है, जो अपराध की श्रेणी में आता है।
झारखंड सरकार के मुख्य सचिव और कार्मिक विभाग के प्रधान सचिव के विरुद्ध कर्तव्य के प्रति लापरवाही और विशेष समिति को दिग्भ्रमित करने एवं एससी एसटी के सरकारी सेवकों को प्रताडि़त किए जाने के आलोक में एससी एसटी अत्याचार निवारण कानून के तहत कानूनी कार्रवाई की जाए। साथ ही इन दोनों पदाधिकारियों के द्वारा विधानसभा को गुमराह करने के लिए विशेषाधिकार हनन का मामला चलाया जाए।
इस विषय से हटकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के प्रोन्नति से संबंधित कोई मामला अगर लंबे समय से न्यायालय में लंबित है तो सशर्त प्रोन्नति प्रदान की जाए।
वर्ष 2008 में वाणिज्य कर विभाग झारखंड में वाणिज्य कर पदाधिकारियों को दी गई प्रोन्नति, जिसमें वरीय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के पदाधिकारियों को प्रोन्नति से वंचित कर कनीय सामान्य वर्ग के पदाधिकारियों को प्रोन्नति दिए जाने के साथ नियम विरुद्ध परंपरा की शुरुआत की गई थी। इस मामले की निष्पक्ष जांच कराने और दोषियों के खिलाफ एससी एसटी एट्रोसिटी एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज कराए जाने की अनुशंसा भी की गई है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इस मामले की गंभीरता समझते हुए बीते साल 24 दिसंबर को ही विशेष कमिटी में शामिल सदस्यों के साथ बैठक कर राज्य में पदोन्नति पर रोक लगा दी है। विशेष कमिटी द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट पर विधानसभा अध्यक्ष ने उम्मीद जताया है कि विधानसभा की ओर से की गई अनुशंसा को सरकार ज़रूर मानेगी और पहले से मानती भी आ रही है। यही परिपाटी भी रही है। विशेष समिति की अनुशंसा और रिपोर्ट सरकार को भेज दी गई है।