Bokaro: सरकार द्वारा हर सरकारी विद्यालय में छात्र-छात्राओं को सप्ताह में एक दिन मोटा अनाज देने का आदेश जारी किया है। अभाव में खाया जानेवाला मोटा अनाज अब लोगों के पोषक तत्व का हिस्सा बन गया है। मोटा अनाज अब औषधि के रूप में कारीगर है। मोटे अनाज के कई गुण होने के कारण सरकार भी अब इसे पोषक आहार में सम्मिलित कर रही है। झारखंड सरकार के सभी सरकारी विद्यालय में सप्ताह में एक दिन मड़वा के लड्डू बना कर दिया जा रहा है। वही मोटे अनाज के अधिक उपयोग और बाजार को देखते हुए करीब एक वर्ष पूर्व कांड्रा पंचायत की महिला समूह ने प्रशिक्षण से प्रेरित होकर मड़वा की खेती शुरू की। चास प्रखंड अन्तर्गत कांड्रा पंचायत के रामडीह गांव की एकता आजीविका महिला सखी मंडल मैं प्रशिक्षण ले रही कई महिलाओं ने जब जाना की मड़वा प्रतिदिन सेवन करने से शुगर जैसी गंभीर बीमारी से लोग छुटकारा पा सकते हैं, साथ ही मड़वा सहित अन्य मोटे अनाज इस बीमारी को ठीक कर सकता है, तो प्रशिक्षण के बाद ग्रामीण महिलाओं ने इसकी चर्चा अपने परिवार के
मड़वा की खेती कैसे रहा रोजगार….
मड़वा की खेती करने के लिए जेएसएलपीएल के माध्यम से प्रशिक्षण ले चुकी महिला को बीज उपलब्ध कराया गया। महिला समूह द्वारा कड़ी मेहनत कर बीज को पौधा में परिवर्तन करने के बाद इसकी रोपाई बाड़ी में की गयी। मडवा की खेती में महिलाओं ने सफलता पायी। एक क्विंटल 35 किलो मड़वा की खेती कर यह साबित कर दिया कि धान गेहूं सहित अन्य फसलों की तरह मड़वा की खेती भी की जा सकती और अच्छी आमदनी भी प्राप्त की जा सकती है।
आसपास के लोग हो रहे हैं प्रेरित…..
महिलाओं ने बताया कि सफलतापूर्वक मड़वा की खेती करने के बाद इससे प्रेरित होकर हमारे गांव सहित आसपास के लोग भी मड़वा की खेती करने के लिए उत्सुक है।आसपास की महिला व पुरुष जानकारी लेने के लिए समूह के पास आते रहते है। इस वर्ष हम लोग भी बड़े पैमाने पर अपने खेतों में मड़वा की खेती करने के लिए तैयार है।
मोटा अनाज बन गया है औषधि….
वहीं क्षेत्र मौजूद बुजुर्गों का कहना है कि गरीबों के समय अनाज के अभाव में मोटे अनाज को खाया करते थे जो कि आज के समय में लोगों के लिए औषधि साबित हो रहा है। बीमारियां आज के लोग झेल रहे हैं 70-80 साल पूर्व इतनी बीमारियां का प्रभाव लोगों पर नहीं हुआ करता था। इसका एकमात्र कारण यह है कि लोग उसे समय अभाव में मोटा अनाज का सेवन कर रहे थे, उस समय लोग मड़वा, मकई की लपसी, ज्वार के अनाज खाकर गुजर-बसर करते थे।