बेटियों की उपेक्षा पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: सरस्वती-लक्ष्मी पूजा करने वाले कैसे निर्दयी हो सकते हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के एक मामले में दोषी हजारीबाग निवासी योगेश्वर साव को शुक्रवार को कड़ी फटकार लगाई। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने योगेश्वर साव की अपील पर सुनवाई के दौरान उनकी बेटियों की उपेक्षा और पत्नी के साथ दुर्व्यवहार को लेकर तीखी टिप्पणी की।

खंडपीठ ने कहा, “आप किस प्रकार के व्यक्ति हैं, जो अपनी बेटियों की भी परवाह नहीं करते? हम ऐसे निर्दयी व्यक्ति को अपनी कोर्ट में कैसे आने दे सकते हैं? घर में सरस्वती और लक्ष्मी पूजा करते हो, लेकिन अपनी बेटियों और पत्नी के साथ ऐसा व्यवहार करते हो।”

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को किसी भी प्रकार की राहत तभी दी जाएगी, जब वह अपनी कृषि भूमि अपनी बेटियों के नाम करने पर सहमति जताएगा। कोर्ट ने इस मामले को बेटियों के अधिकार और महिलाओं के सम्मान से जोड़ते हुए कहा कि समाज में बेटियों को लेकर उपेक्षात्मक रवैया किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।

कटकमदाग गांव के निवासी योगेश्वर साव उर्फ डब्ल्यू साव को 2015 में हजारीबाग के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने अपनी पत्नी पूनम देवी को दहेज के लिए प्रताड़ित करने का दोषी ठहराया था। आइपीसी की धारा 498ए के तहत योगेश्वर साव पर आरोप सिद्ध हुआ था कि उन्होंने 50 हजार रुपये दहेज के लिए अपनी पत्नी को मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान किया।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी समाज में महिलाओं और बेटियों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता का प्रतीक है। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ऐसे मामलों में कोई भी उदारता या राहत तभी संभव है, जब दोषी अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाने का वचन दे।

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