संताल परगना: घटती आदिवासी आबादी का सच और बांग्लादेशी घुसपैठ का प्रभाव….

झारखंड के संताल परगना क्षेत्र में आदिवासी आबादी में तेजी से गिरावट और मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि ने चिंता का विषय बना दिया है. हाल ही में केंद्र सरकार ने इस मामले पर झारखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका के जवाब में शपथपत्र दाखिल किया, जिसमें संताल परगना की डेमोग्राफी में आदिवासी आबादी की हिस्सेदारी में 16 प्रतिशत की गिरावट और मुस्लिम आबादी में 20 से 40 प्रतिशत तक की वृद्धि का खुलासा हुआ. केंद्र सरकार का मानना है कि इसके दो प्रमुख कारण हैं: पलायन और धर्मांतरण.

बांग्लादेशी घुसपैठ: एक गंभीर समस्या

संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर जमशेदपुर निवासी दानियल दानिश ने झारखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. याचिका के अनुसार, जामताड़ा, पाकुड़, गोड्डा और साहिबगंज जैसे बॉर्डर जिलों से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से भारत में प्रवेश कर रहे हैं. ये घुसपैठिए स्थानीय आबादी की संरचना को प्रभावित कर रहे हैं, जिसमें आदिवासी जनसंख्या में गिरावट एक प्रमुख चिंता का विषय है.

आदिवासी आबादी में गिरावट

1951 में राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार, संथाल परगना क्षेत्र में आदिवासी आबादी का प्रतिशत 44.67 था, जो 2011 में घटकर 28.11 प्रतिशत रह गया. इस गिरावट का एक मुख्य कारण बांग्लादेशी घुसपैठ को माना जा रहा है. केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि घुसपैठियों के कारण स्थानीय आदिवासियों के साथ वैवाहिक संबंध बनाए जा रहे हैं और उनके धर्मांतरण की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. साथ ही, इन जिलों में मदरसों की संख्या में भी वृद्धि देखी जा रही है.

मुस्लिम आबादी में वृद्धि और ईसाइयों की संख्या में बढ़ोतरी

केंद्र सरकार ने अपने जवाब में बताया कि संताल परगना के छह जिलों में मुस्लिम आबादी में 20 से 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. विशेष रूप से पाकुड़ और साहिबगंज में मुस्लिम जनसंख्या में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई है. ईसाई आबादी में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जहां उनकी संख्या में छह हजार गुणा तक की बढ़ोतरी हुई है.

आधार नंबर और नागरिकता का मुद्दा

हाईकोर्ट के निर्देश पर केंद्रीय एजेंसी यूआईडीएआई (भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण) ने भी अपना पक्ष रखा है. यूआईडीएआई ने स्पष्ट किया कि आधार नंबर किसी भी व्यक्ति की पहचान का प्रमाण है, लेकिन यह नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता. इसका मतलब है कि आधार नंबर का होना किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिक नहीं बनाता, और इस आधार पर किसी की नागरिकता की पुष्टि नहीं की जा सकती.

उपायुक्तों की रिपोर्ट और कोर्ट की टिप्पणी

इस मामले में संताल परगना प्रमंडल के छह जिलों के उपायुक्तों ने पहले दाखिल की गई अपनी रिपोर्ट में बांग्लादेशी घुसपैठ से इनकार किया था. कोर्ट ने इसपर सख्त टिप्पणी की थी कि यदि घुसपैठ का एक भी मामला प्रमाणित होता है, तो संबंधित उपायुक्त पर अवमानना का मामला चलाया जा सकता है. अदालत ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि अगर घुसपैठ पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया, तो यह देश की जनसंख्या संरचना को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है.

कोर्ट की आगामी सुनवाई

तकनीकी कारणों से इस मामले की विस्तृत सुनवाई गुरुवार को नहीं हो पाई, और इसे अगली सुनवाई के लिए मंगलवार को सूचीबद्ध किया गया है. इससे पहले 5 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा था कि संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ की स्थिति अत्यंत गंभीर है, और इससे इलाके की डेमोग्राफी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. उनका कहना था कि यह केवल झारखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि घुसपैठिए झारखंड के रास्ते अन्य राज्यों में भी प्रवेश कर वहां की जनसंख्या संरचना को प्रभावित कर सकते हैं.

पलायन और धर्मांतरण: आदिवासी आबादी में गिरावट के मुख्य कारण

केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि आदिवासी आबादी में गिरावट का प्रमुख कारण पलायन और धर्मांतरण है. बेहतर जीवनशैली की तलाश में बड़ी संख्या में आदिवासी लोग अन्य राज्यों या महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं. साथ ही, आर्थिक लाभ और अन्य कारणों से धर्मांतरण की घटनाएं भी बढ़ रही हैं, जिससे आदिवासी जनसंख्या में गिरावट दर्ज की जा रही है.

संताल परगना की डेमोग्राफी में बदलाव पर चिंता

हाईकोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि संताल परगना प्रमंडल की डेमोग्राफी में हो रहे बदलाव पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है. आदिवासी आबादी की गिरावट और मुस्लिम तथा ईसाई आबादी में वृद्धि ने इलाके की सामाजिक संरचना को बदल दिया है.

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