साइबेरियन पक्षियों का जलाशयों में पहुंचने का सिलसिला शुरु..

प्राकृतिक और नैसर्गिक सौंदर्यता का धनी तोपचांची झील की खूबसूरती कायल केवल पर्यटक ही नही बल्कि सायबेरियन पक्षी भी जो प्रत्येक वर्ष हजारो मिल का फासला तय कर झील चले आते है । पर्यटन स्थलों में तोपचांची झील की अपनी विशिष्ट पहचान है मनोरम पहाड़ियों की गोद मे बसी इस झील की नैसर्गिक सुषमा देश भर में बिख्यात है इसकी नैसर्गिक सौंदर्यता को देखने के लिए सालो भर यहा पर्यटकों का तांता लगा हुवा रहता है । इसकी नैसर्गिक सौंदर्यता से अभिभूत होकर कई फिल्मों के निदेशकों ने यहां पर कई फिल्मों की शूटिंग भी करवा चुके है । वर्ष 1966 में हिंदी फिल्म के स्टार कलाकार धर्मेंद्र ,राज श्री ,तथा महमूद की फ़िल्म मोहब्बत एक जिंदगी है कई दृश्य का फिल्मांकन इस झील में किया गया था । बंगला फ़िल्म के अभिनेता उत्तम कुमार के कई फिल्मों की शूटिंग यहां पर हो चुका है । वही झारखंड के स्थानीय कलाकारों के खोरठा तथा नागपुरी गानों का शूटिंग भी इस झील में हमेशा होता रहता है ।

झील का इतिहास: 15 नवम्बर 1924 को बिहार ओडिशा के गवर्नर सर हेनरी वीलर के द्वारा कोयलांचल में जलापूर्ति करने के उद्देश्य से इस झील की नींव रखी गई थी । तोपचांची झील सौन्दर्यकरण योजना के तहत वर्ष 2007 में यहां सैलानियों के लिए नोका बिहार की व्यवस्था की गई थी लेकिन रख रखाव के अभाव कुछ वर्ष के बाद बन्द हो गया ।

इस वर्ष क्या है खास: तोपचांची झील सौंदर्यता योजना के लाखो की लागत से लीची बगान में पेवर ब्लॉक तथा सेड बनाया गया है जहां पर्यटक पिकनिक का आनन्द उठा पाएंगे ।

कैसे पहुचे: तोपचांची झील नेशनल हाइवे से बिल्कुल सटा हुवा है धनबाद से इसकी दूरी महज 35 किलोमीटर है धनबाद से सड़क मार्ग से पर्यटक यहां आराम से पहुच सकते है वही रेल मार्ग से आने वाले पर्यटकों को गोमो स्टेशन उतरना पड़ेगा वहां से टेम्पू के माध्यम से पर्यटक 8 किलोमीटर की फासला तय कर यहां पहुच सकते है ।

ठंड से बचने के लिए भारत आते हैं पक्षी..
अभी साइबेरिया में ठंड अधिक पड़ती है। तापमान माइनस में चला जाता है और वहां बर्फ पड़ने लगती है। बर्फ से बचने के लिए ही साइबेरियाई पक्षी भारत की ओर पलायन करते हैं। यह झील के आसपास अपना डेरा बसाते हैं। झील में इन्हें भोजन के लिए मछलियां भी आसानी से मिल जाती है। साइबेरिया क्षेत्र रूस का मध्य और पूर्वी भाग है। यहां से आने वाले पक्षियों को ही साइबेरियाई पक्षी कहा जाता है। यह पक्षी तोपचांची के साथ-साथ पास के मैथन डैम और गिरिडीह के खंडोली डैम में भी अपना बसेरा बनाते हैं।

मार्च में वापस लौट जाते हैं साइबेरियाई पक्षी..
दिसंबर में तोपचांची झील आने वाले साइबेरियाई पक्षी लगभग तीन माह रहकर मार्च के महीने में यह वापस लौट जाते हैं। जैसे-जैसे गर्मी पड़ने लगती है, वापस ये अपने देश लौट जाते हैं।

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