विश्व कैंसर दिवस: राज्य के सबसे बड़े अस्पताल के कैंसर डिपार्टमेंट में सुविधाओं का अभाव..

राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के कैंसर डिपार्टमेंट के ओपीडी में रोजाना 50 से 60 मरीज ईलाज के लिए आते हैं। इनमें से करीब 35 से 36 नये मरीज होते हैं। वहीं प्रतिदिन लगभग 60 मरीजों की कीमोथेरेपी भी की जाती है। लेकिन कैंसर मरीजों को मिलने वाली सुविधाओं में घोर कमी दिखती है। मरीजों को यहां कीमोथेरेपी में लगने वाली आधी दवाइयां ही अस्पताल की ओर से दी जाती है। बाकी की दवाएं मरीजों को ही उपलब्ध करानी पड़ती है। पिछले सात महीने से रिम्स के पास कीमोथेरेपी में लगने वाली 16 दवाइयों में से सिर्फ 8 दवाइयां ही उपलब्ध हैं।

जबकि आयुष्मान और गंभीर बीमारी योजना के तहत आने वाले मरीजों को दवाइयां निःशुल्क में उपलब्ध करायी जानी है, बावजूद इसके रिम्स में ऐसा नहीं हो रहा है। रिम्स प्रबंधन की ओर से अपने कैंसर विभाग को उनके रिक्वेस्ट इंडेन के बाद भी दवाइयां नहीं उपलब्ध कराई जा रही है।

बाज़ार से लेने वाली दवाओं के लिए प्रति कीमोथेरेपी में लगभग 3 हजार का भुगतान करना पड़ता है। ऐसे में जो मरीज दवा खरीदने में सक्षम होते हैं उनकी कीमोथेरेपी तो हो जाती है। लेकिन मुश्किल उनके लिए होता है जिनकी आर्थिक स्थिति पहले ही दम तोड़ चुकी होती है।

रेडिएशन मशीन की कमी
रिम्स में कैंसर डिपार्टमेंट वर्षों से चल रहा है वहीं 2019 से यहां कैंसर सर्जरी और अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध करायी गयी हैं। इसका मुख्य उद्देश्य राज्य के गरीब मरीजों को इलाज मुहैया कराना था ताकि उन्हें बाहर न जाना पड़े।

लेकिन कैंसर के इलाज के लिए जरूरी कई ऐसी मशीन हैं, जो आज भी रिम्स में उपलब्ध नहीं हैं। यहां रेडिएशन मशीन की कमी तो है ही साथ ही ब्रेकीथेरपी मशीन, पोजीट्रोन एमिशन टोमोग्राफी (पेट) स्कैन मशीन भी यहां उपलब्ध नहीं हैं।

गरीब मरीजों के लिए मुशिकल महंगी दवाएं
कैंसर मरीजों को जरूरी दवाइयों के लिए कई बार बाहर की दुकानों के भरोसे रहना पड़ता है, इसके कारण गरीब मरीजों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। इन गरीब मरीजों के लिए रिम्स में मुफ्त इलाज और दवाइयों की सुविधा है, लेकिन अभाव के कारण ये सुविधाएं मरीजों को नहीं मिल पाती। सरकारी उदासीनता के कारण मरीजों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में ज्यादातर मुंह के कैंसर के मरीज पाये जाते हैं। जबकि महिला मरीजों में सर्वाइकल कैंसर की संख्या ज्यादा होती है। इसके अलावा गैस्ट्रिक और गॉल ब्लैडर कैंसर के मरीज की भी संख्या झारखंड में अधिक है।