राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में आयुष्मान भारत योजना के तहत हृदय रोगियों को इलाज में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। गंभीर हालत में भी मरीजों को इलाज के लिए सात दिन तक का इंतज़ार करना पड़ता है, जबकि पैसे वालों को फौरन पेसमेकर और स्टेंट उपलब्ध करा दिया जाता है।
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गरीबों को सात दिन की वेटिंग, अमीरों का तुरंत इलाज
रिम्स में हृदय रोग के इलाज के लिए स्टेंट या पेसमेकर की जरूरत पड़ने पर आयुष्मान योजना के लाभार्थियों को लंबी प्रक्रिया और मंज़ूरी के इंतज़ार में कई दिन अस्पताल में ही रहना पड़ता है। वहीं, निजी अस्पतालों में यही उपचार आयुष्मान योजना के तहत तुरंत कर दिया जाता है।
उधार लेकर करा रहे इलाज
स्थिति इतनी गंभीर है कि कई मरीज योजना के बावजूद उधार लेकर अपना इलाज करा रहे हैं। सिंगल चेंबर पेसमेकर की लागत लगभग 1 लाख रुपये है, जबकि डबल चेंबर के लिए 1.30 लाख रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं।
जांच पर 10 हजार तक का खर्च
योजना के तहत इलाज कराने से पहले मरीजों को कई तरह की जांचें करानी पड़ती हैं, जिनमें 10 हजार रुपये तक खर्च हो जाते हैं। जब तक ये जांच पूरी नहीं होतीं, तब तक आयुष्मान योजना से अप्रूवल नहीं मिलता।
अन्य विभागों की स्थिति भी चिंताजनक
कार्डियोलॉजी के अलावा ऑर्थो, सीटीवीएस और न्यूरोलॉजी विभाग में भी आयुष्मान लाभार्थियों को इलाज के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। ऑपरेशन की तारीख मिलने के बाद भी स्टेंट और उपकरणों की उपलब्धता में देरी परेशानी को और बढ़ा देती है।
रिम्स प्रबंधन की सफाई
रिम्स पीआरओ डॉ. राजीव रंजन के अनुसार, स्टेंट की आपूर्ति जन औषधि केंद्र के माध्यम से की जाती है। इसमें देरी जन औषधि केंद्र की ओर से हो रही है। अस्पताल प्रशासन ने मौखिक और लिखित रूप से सुधार के निर्देश दिए हैं, जिससे इंतज़ार कर रहे मरीजों को जल्द राहत मिल सके।
निजी अस्पताल पहले कैश में इलाज कराने का दबाव बनाते हैं
रांची के कुछ निजी अस्पतालों में भी आयुष्मान योजना के तहत इलाज करने से पहले मरीजों को कैश से इलाज कराने के लिए प्रेरित किया जाता है। जब यह स्पष्ट हो जाता है कि मरीज आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है, तब जाकर योजना के तहत इलाज किया जाता है।