विधानसभा में गूंजा शिशु हत्या का मुद्दा, MLA अरूप चटर्जी ने की IP Act मांग की…..

झारखंड विधानसभा के बजट सत्र 2025 में नवजात शिशु हत्या और असुरक्षित परित्याग का गंभीर मुद्दा उठा. निरसा से विधायक अरूप चटर्जी ने सदन में इस संवेदनशील विषय पर चर्चा की और Infant Protection Act लाने की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में नवजात शिशुओं की हत्या और उन्हें असुरक्षित तरीके से छोड़ने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं. यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जिसे रोकने के लिए एक मजबूत और प्रभावी कानून की आवश्यकता है.

हेमंत सोरेन सरकार से कानून बनाने की अपील

विधायक अरूप चटर्जी ने झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार से अनुरोध किया कि वह Infant Protection Act को लागू करने की दिशा में ठोस कदम उठाए. उन्होंने PaaLoNaa अभियान द्वारा शिशु हत्या और परित्याग से जुड़े डाटा को भी सदन में पेश किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यह एक गंभीर समस्या बन चुकी है. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे का समाधान केवल सख्त कानून और संवैधानिक पहल के माध्यम से ही संभव है. अरूप चटर्जी ने सदन में इस बात पर भी चिंता जताई कि नवजात शिशुओं की हत्या या उन्हें लावारिस छोड़ने के पीछे कई सामाजिक और आर्थिक कारण हैं. इसके समाधान के लिए सरकार को नीतिगत फैसले लेने होंगे और सामाजिक जागरूकता अभियान भी चलाने होंगे.

PaaLoNaa अभियान का योगदान

इस मुद्दे को लेकर PaaLoNaa अभियान लगातार सक्रिय रहा है. यह एक सामाजिक जागरूकता अभियान है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2015 में Ashrayani Foundation के तहत की गई थी. यह संस्था देश में शिशु हत्या और असुरक्षित परित्याग को रोकने के लिए डाटा संग्रह, जागरूकता, पत्रकारिता, शोध, नीति-निर्माण, प्रशिक्षण और वकालत के माध्यम से कार्य कर रही है. PaaLoNaa अभियान ही वह पहला मंच था जिसने Infant Protection Act की मांग को उठाया था. इस अभियान की संस्थापक एवं संपादक मोनिका गुंजन आर्या ने विधायक अरूप चटर्जी के प्रयासों की सराहना की और सदन में इस मुद्दे को उठाने के लिए उनका आभार व्यक्त किया.

Infant Protection Act क्यों जरूरी?

वर्तमान में झारखंड समेत पूरे देश में शिशु संरक्षण से जुड़े कोई ठोस कानून नहीं हैं. Infant Protection Act की मदद से सरकार नवजात शिशुओं को सुरक्षित माहौल देने, शिशु हत्या को रोकने और उन्हें संरक्षण प्रदान करने के लिए आवश्यक कदम उठा सकती है. अरूप चटर्जी का कहना है कि यदि यह कानून लागू होता है, तो इसके तहत सख्त सजा, पुनर्वास योजनाएं और जन-जागरूकता कार्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी नवजात की हत्या या परित्याग न हो. उन्होंने सरकार से अपील की कि वह इस पर जल्द फैसला ले, ताकि झारखंड इस दिशा में एक मॉडल राज्य बन सके.

सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार

अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि हेमंत सोरेन सरकार इस मांग पर क्या रुख अपनाती है. क्या झारखंड Infant Protection Act लागू करने वाला पहला राज्य बनेगा? इस पर सबकी नजरें टिकी हैं. वहीं, इस मुद्दे पर समाज के विभिन्न वर्गों से भी प्रतिक्रिया आने लगी है. सामाजिक संगठनों और बाल संरक्षण से जुड़े कार्यकर्ताओं ने सरकार से इस कानून को जल्द लागू करने की मांग की है.

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