झारखंड के स्थानीय लोगों को ज्यादा से ज्यादा नौकरी देने की पहल पर सरकार लगातार आगे बढ़ रही है। प्रवर समिति ने राज्य की निजी कंपनियों में स्थानीय आवदेनकर्ताओं को प्राथमिकता देने की अनुशंसा की है। इससे संबंधित विधेयक पर मंगलवार को अपनी रिपोर्ट विधानसभा के मॉनसून सत्र में सदन पटल पर रखा। प्रवर समिति ने कहा है कि निजी कंपनियों में 40 हजार रुपए तक मासिक वेतन वाले पदों पर 75% स्थानीय लोगों की नियुक्ति की जाए। यह सरकारी कंपनियों में काम करने वाली आउट सोर्सिंग कंपनियों पर भी लागू होगा।
निजी कंपनियों को इसे प्राथमिकता के आधार पर मानना होगा। इसका उल्लंघन करने पर जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। इसके तहत पहली बार इसकी अनदेखी करने पर जुर्माना भरना होगा। दूसरी बार यदि इस प्रावधान का उल्लंघन किया गया तो जुर्माना राशि पांच लाख रुपए तक लगाया जाएगा।
अब प्रवर समिति की अनुशंसा पर विधानसभा को निर्णय लेना है। यदि इन अनुशंसाओं को मानते हुए विधेयक को मंजूरी मिल जाती है तो इसे राज्यभर में लागू कर दिया जाएगा। बता दें कि इस साल विधानसभा के बजट सत्र में सरकार ने निजी क्षेत्रों में 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों को बहाल करने संबंधी विधेयक लाया था। लेकिन पक्ष और विपक्ष के विधायक की ओर से संशोधन की मांग करने पर इसे प्रवर समिति के पास भेज दिया गया था।
प्रवर समिति ने ये भी अनुशंसाएं कीं
- निजी कंपनियों में 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों को नियुक्त करने में सोशल इंजीनियरिंग का ख्याल रखा जाएगा।
- निजी कंपनियों को स्थानीय लोगों की नियुक्ति के दौरान अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आने वाले अभ्यर्थियों का भी ख्याल रखना है।
- विधेयक पास हाेने बाद बनने वाले नए कानून काे जिला स्तर पर लागू कराने के लिए एक कमेटी करेगी। इसमें डीसी के साथ स्थानीय विधायक, श्रम अधीक्षक और जिला नियोजन पदाधिकारी भी शामिल होंगे।
- पहले कमेटी में सिर्फ डीसी को रखा गया था। यह कमेटी इन प्रावधानों की मॉनिटरिंग करेगी।
सत्ता पक्ष व विपक्ष के विधायकों ने कुछ संशोधन के सुझाव दिए थे, इसलिए प्रवर समिति को भेजा था बिल
इस साल झारखंड विधानसभा के बजट सत्र में श्रम विभाग की ओर से भेजे गए विधेयक को सदन में पेश किया गया था। चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के कुछ विधायकों ने इसमें संशोधनों की वकालत की थी। विधायक प्रदीप यादव ने कंपनी अधिनियम-1956 के तहत रजिस्टर्ड कंपनियों में भी यह व्यवस्था लागू करने का सुझाव दिया था। वहीं अमित मंडल ने कंपनी की प्रकृति अंकित करने का सुझाव दिया था, जबकि अमर बाउरी ने कहा था कि इस व्यवस्था को राइट टू एजुकेशन की तरह नहीं बनाना चाहिए। ऐसे ही करीब दो दर्जन सुझाव उस दौरान सरकार को दिए गए थे। इसके बाद इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेज दिया गया था।