लड़कियों की शादी के लिए भी है एक अनोखी परंपरा पूरा गांव उठना है शादी का खर्च..

Jharkhand: झारखंड के जिलों में विभिन्न प्रकार की परंपरा और मान्यताएं अभी भी मौजूद है। झारखंड में रह रहे लोग इन परंपराओं को भूल नहीं है। वह आज भी इनका सम्मान इस प्रकार करते है। जिस प्रकार इन परंपराओं को शुरू किया गया था। झारखंड में आदिवासी बहुल पश्चिमी सिंहभूम और पूर्वी सिंहभूम जिले के कई गांव ऐसे है, जो अपनी विशेषता के लिए पूरे देश में चर्चित है। झारखंड के लगभग 75% लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर लोग या तो खुद के खेतों में खेती करते है या फिर मजदूर बनकर किसी और के खेतों में काम कर जीवनयापन करते है। लेकिन झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के कुन्दुबेड़ा गांव में खेती की एक अनोखी परंपरा के अनुसार धान की कटाई में किसी तरह की मजदूरी नहीं देनी पड़ती है। वहीं पूर्वी सिंहभूम जिले के डोभापानी गांव में लड़की की शादी में उसके माता-पिता पर कोई आर्थिक बोझ नहीं पड़ता है, बल्कि सभी गांव वाले मिलकर शादी का खर्च उठाते हैं।

‘देंगा-देपेंगा’ परंपरा से होती है खेती…
पश्चिमी सिंहभूम जिले के कुन्दुबेड़ा गांव ऐसी परंपरा विकसित है जिसे आदिवासी ‘हो’ भाषा में ‘देंगा-देपेंगा’ कहते हैं। सामूहिक श्रमदान की दशकों पुरानी अनोखी परंपरा पुरखों से चली आ रही है। धान की कटाई के समय बाहर रहने वाले लोग भी गांव आते हैं। धान की कटाई के दौरान पूरा गांव एक साथ मिलकर काम करता है और एक-दूसरे के खेतों में धान की कटाई में सहयोग करते है। दूसरों के खेतों में धान की कटाई के कम कर रहे हैं मजदूरों को इसके लिए किसी तरह की मजदूरी नहीं दी जाती है। वर्षाें पुरानी परंपरा आज भी इस गांव में बरकरार है। अब भी कुन्दुबेड़ा गांव वाले सामूहिक श्रमदान से ही खेती कर रहे है।

लड़कियों की शादी में पूरा गांव करता है आर्थिक मदद…
झारखंड में पूर्वी सिंहभूम जिले के आदिवासी बहुल डोभापानी गांव ने लड़कियों की शादी में अनोखी परंपरा है। लड़कियों की शादी में परिवार पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ की समस्या का हल परिजनों पूर्ण रूप से ना पड़े, बल्कि इसे सामूहिक रूप से सब पर बांट लिया गया है। इस गांव में किसी भी परिवार की लड़की की शादी हो, खर्च पूरा गांव मिलकर उठाता है। पूरा गांव एक साथ लड़की के माता-पिता, भाई-बहन की भूमिका में उठ खड़ा होता है। लड़की के मां-पिता पर खर्च का बोझ न के बराबर होता है। अब डोभा पानी गांव का यह प्रयोग आस-पास के दूसरे गांव के लोग भी अपनाने लगे है। डोभापानी गांव में संताली आदिवासियों के करीब 40 घर है।

पंच उठाते हैं जिम्मेदारी…
गांवों में किसी भी परिवार में बेटी की शादी हो तो हर घर से चावल, दाल, सब्जी और एक निर्धारित सहयोग राशि जुटाते में गांव में पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के पंच इस बात की जिम्मेदारी उठाते है।

प्रत्येक घर से इकट्ठा होता है दो सौ रुपए…
गांव में प्रत्येक घर से दो सौ रुपए और पांच पोयला (पांच किलो) चावल व अन्य सामग्री इकट्ठा की जाती है। पंचों ने एक सामुदायिक फंड भी बना रखा है, जिससे 25 किलो मुर्गा और दस किलो मछली भी उपलब्ध कराई जाती है। अब इस गांव में किसी भी लड़की की शादी के लिए किसी परिवार को बाहर से कर्ज नहीं लेना पड़ता।

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