झारखंड में जल संकट: सिंचाई परियोजनाएं अटकी, पानी की कमी

 रांची : झारखण्ड उन राज्यों में से एक है जहां हर साल 1200 से 1400 मिमी बारिश होती है,उसके बावजूद  वहां के जल स्रोतों की स्थिति गंभीर है। राज्य में बारिश होने के बावजूद जल संसाधनों का सही से उपयोग नहीं हो पा  रहा है। भूगर्भ जल का स्तर भी बहुत नीचे जा चुका है, और ऊपरी जल बचाने के प्रयास भी अधूरे हैं। राज्य में कई सिंचाई परियोजनाएं सालों से अटकी हुई हैं, और नई परियोजनाओं पर काम नहीं हो रहा है, जिस वजह से यहां केवल एक फसल ही उगाई जा पाती है।

Follow the Jharkhand Updates channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VafHItD1SWsuSX7xQA3P

सिंचाई परियोजनाओं की स्थिति:

जल संसाधन विभाग का दावा है कि 10 लाख हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा हो गई है, जो कुल सिंचाई क्षेत्र का करीब 41 फीसदी है। लेकिन रबी के मौसम में भी सिर्फ 79 हजार हेक्टेयर में ही सिंचाई की सुविधा मिल पाई है। स्वर्णरेखा सिंचाई परियोजना, जो 1978 में शुरू हुई थी, आज तक पूरी नहीं हो पाई है। इसका बजट 128 करोड़ से बढ़कर 14949 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। इसी तरह, कोनार सिंचाई परियोजना और गुमानी बराज परियोजना भी अधूरी हैं।

जलाशयों की सफाई नहीं:

राजधानी रांची के तीन प्रमुख जलाशयों – कांके, रुक्का और धुर्वा डैम – में गाद जम गया है। इसकी सफाई न होने से इनकी जलधारण क्षमता घट गई है। नतीजतन, गर्मी के दिनों में राजधानी के लोगों  को पानी की दिक्कत का सामना करना पड़ता है। राजधानी में भूगर्भ जल का स्तर भी खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है।

कृषि पर असर:

सिंचाई की सुविधा की कमी के कारण राज्य के अधिकतर खेत खाली रह जाते हैं। इसके अलावा, खरीफ सीजन में बारिश न होने पर सूखा भी पड़ जाता है, जिससे कृषि उत्पादन प्रभावित होता है। झारखंड में करीब 24 लाख हेक्टेयर खेती योग्य भूमि है, लेकिन सिंचाई की कमी के कारण इसका सही  उपयोग नहीं हो पा रहा है।

झारखंड में पानी की कमी बढ़ रही है, इसलिए पानी को बचाना और सही तरीके से इस्तेमाल करना बहुत जरूरी हो गया है।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

×