झारखंड में रैयतों (किसानों) को अपनी जमीन का दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) कराने में गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग द्वारा बनाई गई प्रणाली में कई जटिलताएँ हैं, जिससे किसानों को सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. म्यूटेशन लंबित रहने से जमीन के स्वामित्व संबंधी विवाद बढ़ रहे हैं और सरकारी परियोजनाओं के लिए अधिग्रहित भूमि का मुआवजा भी नहीं मिल पा रहा है.
84,000 से अधिक म्यूटेशन पेंडिंग, रैयत परेशान
राज्यभर में वर्तमान में 84,000 से अधिक म्यूटेशन आवेदन लंबित हैं. स्थिति यह है कि कई मामलों में दाखिल-खारिज की प्रक्रिया वर्षों से रुकी हुई है. सरकार ने किसानों की सुविधा के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन यह भी पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पाई है. राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री दीपक बिरुआ ने म्यूटेशन रद्द करने पर अंचलाधिकारियों को 50 शब्दों में कारण लिखने का आदेश दिया था. साथ ही, उन्होंने निर्देश दिया था कि म्यूटेशन से जुड़े मामलों को अनावश्यक रूप से लंबित न रखा जाए। लेकिन कई मामलों में इन आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है, जिससे किसानों की परेशानियाँ बढ़ती जा रही हैं.
गैर मजरूआ मालिक और खास महाल जमीन का विवाद
राज्य में गैर मजरूआ मालिक और खास महाल जमीन को लेकर भी विवाद बना हुआ है. सरकारी आदेश के अनुसार, अंचल अधिकारियों को यह जांच करनी थी कि किसकी जमीन की जमाबंदी वैध है और किसकी अवैध. जिनकी जमाबंदी वैध होती, उन्हें प्रतिबंधित सूची से बाहर कर दिया जाता. लेकिन यह जांच कभी की ही नहीं गई, जिससे हजारों किसानों की जमीन विवादित बनी हुई है. नतीजतन, जमीन न तो उनके नाम पर दर्ज हो पा रही है और न ही वे इसे बेच या ट्रांसफर कर पा रहे हैं.
मुआवजा भुगतान में देरी, किसान दर-दर भटकने को मजबूर
राज्य सरकार द्वारा सड़क, भवन और अन्य सरकारी परियोजनाओं के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहित की जा रही है, लेकिन समय पर मुआवजा नहीं दिया जा रहा है.
• कई किसानों को बहुत कम मुआवजा मिल रहा है.
• बहुत से मामलों में भुगतान प्रक्रिया वर्षों से अटकी हुई है.
• किसान मुआवजे के लिए भू-अर्जन कार्यालयों, डीसी कार्यालय और अन्य सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं.
• बड़ी संख्या में किसानों ने शिकायतें दर्ज कराई हैं और कई मामलों में मुकदमे भी दायर किए गए हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है.
सुओ-मोटो म्यूटेशन सिस्टम फेल, किसानों को राहत नहीं
राज्य सरकार ने रैयतों की सुविधा के लिए सुओ-मोटो म्यूटेशन सिस्टम लागू किया था. इस प्रणाली के तहत, जमीन की रजिस्ट्री होते ही संबंधित दस्तावेज अंचल कार्यालय में ऑनलाइन ट्रांसफर हो जाने थे. साथ ही, किसान को स्वतः केस नंबर मिल जाता और बिना सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाए म्यूटेशन की प्रक्रिया पूरी हो जाती. लेकिन यह सिस्टम भी पूरी तरह फेल हो चुका है. किसान आज भी म्यूटेशन के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं.
बिहार में आसान हुई म्यूटेशन प्रक्रिया, झारखंड कब सीखेगा?
• बिहार सरकार ने भूमि म्यूटेशन को आसान बनाने के लिए नई व्यवस्था लागू की है.
• अब जमीन की रजिस्ट्री होते ही म्यूटेशन स्वतः शुरू हो जाता है.
• किसानों को अब अलग से आवेदन करने की जरूरत नहीं होती.
• दाखिल-खारिज के साथ नक्शा देने की व्यवस्था भी लागू की गई है, जिससे स्वामित्व संबंधी विवाद कम हुए हैं.
• बिहार की इस प्रक्रिया को झारखंड में भी लागू करने की जरूरत है ताकि किसानों को उनकी जमीन का मालिकाना हक आसानी से मिल सके.
म्यूटेशन स्वामित्व का प्रमाण नहीं, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि म्यूटेशन सिर्फ संपत्ति के हस्तांतरण को दर्शाता है, लेकिन इससे मालिकाना हक नहीं मिलता. किसी भी संपत्ति के स्वामित्व का अंतिम निर्णय केवल सक्षम सिविल कोर्ट द्वारा ही किया जा सकता है. इसलिए, सरकार को म्यूटेशन की प्रक्रिया को मजबूत बनाने के साथ ही स्वामित्व विवादों के समाधान के लिए भी प्रभावी कदम उठाने चाहिए.
झारखंड सरकार को तुरंत सुधार करने की जरूरत
झारखंड में किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए सरकार को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए—
• सुओ-मोटो म्यूटेशन सिस्टम को सही तरीके से लागू करना.
• प्रतिबंधित सूची में फंसी जमीन की तुरंत जांच कर वैध जमीनों को मुक्त करना.
• म्यूटेशन लंबित मामलों को शीघ्र निपटाने के लिए अधिकारियों को जवाबदेह बनाना.
• मुआवजा प्रक्रिया को पारदर्शी और तेज बनाना.
• बिहार की तरह झारखंड में भी स्वचालित म्यूटेशन प्रक्रिया लागू करना.