देवघर आज भी परंपरा में जीता है। यहां की जीवंतता, आस्था, निष्ठा और समर्पण दुनियां जानती है। साक्षात शिव और शक्ति का मिलन स्थल। देश के 12 ज्योतिर्लिंग में एक बाबा बैद्यनाथ का दरबार देवघर में है। होली की बात होती है तो वृंदावन की ठिठोली और लट्ठमार होली का नजारा जेहन में आता है। बावजूद बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग दरबार की होली तो बेहद अनूठी है। यह भी भारतीय संस्कृति का अलौकिक प्रतिबिंब है। यह वह स्थान है जहां हरि और हर ही नहीं, शिव और शक्ति का भी मिलन हुआ था। हरि और हर के मिलन के बाद मंदिर प्रांगण में भक्त होली खेलने में सराबोर हो जाते हैं। पूरे देवघर में होली मनती है।
गुरुवार की दोपहर 3 बजे से ही बाबा मंदिर में होली की परंपरा शुरू की गयी। दोहपर ढाई बजे बाबा का पट बंद कर दिया गया। उसके बाद दोपहर तीन बजे सरदार पंडा श्रीश्री गुलाबनंद ओझा ने राधा-कृष्ण मंदिर से राधा एवं भगवान कृष्ण यानी हरि जी को बाहर निकालकर फगडोल पर बिठाकर डोली को दोलमंच के लिए रवाना किया। इस अवसर पर नगरवासियों ने जमकर गुलाल अर्पित कर होली की शुरुआत की। वहीं, ढोल नगाड़ों की थाप पर डोली को बाबा मंदिर का परिक्रमा कराया गया।
देर रात हुआ हरि-हर मिलन..
रात 01:10 बजे होलिका दहन के बाद फगडोल पर दोबारा हरि को मंदिर के पूरब द्वार से परिसर में प्रवेश कराने के बाद गर्भगृह में बाबा भोलेनाथ से मिलन कराया गया। इस अद्भुत मिलन को देखने के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु उमड़े। इस दौरान श्रद्धालुओं ने एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते हुए जमकर गुलाल उड़ाये गये।
हरि-हर मिलन के बारे में मान्यता..
धर्मशास्त्रों के अनुसार, फाल्गुन मास पूर्णिमा के अवसर पर ही रावण द्वारा महादेव को लंका ले जाने के क्रम में लघुशंका का एहसास हुआ। इससे निवृत्त होने के लिए ग्वाले के रूप में खड़े भगवान विष्णु यानी हरि के हाथ में कुछ समय के लिए शिवलिंग को पकड़ा दिया। हरि ने शिवलिंग लेने के बाद लघुशंका में बैठे रावण की परवाह किये बिना अपने हाथों से स्थापित कर दिया। मान्यता के अनुसार, तभी से हरि एवं हर का मिलन इस खास तिथि पर शुरू किया गया, जो आज तक जारी है।