रांची: झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के डॉक्टरों को एक बड़ी सफलता मिली है। जिससे देश ही नहीं पूरे विश्व भर में इसकी चर्चा हो रही है। दरअसल रिम्स ने एम्स के साथ मिलकर देश का पहला ऐसा शोध किया है जिसका परचम अब अमेरिका में भी लहराया जा रहा। रिम्स के डॉक्टरों ने अपने 7 साल के लंबे शोध में लकवा बीमारी के पूर्वानुमान के बारे में पता लगा लिया है। इसके साथ ही अब लकवा होने से बचाने के लिए इसकी दवा बनाई जा रही है।
अब लकवा बीमारी के बारे में वक़्त रहते पहले ही पता लगाया जा सकता है कि उस व्यक्ति को यह बीमारी किस आयु और कब हो सकती है। इस शोध को करने के लिए विभिन्न हिस्सों से करीब 6 अस्पतालों से लकवा मरीजों के सैंपल जुटाए गए। फिर उस सैंपल के माध्यम से शोध किया गया। इस शोध को अमेरिका के न्यूरोलॉजी जनरल में भी जगह मिली है। इसमें रिम्स रांची के द्वारा किए गए शोधकर्ता का भी अलग से जिक्र किया गया है।
शोध में यह पाया गया कि 20 साल की आयु में अगर स्क्रीनिंग करवाया जाए तो यह पता लगाया जा सकेगा कि 40 की उम्र या उसके बाद उसे लकवा होगा या नहीं। अगर लकवा होने के चांसेज रहेंगे तो पहले से ही संयम बरतने और संबंधित दवाएं दी जा सकेगी ताकि उसे बाद में लकवा ना हो सके।
इस शोध में एम्स और रिम्स को नीदरलैंड और इम्पोरियल कॉलेज लंदन का भी सहयोग मिला है। शोधकर्ता में रहे रिम्स के निदेशक डॉ कामेश्वर प्रसाद ने बताया कि शोध में वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार, डॉ अनूपा, डॉ कामेश्वर प्रसाद, डॉ गणेश चौहान और डॉ सुरेंद्र कुमार मुख्य रूप से शामिल है। इनके अलावा एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो डॉ अंचल कुमार श्रीवास्तव और प्रो डॉ दिप्ता विभा का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
शोधकर्ता डॉ अमित कुमार ने बताया कि दूसरे देश में स्वास्थ्य को लेकर लोग अधिक सजग रहते है। दूसरे देश की तुलना में भारत में 50-55 आयु की उम्र में लोग अनुवांशिक रोग से पीड़ित हो रहे है।भारत में प्रतिवर्ष 20 लाख लोग लगभग लकवे का शिकार होते है। इन सभी चीजों का आंकलन करने के बाद जेनेटिक कारणों को खोजने के लिए शोध किया गया।