बागवानी के खजाने का नवीनीकरण: उत्तर भारत में सेब की खेती की संभावनाओं का अन्वेषण…

भारत में सेब की खेती उत्तरी प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण कृषि विकल्प मानी जाती है. ये क्षेत्र प्राकृतिक वातावरण, शीतोष्ण जलवायु और उच्च पहाड़ी ऊँचाइयों की वजह से सेब के लिए उत्कृष्ट माने जाते हैं.

सेब के स्वास्थ्यवर्धक लाभ

सेब में विटामिन C, फाइबर और पोटेशियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं. इन तत्वों की सहायता से सेब हमारे ह्रदय को स्वस्थ रखने, इम्यूनिटी को बढ़ाने, पाचन को सुधारने और वजन प्रबंधन में मददगार साबित होता है. इसके अलावा, सेब को कोल्ड और इंफेक्शन से लड़ने में भी सहायक माना गया है और यह स्किन और बालों को स्वस्थ रखने में भी मदद करता है.

विशेषज्ञों की सलाह

बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी रांची और बीएयू के हार्टिकल्चरल बायोडायवर्सिटी पार्क जैसे संस्थानों ने सेब की विभिन्न प्रभेदों के लिए अध्ययन और प्रयोग किए हैं जिससे यह साबित हुआ है कि यह फल झारखंड के अनुकूल भूमि और जलवायु में भी उगाया जा सकता है. इस प्रयास के दौरान अन्ना प्रभेद के 18 पौधे बीएयू के पार्क में लगाए गए हैं जिनसे पिछले वर्षों से अच्छे प्रदर्शन के साथ विकसित हुए हैं.

विकास की दिशा

बायोडाइवर्सिटी पार्क के प्रभारी डॉ. अब्दुल माजिद अंसारी के अनुसार, यह प्रयोग सेब के प्रभेदों की फलन क्षमता और गुणवत्ता की जांच के लिए किया गया है और इससे इस क्षेत्र में सेब की व्यावसायिक खेती के लिए उम्मीद की जा सकती है.बीएयू के कुलपति डॉ. एससी दुबे ने वानिकी संकाय के डीन डॉ. एमएस मलिक और अनुसंधान निदेशक डॉ. पीके सिंह के साथ बायोडाइवर्सिटी पार्क का भ्रमण किया और इसे सफल खेती के लिए समर्थन दिया. उन्होंने सलाह दी कि इस विकल्प की समर्थनीयता और इसकी व्यावसायिक संभावनाओं का विस्तारित अध्ययन करना चाहिए. इस प्रक्रिया में, सेब की व्यावसायिक खेती के लिए उच्च गुणवत्ता वाली जमीन, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और उचित सिंचाई व्यवस्था की आवश्यकता होती है. इस प्रयास और अध्ययन से उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में सेब की व्यावसायिक खेती के विकास के लिए एक नई दिशा स्थापित की जा सकती है.

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