झारखंड के बहुचर्चित टेंडर कमीशन घोटाले में फंसे पूर्व मंत्री आलमगीर आलम और उनके पूर्व आप्त सचिव संजीव कुमार लाल की जमानत याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट की एकलपीठ ने सुनवाई से इनकार कर दिया है. हाईकोर्ट के जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की अदालत में इन दोनों आरोपियों की अलग-अलग जमानत याचिकाओं पर आंशिक सुनवाई हुई, लेकिन बाद में अदालत ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया. जस्टिस मुखोपाध्याय ने कहा कि इस मामले को अब मुख्य न्यायाधीश की अनुमति से किसी अन्य सक्षम पीठ के पास स्थानांतरित किया जाएगा. उन्होंने निर्देश दिया कि इन याचिकाओं को उनकी कोर्ट की सूची से हटा दिया जाए और किसी दूसरी पीठ के समक्ष पेश किया जाए. इससे पहले, निचली अदालत ने आलमगीर आलम और संजीव कुमार लाल की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी थीं. इसके बाद दोनों ने हाईकोर्ट में अपनी जमानत के लिए अपील की थी. यह मामला प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा चलाए जा रहे मनी लॉन्ड्रिंग जांच से जुड़ा है. ईडी ने ग्रामीण विकास विभाग से जुड़ी योजनाओं में टेंडर आवंटन में कथित कमीशनखोरी और अवैध पैसों के लेन-देन को लेकर छापेमारी की थी. इस छापेमारी की शुरुआत उस समय हुई जब तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम के आप्त सचिव संजीव कुमार लाल और उसके घरेलू नौकर जहांगीर आलम के कई ठिकानों पर कार्रवाई की गई. इस कार्रवाई में ईडी को जहांगीर आलम के रांची स्थित घर से 32 करोड़ रुपये की नकदी बरामद हुई थी. इसके अलावा संजीव कुमार लाल के घर से कंप्यूटर, दस्तावेज और एक डायरी मिली थी, जिसमें योजनाओं से लिए गए कमीशन का विस्तृत ब्यौरा दर्ज था. डायरी में योजना का नाम, किस अधिकारी से कितना कमीशन लिया गया, और पैसों के लेन-देन की पूरी जानकारी थी. इन सबूतों के आधार पर ईडी ने तत्कालीन मंत्री आलमगीर आलम को पूछताछ के लिए बुलाया था. कई राउंड की पूछताछ के बाद 15 मई 2024 को उन्हें आधिकारिक रूप से गिरफ्तार कर लिया गया. ईडी का आरोप है कि ग्रामीण विकास विभाग के टेंडर में कमीशन तय कर के लिया जाता था और इस पूरे नेटवर्क में मंत्री, सचिव और उनके सहयोगी शामिल थे. बरामद रकम और दस्तावेज इस घोटाले की गहराई को दर्शाते हैं. यह मामला फिलहाल राज्य की राजनीति में बड़ा मुद्दा बना हुआ है और सरकार व प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं.
आलमगीर आलम और संजीव कुमार लाल की जमानत याचिका पर सुनवाई से कोर्ट ने किया इनकार…..
