झारखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व सिसई के पूर्व विधायक रह चुके बंदी उरांव का सोमवार देर रात निधन हो गया। वे लगभग 90 वर्ष के थे। उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी के तौर पर अपनी अमिट छाप छोड़ी थी और उसके बाद वीआरएस लेकर वो राजनीति में आ गए।
चार बार के विधायक बनने वाले बंदी उरांव अपने पीछे पुत्र अरुण उरांव, पुत्रवधू गीताश्री उरांव और भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनके पुत्र अरुण उरांव भी आईपीएस की नौकरी से वीआरएस लेकर भाजपा में शामिल हुए हैं और पार्टी में बड़े पद पर आसीन हैं। बंदी उरांव बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। उनके निधन पर मुख्यमंत्री समेत कांग्रेस और भाजपा के नेताओं ने शोक व्यक्त किया है।
90 वर्षीय बंदी उरांव फिलहाल कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। बता दें कि बंदी बाबा सिसई विधानसभा के पूर्व विधायक छोटानागपुर संथाल परगना कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रह चुके थे। उनका जन्म 16 जनवरी 1931 को गुमला जिले के दतिया गांव में हुआ था।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बंदी बाबा के निधन पर शोक व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री बंदी बाबा के आवास पर उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। वहां उन्होंने बंदी बाबा के अंतिम दर्शन कर उनको पुष्पांजलि अर्पित की।
वहीं मांडर विधायक बंधु तिर्की ने भी बंदी बाबा के निधन पर शोक जताया है। विधायक बंधु तिर्की ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि इसके साथ ही एक युग का अंत हो गया। झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि आज हमने पार्टी का एक मजबूत स्तंभ खो दिया है।
वहीं केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने ट्वीट करके लिखा कि पूर्व आईपीएस अधिकारी, बिहार सरकार में मंत्री रहे और भाजपा नेता डॉ अरुण उरांव के पिता बंदी उरांव जी के निधन का दुखद समाचार मिला। उनका आदिवासियों के उत्थान में बड़ा योगदान रहा। भगवान उनको अपने श्री चरणों में स्थान दे। उनके परिजनों के प्रति मेरी गहरी संवेदना।
पूर्व विधायक की निधन पर आदिवासी संगठनों ने भी गहरा शोक व्यक्त किया है। पूरी ईमानदारी, योग्यता और कर्तव्यनिष्ठा के साथ जिंदगी भर जल, जंगल, जमीन बचाने और झारखंड की अस्मिता सुरक्षित रखने के लिए संघर्ष करते रहे। बंदी उरांव सिसई क्षेत्र का चार बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
ग्राम सभा के जबरदस्त वकालत करने वाले, बुढ़ादेव को स्थापित करने वाले, आदिवासी समाज के अग्रिम और बौद्धिक जगत के रूप के साथ झारखंड अलग राज्य के कर्मठता के साथ विचार प्रवाह करने वाले के रूप में जाने जाते थे। झारखंड के समाज में उनके काम की मौजूदगी सदा बनी रहेगी।