झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य में बंद की गई ब्रॉडबैंड और फाइबर लाइन इंटरनेट सेवाओं को तत्काल बहाल करने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने रविवार को इंटरनेट सेवा बंद किए जाने के मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए इसकी सुनवाई की और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि 20 सितंबर को जिस तरह से इंटरनेट सेवा चालू थी, उसे तत्काल प्रभाव से फिर से शुरू किया जाए.
अदालत का रुख और सुनवाई
रविवार को झारखंड हाईकोर्ट में जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की बेंच ने इस मामले पर गहरी चिंता जाहिर की. उन्होंने राज्य सरकार से सवाल किया कि आखिर किस आधार पर पूरे राज्य में इंटरनेट सेवाएं बंद की गईं. इस संदर्भ में अदालत ने कहा कि इंटरनेट आज के समय में एक अत्यावश्यक सेवा है, और इसे बंद करने से आम जनता, व्यापारियों, छात्रों और सभी वर्गों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.
राज्य सरकार को निर्देश
अदालत ने इस मामले में राज्य सरकार को सख्त निर्देश दिया कि वह बिना किसी देरी के इंटरनेट सेवाओं को बहाल करे, विशेष रूप से ब्रॉडबैंड और फाइबर लाइन की सेवाओं को. अदालत ने यह भी कहा कि जो सेवाएं 20 सितंबर को चालू थीं, उन्हीं को बहाल किया जाए ताकि जनता को फिर से इन सेवाओं का लाभ मिल सके. साथ ही, अदालत ने सरकार से यह भी स्पष्टीकरण मांगा कि इंटरनेट सेवा बंद करने के पीछे क्या कारण थे और किस प्रकार की योजना या मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के तहत यह फैसला लिया गया. इसके लिए अदालत ने राज्य सरकार को छह सप्ताह का समय दिया है ताकि वह इस मुद्दे पर विस्तृत एसओपी पेश कर सके.
एसओपी की आवश्यकता और अदालत की चिंता
एसओपी यानी मानक संचालन प्रक्रिया अदालत द्वारा इस मामले में इसलिए मांगी गई है ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर इंटरनेट सेवा बंद करने के फैसले को पारदर्शी और कानूनी रूप से सुरक्षित तरीके से लिया जा सके. अदालत की यह चिंता जायज है, क्योंकि इंटरनेट सेवा के बंद होने से सिर्फ संचार ही नहीं, बल्कि आर्थिक गतिविधियों, शिक्षा और कई अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं पर भी बड़ा असर पड़ता है. हाईकोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि इंटरनेट सेवा बंद करना एक गंभीर कदम है और इसे बेहद सोच-समझकर उठाया जाना चाहिए.
वकीलों की बहस और अदालत का निष्कर्ष
इस मामले में स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष राजेंद्र कृष्ण ने हाईकोर्ट के सामने अपनी बात रखी और इंटरनेट सेवा बंद होने से होने वाले नुकसान और परेशानियों का जिक्र किया. उन्होंने तर्क दिया कि राज्य में इस तरह की सेवा का बंद होना न सिर्फ लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह व्यापारिक गतिविधियों और शिक्षा प्रणाली पर भी गंभीर प्रभाव डालता है. वहीं, राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार और अधिवक्ता पीयूष चित्रेश ने सरकार का पक्ष रखा. अदालत ने राज्य सरकार की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश दिया कि जब तक सरकार इस मुद्दे पर कोई ठोस कारण और एसओपी अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं करती, तब तक इंटरनेट सेवाओं को बंद रखना सही नहीं होगा. इसलिए अदालत ने तुरंत प्रभाव से ब्रॉडबैंड और फाइबर लाइन की सेवाओं को बहाल करने का निर्देश दिया.