अलग सरना धर्म कोड की मांग को लेकर आदिवासी समाज के लोग मंगलवार को एक बार फिर सड़कों पर उतरे। इस दौरान मोरहाबादी मैदान में एक अनौपचारिक सभा हुई जिसमें सरना धर्म गुरू बंधन तिग्गा, शिक्षाविद डा करमा उरांव, नारायण उरांव, रवि तिग्गा एवं शिवा कच्छप आदि सामजिक अगुवा ने हिस्सा लिया| इनलोगों ने ऐलान किया कि कोड नहीं तो वोट नहीं। सभा में ये फैसला लिया गया कि अगले शीतकालीन सत्र में रांची में विधानसभा घेराव एवं दिल्ली में संसद मार्च किया जाएगा। इसके साथ ही अगले वर्ष 28 फरवरी को रांची के मोरहाबादी मैदान में सरना धर्म संसद किया जाएगा। हालांकि मंगलवार को आंदोलन के बीच शाम 4 बजे सीएम हेमंत सोरेन के बुलावे पर एक शिष्टमंडल ने उनसे मुलाकात की।
उधऱ, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री गीता श्री उरांव, कुंदरसी मुंडा, पवन तिर्की के नेतृत्व में शांति पूर्वक सड़क किनारे मानव श्रृंखला बनायी गयी। फिर बाद में एक शिष्टमंडल ने राज्यपाल से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा। इसके अलावा राज्य के अन्य जिलों एवं प्रखंडों में भी आदिवासी समाज के लोग सड़क पर उतरे| सभी जगह बीडीओ एवं उपायुक्त को पीएम, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया, राज्यपाल एवं सीएम के नाम ज्ञापन सौंपा गया।
इससे पूर्व समस्त सरना आदिवासी समाज एवं आदिवासी संस्कृति सरना रक्ष मंच के बैनर तले आदिवासी सेना के अध्यक्ष शिवा कच्छप के नेतृत्व में मार्च का आयोजन किया गया| ये मार्च पिस्का मोड़ से शुरू होकर कचहरी चौक होते हुए मोरहाबादी मैदान पहुंचा। वहीं राजी पड़हा सरना समिति के अगुवा रवि तिग्गा, केंद्रीय सरना समिति के महासचिव नारायण उरांव, धर्म गुरू बंधन तिग्गा एवं शिक्षाविद डॉक्टर करमा उरांव के नेतृत्व में हरमू मैदान से मार्च निकाला गया| आखिर में सब मोरहबादी मैदान पहुंचे।
मोरहाबादी मैदान में हुई सभा में सरना धर्म गुरू बंधन तिग्गा ने कहा कि कुछ आदिवासी समाज के लोग आदिवासियों को बरगलाने में लगे हुए हैं। ये पूरी तरह से गलत है। संवैधानिक व्यवस्था के तहत आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है। हमें जाति नहीं धर्म कोड चाहिए। आदिवासी प्रकृति पूजक हैं, सरना स्थल पर पूजा-पाठ करते हैं|इसलिए आदिवासी के नाम से जाति नहीं सरना के नाम से सरना धर्म कोड चाहिए।
शिक्षाविद डॉक्टर करमा उरांव ने कहा कि प्रकृति हमारी पहचान है, हम प्रकृति में जीते हैं। आदिवासी न तो ईसाई बनना चाहते हैं और न ही हिंदू|इसलिए हमें अलग धर्म कोड चाहिए। अगर महज लाखों में सिमटे जैन धर्म के लिए अलग कोड हो सकता है तो फिर देश के12 करोड़ प्रकृति पूजक आदिवासियों का अलग धर्म कोड क्यों नहीं हो सकता है।
अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद महासचिव नारायण उरांव ने कहा कि अब मामला बर्दाश्त के बाहर हो चुका है, आदिवासियों की अपनी पहचान जरूरी है। इसलिए धर्म कोड नहीं तो वोट नहीं। आज तक सारे राजनीतिक दलों ने आदिवासियों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
आदिवासी सेना के अध्यक्ष शिवा कच्छप ने कहा कि अब पानी सिर के पार जा चुका है। अगर कोड नहीं मिला तो इंट से इंच बजा देंगे। शीतकालीन सत्र में विधानसभा घेरेंगे वहीं खाना बनाएंगे और खायेंगे।अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव ने कहा कि हम धर्मांतरण नहीं चाहते हैं न हम हिंदू बनना चाहते और न ही इसाई। इसलिए सरकार आदिवासियों को अलग पहचान प्रदान करे, नहीं तो आगामी दिनों से उलगुलान होगा।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बुलावे पर सरना धर्म गुरू बंधन तिग्गा, डॉक्टर करमा उरांव, शिवा कच्छप, नारायण उरांव, रवि तिग्गा आदि प्रोजेक्ट भवन में उनसे मुलाकात की। इस टीम ने मुख्यमंत्री को आयोजित कार्यक्रम के बारे में बताया एवं जल्द से जल्द विधानसभा से प्रस्ताव पारित करने की मांग की। इसपर हेमंत सोरेन ने भरोसा दिलाया कि झारखंड विधानसभा का विशेष सत्र आहूत करेंगे एवं सरना धर्म प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार को भेजेंगे।