समय की कमी के कारण इस साल झारखंड विधानसभा में शीतकालीन सत्र नहीं बुलाया जाएगा। संसदीय मामलों के राज्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा है कि फरवरी के तीसरे सप्ताह में बजट सत्र बुलाने के लिए योजनाएं चल रही हैं। आलम ने कहा, “अब तक, झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र को बुलाने की कोई योजना नहीं है। दूसरा राज्य अनुपूरक बजट, जिसे आम तौर पर शीतकालीन सत्र में पेश किया जाता है, बजट दस्तावेज लाने से पहले आगामी सत्र में पेश किया जाएगा। ”
वर्ष 2020 में, कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए लगाए मार्च में गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के अनुपालन के तहत बजट सत्र तीन दिन पहले स्थगित कर दिया गया था। इसके बाद, सरकार ने 18 से 22 सितंबर के बीच मानसून सत्र बुलाया था, जहां पहले अनुपूरक बजट पर बहस हुई थी और सदन द्वारा उस समय पारित किया गया था।
नवंबर में, सरकार ने विशेष एक दिवसीय सत्र बुलाया था और सरना धर्म कोड को लेकर एक प्रस्ताव पारित की थी । यह प्रस्ताव राज्य सरकार की ओर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा प्रस्तुत किया गया था और इसके पारित होने के बाद केंद्र को भेजा गया था। संविधान के नियम के तहत छह महीने में एक बार सदन बुलाना अनिवार्य है।
दूसरी तरफ, झारखंड विधानसभा की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भाजपा ने शीतकालीन सत्र छोड़ने का फैसला सही नहीं ठहराया है। बीजेपी विधायक दल के सचेतक और बोकारो के विधायक बिरंची नारायण ने कहा कि “जब झारखंड में महामारी फैल रही थी उस वक्त अगर सरकार अपने एक साल का कार्यकाल पूरा होने पर उत्सव मना सकती है, विशेष सत्र और मॉनसून सत्र बुला सकती है तो वो दिसंबर में शीतकालीन सत्र क्यों नहीं बुला सकती थी। उन्होंने सत्र नहीं बुलाया क्योंकि वे अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से लोगों के सवालों का सामना नहीं करना चाहते हैं। यह बेहद शर्मनाक है। ”