रांची: राज्य की राजधानी रांची के कांके इलाके में रिम्स (राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) फेज-2 के निर्माण को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। सरकार की ओर से जमीन मापी की प्रक्रिया शुरू होते ही ग्रामीणों ने विरोध दर्ज कराते हुए काम को बीच में ही रुकवा दिया। ग्रामीणों के आक्रोश के चलते प्रशासन और पुलिस को भी पीछे हटना पड़ा।
सरकार की योजना के तहत कांके स्थित रिनपास (रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो-पैसिएट्स एंड साइंस) के पीछे बिरसा एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय की जमीन पर रिम्स-2 का निर्माण किया जाना है। स्वास्थ्य विभाग ने इस परियोजना के तहत 110 एकड़ जमीन पर लगभग 1074 करोड़ रुपये की लागत से आधुनिक चिकित्सा सुविधा का विकास करने का लक्ष्य रखा है। प्रस्तावित योजना में 700 बेड का अस्पताल और 150 मेडिकल शिक्षा सीटें (100 अंडरग्रेजुएट, 50 पोस्टग्रेजुएट) शामिल हैं।
ग्रामीणों का विरोध और आरोप
मापी कार्य शुरू होते ही स्थानीय ग्रामीणों ने जमकर विरोध किया। उनका आरोप है कि न तो उन्हें मुआवजा दिया गया, न ही जमीन अधिग्रहण से जुड़ी कोई सूचना या नोटिस भेजा गया। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन जबरन उनकी जमीन हड़पना चाह रहा है।
हरीश उरांव, एक स्थानीय ग्रामीण ने कहा, “सरकार बिना हमारी जानकारी के हमारी जमीन लूटना चाह रही है। बिना नोटिस दिए यहां पुलिस भेज दी गई है।”
अजय टोप्पो, एक अन्य ग्रामीण, ने आरोप लगाया कि “रातों-रात सरकार जमीन हथियाने में लगी है। पहले लॉ यूनिवर्सिटी के नाम पर जमीन ली गई थी, लेकिन बदले में लोगों को नौकरी तक नहीं दी गई। केवल कुछ लोगों को झाड़ू-पोछा और शौचालय की सफाई का काम दिया गया है।”
प्रशासन की सफाई
कांके अंचल के अंचल अधिकारी (सीओ) ने स्पष्ट किया है कि जिस जमीन की मापी की जा रही थी, वह बिरसा एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय की है, न कि ग्रामीणों की निजी संपत्ति। प्रशासन ने पुलिस की मदद से ग्रामीणों को समझाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। इसके विपरीत, विरोध को चिह्नित करते हुए ग्रामीणों ने जमीन पर ‘सरना झंडा’ गाड़ दिया, जो उनके पारंपरिक अधिकारों और धार्मिक भावनाओं का प्रतीक माना जाता है।
सरकार की मंशा पर सवाल
इस पूरे घटनाक्रम ने सरकार की नीयत और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर जहां सरकार झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय समुदायों को विश्वास में लिए बिना इस तरह की कार्रवाई से जनविरोध बढ़ता जा रहा है।
रिम्स-2 जैसी स्वास्थ्य सुविधा राज्य के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन भूमि अधिग्रहण से जुड़ी संवेदनशीलता को नजरअंदाज करना सरकार के लिए महंगा पड़ सकता है। जब तक सभी हितधारकों को विश्वास में लेकर पारदर्शी प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती, तब तक ऐसे विकास कार्यों को स्थानीय समर्थन मिलना मुश्किल है।