झारखंड हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एसएन प्रसाद और जस्टिस एके राय की खंडपीठ ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्टोन बोल्डर और स्टोन चिप्स की अलग-अलग रॉयल्टी पर राज्य सरकार के आदेश को सही ठहराया. अदालत ने इस फैसले को चुनौती देने वाली 120 याचिकाओं को खारिज कर दिया. यह फैसला झारखंड सरकार के खनन के बाद स्टोन बोल्डर और उसकी प्रकृति बदलकर स्टोन चिप्स बनाने पर दोनों की अलग-अलग रॉयल्टी तय करने के अधिकार को लेकर आया है.
अलग-अलग रॉयल्टी का मामला
राज्य सरकार ने स्टोन बोल्डर की रॉयल्टी 125 रुपये प्रति क्यूबिक फीट (CFT) और स्टोन चिप्स के लिए 250 रुपये प्रति CFT की दर तय की है. इस पर प्रार्थियों ने आपत्ति जताते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. उनका तर्क था कि खनन के बाद निकले खनिज की प्रकृति या स्वरूप बदलने के बाद राज्य सरकार को उसकी अलग-अलग रॉयल्टी तय करने का अधिकार नहीं है. प्रार्थियों का यह भी कहना था कि खनन से निकले खनिज पर तो रॉयल्टी ली जा सकती है, लेकिन उसके स्वरूप में बदलाव के बाद अलग रॉयल्टी लगाना अनुचित है. हालांकि, अदालत ने इस तर्क को खारिज करते हुए राज्य सरकार के आदेश को सही ठहराया. अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को खनन के बाद निकले खनिज की प्रकृति बदलने के बाद उस पर अलग-अलग रॉयल्टी चार्ज करने का पूरा अधिकार है.
राज्य सरकार का पक्ष
राज्य सरकार ने कोर्ट के समक्ष अपनी दलील में कहा कि स्टोन बोल्डर को केंद्र सरकार ने माइनर मिनरल के रूप में अधिसूचित किया है. माइनर मिनरल के मामले में राज्य सरकार का अधिकार असीमित है और केवल संसद ही इस पर कोई प्रतिबंध लगा सकती है. इसके अलावा, राज्य सरकार को एमएमडीआर एक्ट (Mines and Minerals (Development and Regulation) Act) के तहत नियम बनाने का अधिकार प्राप्त है, जिससे वह खनिजों के विभिन्न प्रकार और स्वरूपों के आधार पर रॉयल्टी तय कर सकती है. राज्य सरकार का तर्क था कि खनन के बाद निकले स्टोन बोल्डर और उसकी प्रकृति में बदलाव कर स्टोन चिप्स बनाने के लिए दोनों की अलग-अलग रॉयल्टी वसूलना कानूनी रूप से सही है. राज्य सरकार ने यह भी बताया कि संसद ने स्टोन बोल्डर को माइनर मिनरल के रूप में घोषित किया है, और इस आधार पर राज्य सरकार को उस पर अलग-अलग रॉयल्टी लागू करने का अधिकार है.
कोर्ट का फैसला
अदालत ने अपने आदेश में यह साफ किया कि राज्य सरकार खनन के बाद निकले खनिज को उसकी प्रकृति के आधार पर विभाजित कर सकती है और उस पर अलग-अलग रॉयल्टी चार्ज कर सकती है. कोर्ट ने कहा कि यह राज्य सरकार का कानूनी अधिकार है कि वह खनिजों की प्रकृति में बदलाव के आधार पर अलग-अलग रॉयल्टी दरें निर्धारित करे. प्रार्थियों ने यह तर्क दिया था कि खनन के बाद जो खनिज निकलता है, उस पर राज्य सरकार रॉयल्टी चार्ज कर सकती है, लेकिन खनिज के स्वरूप में बदलाव के बाद अतिरिक्त रॉयल्टी नहीं ली जानी चाहिए. हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए राज्य सरकार के आदेश को पूरी तरह सही ठहराया.
120 याचिकाओं का खारिज होना
इस मामले में कुल 120 याचिकाएं दायर की गई थीं, जिनमें खनिज की प्रकृति बदलने पर अलग-अलग रॉयल्टी तय करने के सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सरकार का यह निर्णय अवैध और अनुचित है, और इससे खनन उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने तर्क दिया कि खनन के बाद निकले खनिज पर एक बार रॉयल्टी लगाने के बाद, उसके स्वरूप में बदलाव के बाद नई रॉयल्टी लागू करना अनुचित है. हालांकि, झारखंड हाई कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए सरकार के निर्णय को सही ठहराया और कहा कि राज्य सरकार को खनिजों की अलग-अलग अवस्थाओं पर रॉयल्टी तय करने का पूरा अधिकार है. इस फैसले के बाद राज्य सरकार की रॉयल्टी नीति पर कोई रोक नहीं लगेगी, और सरकार द्वारा तय की गई रॉयल्टी दरें लागू रहेंगी.
न्यायालय का निर्णय: राज्य सरकार के अधिकारों की पुष्टि
इस फैसले ने न केवल झारखंड सरकार की नीति को सही ठहराया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि माइनर मिनरल्स के मामले में राज्य सरकार को एमएमडीआर एक्ट के तहत व्यापक अधिकार हैं. इस अधिकार के तहत राज्य सरकार खनिजों के विभिन्न स्वरूपों और उनकी प्रकृति के अनुसार अलग-अलग रॉयल्टी दरें तय कर सकती है. अदालत का यह निर्णय खनन क्षेत्र में पारदर्शिता और अनुशासन सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.Nअदालत ने यह भी साफ किया कि खनिजों की प्रकृति बदलने के बाद उन पर अलग-अलग रॉयल्टी लगाना न केवल कानूनी है, बल्कि इससे राज्य सरकार को राजस्व की प्राप्ति भी बेहतर ढंग से हो सकती है. इस फैसले से खनन उद्योग में एक स्पष्ट दिशा मिलेगी और खनिज संसाधनों का सही तरीके से प्रबंधन हो सकेगा.