रांची नगर निगम के साथ-साथ राज्य के तमाम निकायों में महापौर और नगर आयुक्त तथा अध्यक्ष व कार्यपालक पदाधिकारियों के बीच बढ़ रहे विवादों पर महाधिवक्ता का परामर्श राज्य सरकार को प्राप्त हो गया है। 10 पन्नों में मिले परामर्श का सारांश यही है कि नगर निकायों में अधिकांश कार्यपालक शक्तियां नगर आयुक्त अथवा कार्यपालक पदाधिकारियों के पास ही हैं। महाधिवक्ता के मंतव्य से नगर विकास एवं आवास विभाग ने सभी निकायों को अवगत करा दिया है। महाधिवक्ता ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि निकायों में पार्षदों की बैठक बुलाने का अधिकार केवल और केवल नगर आयुक्त अथवा कार्यपालक पदाधिकारी या विशेष पदाधिकारी को है। इन बैठकों के लिए एजेंडा भी यही तय करेंगे और इसमें मेयर अथवा अध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं होगी। स्पष्ट कर दिया गया है कि बैठक के एजेंडा व कार्यवाही में महापौर और अध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं है। महाधिवक्ता ने अपने मंतव्य में बताया है कि किसी आवश्यक कार्य के लिए बैठक बुलाने के लिए कुल पार्षदों के हिसाब से 20 प्रतिशत पार्षद अगर लिखित में बैठक बुलाने के लिए आग्रह करते हैं, तो ऐसे में मेयर बैठक बुला सकते हैं।
मंतव्य की खास बातें..
- आपातकालीन कार्य को छोड़ किसी भी परीस्थिति में महापौर व अध्यक्ष को अधिकार नहीं है कि वो एजेंडा में कोई बदलाव लाएं।
- बैठक के बाद अध्यक्ष और महापौर को स्वतंत्र निर्णय का कोई अधिकार नहीं है। बैठक की कार्यवाही बहुमत के आधार पर तय होगी।
- महापौर और अध्यक्ष को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी भी अधिकारी एवं कर्मचारी को कारण बताओ नोटिस जारी करें।
- महापौर और अध्यक्ष को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी भी विभाग या कोषांग के द्वारा किए जा रहे कार्यों की समीक्षा करें।
- किसी भी बैठक में अगर महापौर उपस्थित नही हैं, तो उप महापौर कार्यवाही पर हस्ताक्षर करेंगे। अगर दोनों अनुपस्थित हैं, तो पार्षदों द्वारा चयनित प्रोजाइडिंग अधिकारी हस्ताक्षर करेंगे।
- अगर बैठक में महापौर मौजूद हैं और पार्षदों की सहमति से जो निर्णय हुआ है, उसपर आधारित कार्यवाही पर महापौर हस्ताक्षर नहीं करते हैं, तो नगर आयुक्त और कार्यपालक पदधिकारी को अधिकार है कि वह राज्य सरकार को अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए लिखें। अगर ऐसा होता है तो राज्य सरकार को अधिकार है कि वह महापौर को पदमुक्त कर दे।