सूर्या हांसदा एनकाउंटर: जयराम महतो ने उठाया आदिवासी शोषण का मुद्दा

धनबाद | झारखंड में हाल ही में हुए सूर्या हांसदा एनकाउंटर मामले पर झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) के सुप्रीमो एवं डुमरी विधायक जयराम महतो ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने मंगलवार को धनबाद परिसदन में मीडिया से बातचीत में कहा कि “जिन आदिवासियों के पूर्वजों ने झारखंड राज्य के लिए लड़ते हुए गोलियां खाईं, आज उसी समाज के लोग एनकाउंटर का शिकार हो रहे हैं।”

जयराम महतो ने आरोप लगाया कि अपराध, नक्सलवाद और एनकाउंटर के नाम पर आदिवासी समाज का लगातार दोहन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति और भी विडंबनापूर्ण है क्योंकि मौजूदा समय में मुख्यमंत्री और देश के राष्ट्रपति, दोनों ही इसी आदिवासी समाज से आते हैं। “अदिवासी समाज का मुख्यधारा से अलग होना और मूल मुद्दों से भटकना गंभीर चिंता का विषय है। इस पर समाज के बुद्धिजीवियों को गंभीरता से विचार करना चाहिए,” उन्होंने कहा।

पार्टी टिकट देने की पृष्ठभूमि पर भी बोले जयराम

जयराम महतो ने सूर्या हांसदा को टिकट देने के फैसले की पृष्ठभूमि पर भी खुलासा किया। उन्होंने बताया कि पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को पूरी तैयारी के लिए मात्र 30 दिनों का समय मिला था। इस दौरान वे खुद भी दो सीटों से चुनाव लड़ रहे थे, जिससे समय की कमी और भी बढ़ गई थी।

जेएलकेएम का मुख्य आधार कोयलांचल क्षेत्र था, लेकिन पार्टी संसदीय बोर्ड ने तय किया था कि अन्य इलाकों में ऐसे प्रत्याशी उतारे जाएंगे, जिन्होंने पिछले चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया हो। इसी रणनीति के तहत संताल क्षेत्र से सूर्या हांसदा को टिकट दिया गया।

बीजेपी पृष्ठभूमि और वोट बैंक की उम्मीद

जयराम ने कहा कि 2019 के विधानसभा चुनाव में सूर्या हांसदा ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और 45 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे। ऐसे में उम्मीद थी कि इस बार वे कम से कम 50 हजार वोट लेकर आएंगे, जिससे पार्टी को मजबूती मिलेगी।

“कम समय होने की वजह से उनके व्यक्तिगत बैकग्राउंड की गहराई से जांच करने का अवसर नहीं मिल पाया। हमारा ध्यान केवल उनके चुनावी प्रदर्शन पर था,” महतो ने कहा।

एनकाउंटर पर गंभीर सवाल

सूर्या हांसदा का हाल ही में हुए पुलिस एनकाउंटर में मारा जाना अब एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। जयराम महतो का बयान इस मामले को और गरमा सकता है, क्योंकि उन्होंने इसे केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि आदिवासी समाज के दमन के रूप में पेश किया है। उन्होंने यह भी कहा कि समाज को एकजुट होकर इस तरह की घटनाओं पर आवाज उठानी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपने अधिकारों और सम्मान की रक्षा कर सकें।

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