झारखंड राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है. देशभर में स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (IPHS) का पालन किया जाता है, जिसके तहत जिला अस्पतालों में उपलब्ध बेड की संख्या उस जिले की जनसंख्या के अनुसार तय की जाती है. लेकिन झारखंड में यह मानक पूरी तरह से पीछे छूटता नजर आ रहा है. राज्य में 2022 तक की जनसंख्या 4 करोड़ 22 लाख 28 हजार 108 आंकी गई थी. इस हिसाब से राज्य के जिला अस्पतालों में 19,256 बेड की आवश्यकता है. लेकिन वास्तविकता यह है कि पूरे राज्य में महज 3710 बेड ही मौजूद हैं, यानी कुल जरूरत के मुकाबले केवल 40 प्रतिशत बेड उपलब्ध हैं. सीधे शब्दों में कहें तो राज्य में लगभग 60 प्रतिशत बेड की भारी कमी है.
धनबाद में सबसे ज्यादा संकट
अंकेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में सबसे ज्यादा बेड की कमी धनबाद जिले में दर्ज की गई है. धनबाद में लगभग 30.55 लाख की आबादी है, जिसके अनुसार 670 बेड की जरूरत है. लेकिन रिपोर्ट बताती है कि अंकेक्षण के समय वहां एक भी बेड मौजूद नहीं था. बाद में प्रयास कर 100 नए बेड शुरू किए गए. इसी तरह, गिरिडीह जिले में 33.24 लाख जनसंख्या के अनुसार 728 बेड की जरूरत है, जबकि वहां सिर्फ 200 बेड हैं, यानी 528 बेड की भारी कमी है. राजधानी रांची में भी स्थिति कुछ बेहतर नहीं है. रांची की 37.80 लाख आबादी के मुकाबले 828 बेड होने चाहिए थे, लेकिन उपलब्ध बेड की संख्या मात्र 401 है. पूर्वी सिंहभूम जिले में भी 495 बेड की कमी दर्ज की गई है.
मातृत्व और शिशु देखभाल में भी कमी
झारखंड में मातृत्व और नवजात शिशु देखभाल सेवाओं की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है. राज्य के सभी जिला अस्पतालों में मातृत्व एवं शिशु देखभाल के लिए कुल 1066 बेड ही उपलब्ध हैं. अंकेक्षण में पाया गया कि छह जिला अस्पतालों में मातृत्व और शिशु देखभाल के लिए बेड की संख्या 30 या उससे भी कम है. तीन सालों की अवधि (2019-20 से 2021-22) में राज्यभर में मातृत्व और शिशु देखभाल के लिए मात्र 37 बेड का इजाफा हुआ है, जो बहुत ही कम है. उदाहरण के तौर पर, रांची में जहां कुल 200 बेड हैं, वहीं लातेहार जिले में मातृत्व और शिशु देखभाल के लिए केवल 21 बेड मौजूद हैं. प्रसव के दौरान उचित देखभाल के अभाव में मृत जन्म, नवजात मृत्यु और अन्य जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए प्रसूति सेवाओं को सुदृढ़ करना अत्यंत आवश्यक है.
स्वास्थ्य मंत्री का संकल्प
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने इस गंभीर स्थिति पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं में व्यापक बदलाव लाने के लिए मिशन मोड पर काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर जिला अस्पतालों में बेड बढ़ाने की योजना है. साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं की बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाएगा, अत्याधुनिक जांच और उपचार सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी. उन्होंने भरोसा दिलाया कि स्वास्थ्य विभाग को भ्रष्टाचारमुक्त बनाया जाएगा और केवल ईमानदारी से काम करने वाले कर्मियों को ही बनाए रखा जाएगा.
स्वास्थ्य सेवा के मानक और गणना का आधार
भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (IPHS) के अनुसार, जिला अस्पतालों में बेड की आवश्यकता जिले की कुल जनसंख्या पर आधारित होती है. इसके लिए प्रति 50 की आबादी पर एक एडमिशन और अस्पताल में औसतन पांच दिनों के ठहराव को आधार मानते हुए बेड की संख्या तय की जाती है. इस गणना के अनुसार, पूरे झारखंड में कम से कम 9256 अतिरिक्त बेडों की जरूरत है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
• राज्य की कुल जनसंख्या: 4.22 करोड़ (2022 के अनुसार)
• जिला अस्पतालों में आवश्यक बेड: 19,256
• वर्तमान में उपलब्ध बेड: 3710
• कुल बेड की कमी: 15,546
• मातृत्व और शिशु देखभाल के लिए उपलब्ध बेड: 1066
• तीन साल में मातृत्व और शिशु देखभाल के बेड में वृद्धि: केवल 37 बेड