रांचीः झारखंड कैडर के आइएएस अफसरों के खिलाफ अनियिमता के सबूत मिलने के बाद भी उन्हें कौन बचा रहा है, इस रहस्य से जल्द ही पर्दा उठेगा। वजह यह है कि एसीबी ने इन अफसरों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति मांगी थी, लेकिन राज्य सरकार ने स्वीकृति का प्रस्ताव टर्न डाउन कर दिया। आखिर इसकी वजह क्या है, यह अपने आप में बड़ा सवाल है। सूत्रों के अनुसार अगर अभियोजन की स्वीकृति मिल गई तो सरकार के कई करीबी इसके जांच में दायरे में आ जाएंगे। इसमें पहला नाम रांची डीसी छवि रंजन का है।
रांची डीसी छवि रंजन की कई मामलों में भूमिका संदिग्ध..
ऐसा बहुत कम सुनने को मिला होगा कि आईएएस की दुनिया में बतौर अपनी पहली पोस्टिंग में ही कोई डीसी अपने कुकृत्यों से बदनामी का दाग लगा बैठे हों। रांची शहर के हेहल अंचल के बजरा मौजा में जमीन की गलत ढंग से जमाबंदी के मामले के बाद सुर्खियों में आए छवि रंजन 5 साल पूर्व कोडरमा में डीसी के रूप में पहली पोस्टिंग में ही अपनी छवि धूमिल कर ली थी। छवि रंजन कोडरमा जिला परिषद परिसर में लकड़ी कटाई के आरोप में फंसे हुए हैं और अभी झारखंड हाईकोर्ट से जमानत पर हैं। फिलहाल रांची में डीसी रहते हुए छवि रंजन ने मात्र दो साल के अंदर जमीन के मामले में अबतक के सबसे बड़े दागी अफसर के रूप में अपनी छवि बना ली है। हाल ही में इन्होंने हाईकोर्ट के अधिवक्ता को भी अपने घर बुलाकर धमकाने का काम किया है, जिसकी शिकायत हाईकोर्ट में की गई है।
पहले से दागदार छवि के अफसर को राजधानी रांची का डीसी बना देने से हेमंत सरकार पर भी उंगलियां उठ रही हैं। कोडरमा में जिला परिषद परिसर में लकड़ी कटाई के मामले अभियुक्त रहे छवि रंजन को राजधानी में डीसी क्यों बना दिया गया? क्यों नहीं हेमंत सरकार ने उनके पूर्व की केस हिस्ट्री पर गौर किया? आखिर हाईकोर्ट से जमानत पर चल रहे आईएएस अफसर को राजधानी में डीसी बनाने की क्या मजबूरी थी? ऐसे कई सवालों से घिरने के बावजूद छवि रंजन की छवि पर अबतक कोई आंच नहीं आई है। सत्ता प्रतिष्ठान में इसके भी मायने निकाले जा रहे हैं।
2011 बैच के आईएएस अफसर छवि रंजन की 2015 में पहली पोस्टिंग कोडरमा में डीसी के रूप में हुई। मात्र चंद महीनों बाद ही उनपर आपराधिक और चोरी का आरोप चस्पां हो गया। रांची में जमीन के मामले में छवि रंजन पर कई आरोप लगे हैं। झारखंड हाईकोर्ट ने भी जमीन के मामले में अलग-अलग तरह के शपथपत्र देने पर कोर्ट फटकार लगा चुका है। अभी इस मामले में सुनवाई लंबित है। रांची प्रमंडल के आयुक्त नितिन मदन कुलकर्णी ने भी रांची के डीसी छवि रंजन के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की थी। कार्रवाई की अनुशंसा करीब 8 माह पहले हुई थी। आयुक्त ने अपनी पूरी रिपोर्ट भू-राजस्व विभाग के अपर सचिव को भी भेजी थी। जिसमें कुल छह अनुशंसा की गई थी।
क्या था मामला?
बता दें कि कोडरमा डीसी रहते हुए छवि रंजन के खिलाफ लकड़ी कटाई कांड पर कार्रवाई की मांग को लेकर विधायक प्रदीप यादव ने 2016 के विधानसभा सत्र में सरकार पर दबाव बनाया था। इसके बाद पूर्व सीएम रघुवर दास ने एक आईएएस अधिकारी सत्येंद्र सिंह को तत्काल हेलीकॉप्टर से जांच के लिए कोडरमा भेजा था। इसके बाद एसीबी के डीआईजी रहे एमआर मीणा ने इसकी जांच की। जांच के बाद प्रथम दृष्टया छवि रंजन को दोषी माना गया। इसके बाद उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 379/34/120बी, भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 13(1) (डी) और भारतीय वन अधिनियम की धारा 33/41 के तहत मामला दर्ज किया गया। इससे बाद छवि रंजन ने अपनी गिरफ्तारी की आशंका के मद्देनजर झारखंड हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की याचिका दायर की।
क्या है आरोप?
छवि रंजन पर आरोप है कि उन्होंने कोडरमा के डीसी रहते हुए जिला परिषद के सरकारी परिसर से पांच बड़े सागवान के पेड़ और एक बड़े शीशम के पेड़ को अवैध रूप से कटवाया, जिसका मूल्य 20-22 लाख रुपए के आसपास बताया गया। इसके बाद छवि रंजन के खिलाफ कोडरमा के मरकच्चो थाने में पी एस केस (83/2015) दर्ज किया गया। कुछ दिनों बाद हजारीबाग के एसीबी विभाग में (केस सं 11/2016) सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत याचिकाकर्ता (छवि रंजन) को नोटिस जारी किया गया था।
बाद में इस मामले को रांची स्थित भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को रेफर किया गया। इस मामले में प्रारंभिक जांच में यह पता चला कि छवि रंजन के मौखिक आदेश पर जिला परिषद परिसर से पेड़ कटवाए गए थे। हालांकि डीसी के अधिवक्ता का तर्क था कि उन्हें इस मामले में साजिश के तहत फंसाया गया है। इस मामले में शुरू में एसीबी ने मामले की जांच अपने हाथ में नहीं लिया था, बल्कि एक नया मामला दर्ज किया, जिसका केस नंबर 76/2015 है। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से कहा कि हमारे मुवक्किल (छविरंजन) ने 03 अक्तूबर 2016 के आदेश के अनुसार, याचिकाकर्ता आईओ के समक्ष पेश हुआ और अपना बयान दर्ज कराया। इसके बाद अंतिम फॉर्म 26 अक्तूबर 2016 को जमा किया गया।
छवि ने डीडीसी को एफआईआर दर्ज करने से रोका था..
बता दें कि विजिलेंस के विशेष पीपी ने कोर्ट में जवाबी हलफनामा दाखिल कर याचिकाकर्ता की जमानत अर्जी का विरोध किया था। उन्होंने जवाबी हलफनामे के पैरा 6 का हवाला देते हुए गवाह कैलाश नाथ पांडे और सुबोध कुमार यादव द्वारा धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज अपने बयानों में अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन किया गया।
इस मामले में कोडरमा के तत्कालीन डीडीसी कौशल किशोर ठाकुर ने अपनी गवाही में कहा कि याचिकाकर्ता (छवि रंजन ) ने उन्हें नामित प्राथमिकी दर्ज करने से रोकने की पूरी कोशिश की थी और उन पर कैलाश नाथ पांडे और सुबोध कुम यादव के लिखित बयान को बदलने के लिए भी दबाव बनाया गया था। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के आचरण के मद्देनजर वे जमानत के विशेषाधिकार की पात्रता नहीं रखते हैं। कोर्ट ने तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद, नामित याचिकाकर्ता को दो सप्ताह की अवधि के भीतर निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था।
उपरोक्त अवधि के भीतर निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करने पर विजिलेंस के विशेष न्यायाधीश की संतुष्टि के लिए उत्पन्न विजिलेंस केस नंबर 01/2016 के संबंध में (विजिलेंस, रांची कांड संख्या 76/2015, धारा 438 (2) सीआरपीसी) के तहत निर्धारित शर्तों के मुताबिक दो जमानतदारों के साथ दस हजार के जमानत-बांड पर जमानत पर उनकी रिहाई हुई।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता अपना पासपोर्ट (यदि है तो) को ट्रायल कोर्ट में जमा करें। 76/2015 के केस में मरकच्चो सीओ रहे संदीप राणा, बॉडीगार्ड विजय और ड्राइवर जीवन राणा के नाम भी मामले दर्ज किए गए हैं। बहरहाल, हेमंत सरकार सब कुछ जानते हुए भी छवि रंजन को अबतक राजधानी का डीसी क्यों बनाए हुए है, इसे समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। जमानत पर रिहाई के पांच साल तो पूरे हो चुके हैं। देखना है कि झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई कब शुरू होती है। इसका हमें अभी और इंतजार करना होगा।
मनोज कुमार पर साढ़े चार करोड़ वित्तीय अनियमितता का है आरोप..
आईएएस मनोज कुमार पर भी गाज गिर सकती है। धनबाद नगर निगम में ई-गवर्नेंस प्रोजेक्ट के लिए कंप्यूटर और उपकरणों की खरीदारी में 4.8 करोड़ रुपये की वित्तीय गड़बड़ी के मामले में धनबाद के तत्कालीन नगर आयुक्त मनोज कुमार और तत्कालीन अपर नगर आयुक्त प्रदीप कुमार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की बात कही गई थी। विघि विभाग ने भी इस पर सहमति दे दी थी। खुद सीएम हेमंत सोरेन के आदेश पर हुई जांच में इनके खिलाफ प्राथमिक तौर पर साक्ष्य मिले थे. फिर मनोज कुमार के विरुद्ध भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो झारखंड रांची में पीइ संख्या 17/15 अंकित थी इनके के विरुद्ध प्रशासनिक कार्रवाई के लिए उनके प्रशासी विभाग के प्रधान सचिव को ब्यूरो द्वारा चार मई 2017 को ही लिखा गया था। सूत्रों के अनुसार इस मामले पर जल्द ही कार्रवाई की जाएगी।
पूर्व आइएएस जयशंकर तिवारी भी हैं निशाने पर..
माइंस घोटाले में फंसे पूर्व आइएएस व जयशंकर तिवारी के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति का मामला पिछले दो साल से लटका है। सरकार के शीर्ष स्तर पर फाइल पेंडिंग है।इधर सीबीआई द्वारा केंद्र सरकार को की जा रही रिपोर्ट के आधार पर गृह मंत्रालय बार-बार राज्य सरकार से मामले में की गई कार्रवाई की जानकारी मांग रहा है। बता दें कि फरवरी 2022 में भी केंद्र ने इस मामले में राज्य सरकार से पूछा था कि वह क्या कार्रवाई कर रही है। इस पर भी जल्द कार्रवाई होगी।