3 दिसंबर को हर साल पुरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस को मनाया जाता है। साल 1992 में एक घोषणा पत्र द्वारा विश्व स्तर पर इसे मनाने का फैसला लिया गया था। दिव्यांग जनों के लिए समाज के हर वर्ग को जागरूक करना, सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ाने और उनकी उपलब्धियों सहित योगदान को समाज के हर वर्ग तक पहुँचाने के लिए इस दिवस को मनाया जाता है।
झारखण्ड राज्य में आज भी दिव्यांग जनों की 80% जनसंख्या समाज के मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाई है। उनके हेतु बनाए गए क़ानून या फिर नियमों का सही तरह से उनकी सुविधा को बढ़ाने में काम में राज्य असफल है। इसके अलावा, दिव्यांग जनों से संबंध रखने वाले विभाग-कार्यालय, हितधारक भी अपने कार्य को पूर्ण ईमानदारी से नहीं कर रहे।
अजीत कुमार ने कहा कि भारत में पहली बार दिव्यांग जनों के लिए समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण व पूर्ण भागीदारी अधिनियम 1995 लाया गया था। इसमें पूर्ण रूप से दृष्टिहीनता, अल्प दृष्टि, चलंत निशक्तता, श्रवन हीनता, मानसिक रुग्णता, मानसिक मंदता और कुष्ठ रोग से उपचारित व्यक्तियों को रखा गया था। हालांकि ऑटिज्म, प्रमस्तिष्क पक्षाघात, मानसिक मंदता और बहुविकलांगताओं इत्यादि से ग्रस्त व्यक्तियों के कल्याणार्थ राष्ट्रीय न्यास अधिनियम 1999 में लाया गया था। इसमें राष्ट्रीय न्यास के गठन, स्थानीय स्तर पर समितियां, न्यास की जवावबदेही और निगरानी का प्रावधान करता है। साथ ही, दिव्यांग व्यक्तियों के चार वर्गों के लिए कानूनी अभिभावक और यथासंभव समावेशी परिवेश निर्माण का भी प्रावधान है।
उन्होंने कहा कि झारखंड राज्य में दिव्यांग जनों के लिए अलग विभाग या निदेशालय की स्थापना, विकलांगों के लिए आरक्षण के हिसाब से खाली पदों पर विशेष अभियान के तहत बैकलॉग नियुक्ति करना, रोजगार और स्वरोजगार के लिए विशेष योजनाओं को चलाना, स्कूलों और कॉलेजों में सुगम एवं निशुल्क शिक्षा प्रदान करना, सभी विद्यालयों में विशेष शिक्षक की नियुक्ति, राज्य दिव्यांग वित्त एवं विकास निगम की स्थापना, विकलांगता आयुक्त के कार्यालय का अलग से वेबसाइट एवं शिकायत निवारण तंत्र को और सक्रिय करना आदि उपायों से झारखंड राज्य के दिव्यांग जनों को अन्य राज्यों की तरह तीव्र गति से सशक्त किया जा सकता है।