झारखंड के संताल परगना इलाके में मोटे चावल की उपज होती है। स्थानीय लोग खासतौर पर जनजाति समाज इस चालव को खूब पसंद करता है। लेकिन आमतौर पर लोग इसे पसंद नहीं करते हैं। हालांकि पौष्टिकता के लिहाज से इस चावल का जोड़ नहीं है। और इसकी यही खासियत अब विदेशों तक पहुंच गई है। दक्षिण अफ्रीका मैं इस चावल की खूब डिमांड है और इसकी आपूर्ति शुरू की गई है। वहां के लोग इस चावल को पाैष्टिक आहार के रूप में लेना चाहते हैं। बड़ी बात ये है कि इसकी आपूर्ति झारखंड से हो रही है। पहली बार एक मिनी रैक चावल ( 25, 400 बोरा) दक्षिण अफ्रीका भेजा जा रहा है। इसी क्रम में शनिवार को दुमका रेलवे स्टेशन से चावल लोड रैक विशाखापट्टनम के लिए रवाना किया गया। वहां से समुद्री जहाज पर चावल लोड कर दक्षिण अफ्रीका भेजा जाएगा।
दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले पहली बार दुमका में तैयार चावल का स्वाद चखेंगे। दक्षिण अफ्रीका की मांग पर जामा के मांगूडीह की पीएस एग्रो इंडस्ट्रीज ने रेलवे स्टेशन से एक मिनी रैक चावल को विशाखापट्टनम के लिए रवाना किया। यहां से चावल समुद्री जहाज के जरिए अफ्रीका भेजा जाएगा। अभी तो चावल एक निर्यातक के माध्यम से भेजा गया है लेकिन भविष्य में इसे सीधे अफ्रीका भेजने का प्रयास किया जाएगा। शनिवार को दुमका रेलवे स्टेशन से विशाखापट्टनम के लिए 25,400 बोरी को रवाना करने वाले मिल के मालिक पवन भालोटिया व साझेदार सुनील कोठरीवाल ने बताया कि उनकी मिल में रत्ना नामक चावल रैकेट ब्रांड से बिकता है। अभी तक इसकी खपत दुमका के अलावा आसपास के जिलों में हुआ करती थी। अधिकांश मिल का चावल राज्य या फिर जिले से भी बाहर नहीं जाता था।
यह पहला अवसर है कि संताल परगना का चावल विदेश जा रहा है। रत्ना चावल काफी चमकदार होने के साथ हर गुणवत्ता पर खरा है। बीस दिन पहले विशाखापट्टनम के एक निर्यातक ने उनके अलावा संथाल परगना के कई मिल के चावल का सैंपल लिया था। सैंपल में उनका चावल सबसे बेहतर साबित हुआ। अफ्रीका ने भी इसे मंजूर कर लिया। निर्यातक के कहने पर फिलहाल एक मिनी रैक को रवाना किया गया है। वहां से पानी के जहाज से चावल को अफ्रीका भेजा जाएगा। चावल के निर्यात होने से कई मजदूरों को रोजगार भी मिला है। अब आने वाले समय में प्रयास रहेगा कि सारा चावल किसी माध्यम की बजाय सीधे दक्षिण अफ्रीका भेजा जा सके।