आइआइटी आइएसएम धनबाद ने तीन नई तकनीकें विकसित की हैं, जिससे विज्ञान के क्षेत्र में बड़ा बदलाव आया है। आइआइटी दिल्ली में 14 और 15 अक्टूबर को लगने वाले रिसर्च एंड डेवलपमेंट फेयर में संस्थान अपनी तीनों तकनीक को प्रदर्शित करेगा। इस मेले में पूरे भारत के सभी 23 आइआइटी अपने रिसर्च एंड डेवलपमेंट को लेकर शामिल होंगे। यहां ड्राेन, हेल्थकेयर, 5 जी टेक्नाेलाॅजी, स्पीच ट्रांसलेशन, साेसाइटल इंपैक्ट समेत अन्य चीज़ों से जुड़े प्राेजेक्ट की प्रदर्शनी लगाई जाएगी। जिसका उद्देश्य है कि संस्थानाें में रिसर्च और इनाेवेशन के प्रति छात्रों में जागरूकता बढ़े और कॉलेजों, संस्थानाें, उद्याेगाें और आइआइटी के बीच सहयाेग का रास्ता बने।
तीन तकनीकों को प्रदर्शित करने के की तैयार..
इस फेयर में आइआइटी आइएसएम ने जिन तीन तकनीकों को प्रदर्शित करने के लिए तैयार किया है। उनमें से एक है सेल्फ एडवांसिंग गैप एज सपोर्ट। इस तकनीक के मदद से रूफ फॉल और साइड फॉल जैसे हादसों को रोके जा सकेंगे। इस तकनीक से खदानों में होने वाले हादसे रुकेंगे, साथ ही मजदूरों को सुरक्षा कवच भी मिलेगा। जिसमें खदानों में लगने वाले लकड़ी के पारंपरिक खूंटे की जगह अब सेल्फ एडवांसिंग गैप एज सपोर्ट सिस्टम के मदद से हादसों को रोका जाएगा।
तकनीकों से ऐसे मिलेगा लाभ..
वहीं आइआइटी धनबाद की दूसरी तकनीक 5जी मल्टी फंक्शनल एक्टिव मिमाे काॅग्नीटिव रेडियाे सिस्टम है। जिसे प्राे रवि गंगवार और आइआइटी धनबाद के पूर्व व अब आईआईटी कानपुर के प्राध्यापक प्राेफेसर राघवेंद्र चाैधरी की टीम ने बनाया है। प्राेफेसर गंगवार ने इसके बारे में बताते हुए कहा कि यह मल्टी इनपुट मल्टी आउटपुट एंटीना सिस्टम है। स्पेक्ट्रम मूल रूप से फ्रिक्वेंसी है और उसकी तय क्षमता हाेती है। जिसमें एक समय के बाद यूजर बढ़ने पर परेशानी आने लगती है। ऐसी परिस्थिति में यह एंटीना एक साथ तीन काम करेगा। यह स्पेक्ट्रम काे सेंस कर उसकी फ्रिक्वेंसी का बेहतर उपयोग करेगा। जिसके बाद से कंपनियां ज्यादा से ज्यादा यूजर काे सर्विस दे पाएंगी और कीमत भी कम होगी। इसके अलावा नेटवर्क व्यस्त, काॅल ड्राॅप जैसी समस्याओं से छुटकारा मिलेगा। साथ ही एक साथ कई लाेग जुड़ सकेंगे।गौरतलब हो कि तीसरी तकनीक माइक्रो मशीनिंग है।जिसमें आइआइटी धनबाद ने एयरोस्पेस और रक्षा तंत्र के लिए रासायनिक सहायक स्पार्क मशीनिंग प्रक्रियाओं का उपयोग कर हाइब्रिड माइक्रो मशीनिंग तकनीक विकसित किया है। इसके जरिये किसी भी मेटल में सुरंग किया जा सकता है। वहीं इस प्रोजेक्ट में संस्थान के प्राे आलाेक कुमार दास व प्राे एआर दीक्षित और डीआरडीएल के निलाद्री मंडल और बी हरिप्रसाद ने अपना अहम योगदान दिया हैं।